दिल्ली चुनाव में ओवैसी की एंट्री, किसका बनेगा और किसका बिगड़ेगा खेल
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दिल्ली चुनाव में ओवैसी की एंट्री, किसका बनेगा और किसका बिगड़ेगा खेल

Delhi Election 2025 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी एंट्री कर चुकी है। विवादित चेहरे ताहिर हुसैन को टिकट भी दिया है। ऐसे में किसे अधिक नुकसान हो सकता है।


Delhi Assembly Election 2025: 11 साल पहले जन आंदोलन से बनी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) चुनावी मैदान में थी। आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहेगा इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे। यह बात सच है कि कांग्रेस के खिलाफ अगर किसी दल ने माहौल बनाया तो वो आम आदमी पार्टी थी। लेकिन सियासी फसल का फायदा कौन उठाएगा वो तर्कों के दौर से गुजर रहा था। 2013 के नतीजे जब सामने आए तो बीजेपी (BJP) 31 सीट के साथ पहले नंबर पर आप 28 सीट के साथ दूसरे नंबर पर और 8 सीट के साथ कांग्रेस (Congress) तीसरे नंबर पर थी। कांग्रेस के प्रति जनता में नाराजगी खुल कर दिखी। लेकिन सियासी गुणा गणित कर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने में परहेज नहीं किया। लेकिन 2025 में किस तरह की तस्वीर बन सकती है वो बेहद दिलचस्प है क्योंकि असदुद्दीन (Asaduddin Owaisi) की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने भी उम्मीदवार उतारे हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अब तक महाराष्ट्र, बिहार, यूपी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है। लेकिन पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए तैयार है। खास बात यह कि विवादित चेहरा ताहिर हुसैन को मुस्तफाबाद सीट से उम्मीदवार भी बनाया है। ताहिर हुसैन (Tahir Hussain) आप का पार्षद था हालांकि दिल्ली दंगा केस में आरोपी होने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने पल्ला झाड़ लिया। इसके अलावा शाहरुख पठान (दिल्ली दंगे के दौरान पुलिस वाले पर पिस्टल तानी थी) को भी टिकट देने की चर्चा है, यानी विवादित चेहरों से ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को परहेज नहीं है।

अब मूल सवाल की बात करेंगे कि ओवैसी की एंट्री, विवादित चेहरों पर दांव लगाने से फायदा या नुकसान किसका हो सकता है। अगर आप दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को खासतौर से 2015 (Delhi Assembly Election 2015) और 2020 (Delhi Assembly Election 2020) को देखें तो कांग्रेस के वोट शेयर में भारी गिरावट आई। कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम (Muslim Voters in Delhi) समाज एकतरफा वोट करता था। चाहे वो दिल्ली का ओखला वाला इलाका हो या उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाके हों। लेकिन पिछले दो चुनाव में मुस्लिम वोट कांग्रेस से छिटक कर आप के साथ चले गये। सवाल ये है कि मुस्लिम मतदाताओं को रुख क्या होगा। क्या वो आप के साथ बने रहेंगे या कांग्रेस के साथ जाएंगे या ओवैसी सेंधमारी कर पाएंगे। इसे आप तीन प्वाइंट्स से समझ सकते हैं।

पहला, अगर मुस्लिम मतदाताओं का आप से मोहभंग हुआ और वो कांग्रेस के साथ गए तो बीजेपी (BJP) की राह आसान होगी।

दूसरा, मुस्लिम मतदाता आप के साथ बने रहे तो बीजेपी के लिए मुश्किल, कांग्रेस (Congress Vote Share) के वोट शेयर में और गिरावट

तीसरा यदि मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन हुआ तो उस केस में भी बीजेपी को फायदा

अब सवाल ये है कि क्या ओवैसी की पार्टी मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकेगी। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं। सियासी पंडित कहते हैं कि अगर आप एआईएमआईम की राजनीति को देखें तो उनका कांग्रेस संग विरोध पहले से रहा है। अब वो आम आदमी पार्टी का भी विरोध करते हैं। ताहिर हुसैन (Tahir Hussain) का उदाहरण देकर वो बताते हैं कि जब यह शख्स मुश्किल में पड़ा तो आम आदमी पार्टी ने किनारा कर लिया। यानी कि अपने फायदे के लिए आप के लोग इस समाज का इस्तेमाल करते हैं और जब मुश्किल आती है तो नियम कानून का हवाला देकर कन्नी काट लेते हैं। इसके साथ ही जिस तरह से आप संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मंदिरों में मत्था टेकते हैं उसका विरोध ओवैसी करते हैं। ऐसे में मुस्लिम समाज का बंटना या इकट्ठा रहना दिल्ली की राजनीति में आप, बीजेपी, कांग्रेस और खुद एआईएमआईएम (AIMIM) के भविष्य को तय कर देगा।

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