27 साल बाद दिल्ली में BJP राज, दलित बहुल सीटों पर नहीं दिखा पूरा दम
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27 साल बाद दिल्ली में BJP राज, दलित बहुल सीटों पर नहीं दिखा पूरा दम

Delhi Election Results: बीजेपी शानदार जीत दर्ज कर चुकी है।अब जीत का विश्लेषण किया जा रहा है। दलित समाज के दबदबे वाली सीटों पर पार्टी अभी संघर्ष करती नजर आ रही है।


Delhi Election Results 2025: दिल्ली चुनाव में बीजेपी की जीत कई मायनों में खास है। 27 साल के हार का सूखा खत्म हो चुका है, अब दिल्ली में भी डबल इंजन की सरकार होगी। बीजेपी जहां 48 सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं वोट शेयर में करीब 9 फीसद की बढ़ोतरी हुई। बीजेपी की जीत में समाज के हर तबके की भूमिका है। लेकिन यह हम उन 36 सीटों की बात करेंगे जहां दलित समाज की संख्या 15 फीसद के ऊपर है। चुनावी नतीजों को करीब से देखने से पता चलता है कि 12 दलित समाज के लिए आरक्षित सीटों पर आम आदमी का प्रदर्शन शानदार रहा है। वहीं ऐसी सीटें जहां पर दलित समाज पूरी आबादी में करीब एक चौथाई है वहां भी बीजेपी के मुकाबले आप का प्रदर्शन बेहतर रहा है।

जहां दलित अधिक बीजेपी का फीका प्रदर्शन
दिल्ली की 36 सीटों पर दलितों की संख्या 15 फीसद से ज्यादा हैं, यानी कुल मतदाताओं में से आधे से अधिक। भाजपा ने इनमें से 21 सीटें जीतीं, जिनमें से आठ ऐसी थीं जहां दलितों की आबादी 20 फीसद से ज्यादा है। इसकी सिर्फ तीन जीतें ऐसी सीटों पर हुईं जहां दलितों की आबादी 25% से ज़्यादा है।

इसके अलावा आप ने 10 सीटें जीतीं जहाँ दलितों की आबादी 20% से अधिक है और सात ऐसी सीटें जहां दलितों की आबादी 25% से ज़्यादा है। त्रिलोकपुरी विधानसभा में जहां दलितों की आबादी एक चौथाई से अधिक है भाजपा की आप पर जीत का अंतर सिर्फ 392 वोट था।

2020 विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती थीं। उस समय भाजपा ने दलितों की महत्वपूर्ण मौजूदगी वाली 36 सीटों में से केवल एक रोहतास नगर पर जीत हासिल की थी। इन चुनावों में इसने रोहतास नगर को बरकरार रखा जहां 19.9 फीसद ​​आबादी दलित है। आप ने पिछली बार सभी 12 आरक्षित सीटें जीती थीं। इनमें बवाना, सुल्तानपुर माजरा, मंगोल पुरी, करोल बाग, पटेल नगर, मादीपुर, देवली, अंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, कोंडली, सीमापुरी, गोकलपुर शामिल हैं।

इन सीटों पर अच्छी खासी आबादी
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की आबादी में दलितों की सबसे अधिक हिस्सेदारी सुल्तानपुर माजरा (44%), उसके बाद करोल बाग (41%), गोकलपुर (37%), मंगोल पुरी (36%), त्रिलोकपुरी (32%), अंबेडकर नगर (31%), सीमापुरी (31%), मादीपुर (29%), कोंडली (27%), देवली (27%), बवाना (24%) और पटेल नगर (23%) में सबसे अधिक है।

इन 12 सीटों के बाद राजिंदर नगर (22%), वजीरपुर (22%), तुगलकाबाद (22%), बल्लीमारान (22%), नांगलोई जाट (21%) और नरेला (21%) जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में भी दलित समाज की अच्छी खासी आबादी है।

18 विधानसभाओं में जहां दलितों की आबादी 20% से भी कम है जैसे वजीरपुर, राजिंदर नगर, नांगलोई जाट और नरेला के अलावा आरक्षित मंगोल पुरी, त्रिलोकपुरी, मादीपुर और बवाना सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की। जहां 20% से अधिक आबादी दलित है वहां 2020 में सभी सीटें AAP ने जीती थीं। पिछली बार रोहतास नगर को छोड़कर भाजपा ने जो आठ सीटें जीती थीं, वे सभी ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में आई थीं जहां दलित आबादी कम है - रोहिणी (6%), करावल नगर (8%), लक्ष्मी नगर (9%), गांधी नगर (11%), बदरपुर (12%), विश्वास नगर (13%) और घोंडा (13%)। 2015 में भाजपा ने रोहिणी, विश्वास नगर और मुस्तफाबाद (13%) जीती थीं। इन सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था।


2015 में भाजपा ने रोहिणी, विश्वास नगर और मुस्तफाबाद (13%) में जीत हासिल की थी, जो फिर से कम दलित आबादी वाली सीटें हैं। रोहिणी निर्वाचन क्षेत्र, जिसे पार्टी ने AAP के सफाए के बावजूद लगातार जीता है, राष्ट्रीय राजधानी में किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के लिए सबसे कम दलित आबादी है। 1993 में भाजपा ने दिल्ली में आखिरी बार सरकार बनाई थी। 70 में से 49 सीटों पर जीत दर्रज की थी। उसमें दलितों के लिए आरक्षित 13 में से आठ सीटें मिली थीं।

ऐसा माना जाता है कि दलित वोट सबसे पहले में कांग्रेस की ओर चले गए, जिसने 1998 से 2013 तक दिल्ली पर शासन किया, और उसके बाद AAP का दामन थाम लिया। 1998 के चुनावों में जब भाजपा ने 15 सीटें जीतीं, तो उनमें से एक भी आरक्षित सीट नहीं थी। 2003 में जब इसने अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए 20 सीटें जीतीं तो दो एससी आरक्षित थीं। 2008 और 2013 में भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर उसकी संख्या दो-दो रही।

यानी कि इन नतीजों से साफ है कि दलित बहुल सीटों पर बीजेपी अपनी पकड़ उस तरह से मजबूत नहीं कर सकी है जितना दूसरे विधानसभा सीटों पर मजबूत है। सियासी जानकार कहते हैं कि आरएसएस की मदद से इस समाज तक पहुंचने की कोशिश हो रही है। अगर आप 2025 के नतीजों को देखें तो बीजेपी दलित बहुल 21 सीट जीतने में कामयाब हुई है लेकिन जीत का अंतर बहुत अधिक नहीं है।

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