दिल्ली कैंट में कांग्रेस की दाल नहीं गली, AAP के सामने चौका मारने का मौका
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दिल्ली कैंट में कांग्रेस की दाल नहीं गली, AAP के सामने चौका मारने का मौका

दिल्ली कैंट विधानसभा में कांग्रेस ने जीत नहीं दर्ज की है। बीजेपी चार दफा और आप तीन दफा जीत हासिल करने में कामयाब रही है।


Delhi Cantt Assembly Seat: दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से एक दिल्ली कैंट है। 1993 में इस सीट के अस्तित्व में आने के बाद बीजेपी का कब्जा रहा है। बीजेपी के करण सिंह तंवर ने 1993, 1998, 2003, 2008 में जीत दर्ज की थी। 2013, 2015 और 2020 में इस सीट से आप उम्मीदवार सुरिंदर सिंह और वीरेंद्र सिंह कादियान (Virendra Singh Kadiyan) ने जीत दर्ज की। इस दफा भी आप ने वीरेंद्र सिंह कादियान पर भरोसा जताया है और कांग्रेस की तरफ से प्रदीप कुमार उपमन्यू (Pradeep Kumar Upmanyu) चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी ने फिलहाल उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है।

दिल्ली कैंट (Delhi Cantt) इलाके में समस्या की बात करें तो अंधेरा और पीने के पानी की दिक्कत है। लोगों का कहना है कि यह समस्या दशकों से चली आ रही है और कोई रास्ता भी नजर नहीं आता। इस विधानसभा में कुल 66914 मतदाता हैं जिनमें करीब 37 हजार पुरुष और 29 हजार महिला हैं। दिल्ली की सभी 70 में से इस विधानसभा में वोटर्स की संख्या कम है। इसके पीछे वजह यह है कि बड़ा हिस्सा छावनी क्षेत्र में आता है जहां सेना के दफ्तर हैं। इसके साथ ही नारायणा, ओल्ड नांगल, सदर बाजार, गोपीनाथ बाजार, काबुल लाइन, किर्बी प्लेस, झरेरा गांव,मेहराम नगर, धौलाकुआं और मोती बाग-एक के इलाके आते हैं।

इलाके के लोगों का कहना है कि वादों और दावों की कमी नहीं है। करण सिंह तंवर (Karan Singh Tanwar) जब यहां से विधायक हुआ करते थे तो सरकार कांग्रेस की हुआ करती थी। इलाके में जो भी विकास कार्य हुए थे वो अपने दम पर कराने की बात करते थे। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वो सुलभ थे। 2013 से आज की तारीख में आप का विधायक है, सरकार भी उनकी है। लेकिन उनका भी रोना वही कि केंद्र सरकार काम नहीं करने देती। लेकिन अगर आप दिल्ली छावनी परिषद को देखें तो वो किसी भी सरकार के दायरे से बाहर है।

यही नहीं नारायणा, ओल्ड नांगल, मेहराम नगर की तस्वीर देख सकते हैं। ऐसे में सवाल था कि आप लोगों ने अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के उम्मीदवार को मौका ही क्यों दिया। इस सवाल का जवाब मिला था कि सिर्फ उम्मीद के नाम पर। दूसरा सवाल यह कि क्या फिर मौका देंगे। लोगों ने कहा विकल्प जरूर देखेंगे।

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