Delhi Election: सबकी रेवड़ी आई सामने, जानें किसकी कितनी मीठी! देखें VIDEO
Delhi Election Freebies: दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसकी रेवड़ी, कितनी मीठी होगी? इस खास विषय पर 'द फेडरल देश' खास परिचर्चा को पेश कर रहा है.
Delhi assembly election: दिल्ली का मौसम सर्द है. लेकिन मिजाज गर्म है. अब तीनों दलों आम आदमी पार्टी (AAP), बीजेपी और कांग्रेस ने जनता को लुभाने के लिए अपनी बात घोषणापत्र के जरिए सामने रख चुके हैं. आप को अपनी स्कीम को रेवड़ी कहने में गुरेज नहीं है तो कांग्रेस ने गारंटी का नाम दिया है. वहीं, बीजेपी का कहना है कि हमारे लिए घोषणापत्र, कागज पर लिखी कुछ चंद लाइन नहीं है. हम इसे सिद्धि मानते हैं और उसके लिए संकल्प लेते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि किसकी रेवड़ी, कितनी मीठी होगी? इस खास विषय पर 'द फेडरल देश' खास परिचर्चा को पेश कर रहा है.
हमारे इस खास कार्यक्रम में नीलू व्यास ने तीखे, गहरे, प्रासंगिक सवाल उठाए, जिसका जवाब हमारे पैनल ने दिया।.द फेडरल देश के इस खास पैनल में द फेडरल के एडिटर इन चीफ एस श्रीनिवासन, सीनियर एडिटर पुनीत निकोलस यादव और कॉरेस्पोंडेंट अभिषेक रावत शामिल हुए.
चर्चा के दौरान एस श्रीनिवासन ने कहा कि चुनावी रेवड़ियों का इतिहास काफी पुराना रहा है. वही काम अब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में किया और सत्ता में काबिज भी हुई. किसी भी समाज के लिए मुफ्त की घोषणाएं या फिर कहें रेवड़ी कल्चर अच्छी बात नहीं है. क्योंकि ज्यादा मिठास होने पर डायबिटीज होने की भी आशंका बनी रहती है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी चुनावी रेवड़ियां बांटी जाती रही हैं. लेकिन दिल्ली तो उनसे एक कदम आगे निकल चुकी है. एक तरफ हम अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर ले जाने की बात करते हैं. दूसरी तरफ मुफ्त की घोषणाओं से सरकारी खजाने पर बोझ डालने का काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि खुद प्रधानमंत्री मोदी रेवड़िया बांटने को लेकर आम आदमी पार्टी समेत विपक्ष पर तंज कसते रहे हैं. दूसरी तरफ उनकी पार्टी भी वही काम कर रही है. क्योंकि बीजेपी को भी पता है कि अगर मुफ्त योजनाओं की घोषणा नहीं करेंगे तो फिर सत्ता में आना मुश्किल हो सकता है. इसकी बानगी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में देखने को मिली थी. जहां महिलाओं के लिए की गई मुफ्त योजना के चुनावी वादे से बीजेपी सत्ता में आई थी.
वहीं, पुनीत निकोलस यादव ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का जहां तक सवाल है तो यह जरूर है कि उन्होंने भी गारंटी के नाम पर कई घोषणाएं की हैं. लेकिन कांग्रेस का जो नेतृत्व है, उसको इस बात को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए कि केवल रेवड़ी बांटने से ही हमारी कोई सीट बढ़ जाएंगी या हमारा वोट परसेंटेज बढ़ जाएगा. कांग्रेस यह अच्छी तरह जानती है कि केवल घोषणाएं करने मात्र से ही चुनाव नहीं जीता सकता है. उन्होंने इसकी जगह दिल्ली में एक अच्छा संगठन खड़ा करना चाहिए था. उनको एक इलेक्टरल नॉरेटिव बनाना चाहिए था, जो कि उन्होंने नहीं बनाया. अगर यह काम कांग्रेस दो साल पहले कर देती तो दिल्ली में कांग्रेस के लिए ज्यादा अच्छी स्थिति होती. इस बार चुनाव में नई रेवड़ियों की जगह इस बात पर अधिक विचार किया जाएगा कि जो घोषणाएं पहले की गई हैं, उन पर कितना काम हुआ है.
अभिषेक रावत ने ग्राउंड जीरो पर अपने अनुभव को साझा कियाय उन्होंने कहा कि जनता की तरफ से मिली जुली प्रतिक्रिया आई. कुछ लोगों को रेवड़ी कल्चर में किसी तरह की खराबी नहीं दिखी तो कुछ लोगों ने माना कि बेशक इससे फायदा हो रहा है. लेकिन कहीं न कहीं कीमत तो चुकानी होगी.