महिला शक्ति की बस फिक्र भर, दिल्ली में सभी दलों ने दिखाई कंजूसी
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महिला शक्ति की बस फिक्र भर, दिल्ली में सभी दलों ने दिखाई कंजूसी

Delhi Election 2025: 1993 से अब तक दिल्ली में 7 चुनाव हो चुके हैं। लेकिन महिला भागीदारी नगण्य रही है। 37 साल में सिर्फ 39 महिला एमएलए बनने में कामयाब रही हैं।


Delhi Assembly Election 2025: महिला शक्ति की फ्रिक तो सभी दल करते हैं। लेकिन सत्ता में भागीदारी के नाम पर कंजूसी दिखा जाते थे। वैसे तो सियासी दल 33 फीसद भागीदारी के नाम पर दूसरे दलों पर टीका टिप्पणी भी करते हैं। लेकिन जब वो खुद निशाने पर आते हैं तो जवाब देने से बेहतर चुप्पी साधना बेहतर रास्ता नजर आता है। 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की बात करें तो कुल 7 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में थी। कांग्रेस (Congress) ने 10, आप (Aam Aadmi Party) ने और बीजेपी (BJP) ने तीन उम्मीदवार उतारे थे। अगर विधानसभा कुल 70 सीटों के लिहाज से देखें तो यह संख्या एक चौथाई भी नहीं है। दूसरी बड़ी बात यह कि साल 1993 से लेकर 2020 तक विधानसभा के कुल सात चुनाव हो चुके हैं लेकिन पिछले 37 साल में सिर्फ 39 महिलाएं विधायक बन सकी हैं।

महिलाओं की भागीदारी एक चौथाई से कम
अगर साल 2025 की बात करें तो आप ने 10 फीसद यानी सात महिलाओं को, बीजेपी और कांग्रेस ने 13 फीसद यानी 9-9 महिलाओं को मौके दिए हैं। यह संख्या 33 फीसद के उस दावे से बहुत कम है। वैसे दिल्ली में 1993 से लेकर 2013 के बीच तीन महिला सीएम रही हैं। सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) का नाता बीजेपी से , शीला दीक्षित (Sheila Dixit) का संबंध कांग्रेस और सीएम आतिशी (Atishi) आप से हैं। 1998 से वो साल था जब सबसे अधिक कुल 9 महिलाएं विधायक बनने में कामयाब रहीं। यह रिकार्ड आज की तारीख में नहीं टूट सकता है। क्या इस दफा 1998 वाला रिकॉर्ड टूटेगा या बरकरार रहेगा यह देखने वाली बात होगी।

निर्दलीय महिला विधायकों की संख्या शून्य
अगर निर्दलीय महिला विधायकों की बात करें तो यह संख्या शून्य है। अगर सियासी दलों की बात करें तो वही घिसे पिटे और पुराने बयान कि हमने महिलाओं का खास ख्याल रखा है। इस विषय पर बीजेपी का कहना है कि पार्टी ने 9 महिला उम्मीदवारों को मौका दिया है, वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव कहते हैं कि हमने ना सिर्फ महिला विधायक बल्कि तीन दफा महिला सीएम बनाया है। कपछ इसी तरह का तर्क आम आदमी पार्टी की तरफ से भी है।

बिल पारित लेकिन अमल कब तक
संसद के दोनों सदनों से 33 फीसद महिला आरक्षण का बिल पारित हो चुका है। लेकिन इसे कब लागू किया जाएगा इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सका है। दिल्ली के कुल डेढ़ करोड़ मतदाताओं में महिला वोटर्स की संख्या करीब 71 लाख है, यानी कि पुरुष वोटर्स के साथ अंतर ज्यादा नहीं है। एक सवाल आपके मन में उठ सकता है कि जब 33 फीसद आरक्षण को अमल में लाया जाएगा उस हालात में तो राजनीतिक दलों के सामने टिकट देने की मजबूरी होगी। लेकिन उससे पहले सियासी दल टिकट क्यों नहीं देना चाहते हैं।

एक्सपर्ट्स राय
इस सवाल के जवाब में सियासी जानकार कहते हैं कि चुनाव में जीत किसी भी दल के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर सत्ता नहीं मिली तो वो अपनी राजनीतिक समझ को प्रयोग में कैसे ला सकेंगे। अगर आप भारत में गिनी चुनी महिलाएं ही राजनीतिक का हिस्सा बनी हैं। महिलाओं को अहसास कराया जाता रहा है कि उनका काम चुल्हे चौके तक सीमित हैं। लेकिन अब तस्वीर धीरे धीरे बदल रही है। हालांकि राजनीतिक दलों को लगता है कि शायद वो जीत के लिहाज से उतनी मुफीद नहीं हैं, लिहाजा टिकट देने में कंजूसी बरती जाती है।

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