
कम मतदान प्रतिशत का क्या है मतलब, उलझी हुई है दिल्ली की गणित
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए करीब 60.40 फीसद मतदान हुआ है। यह 2020 की तुलना में करीब 2 फीसद कम है। कम मतदान प्रतिशत से किसका खेल बनेगा या बिगड़ेगा देखने वाली बात होगी।
Delhi Elections 2025: दिल्ली के डेढ़ करोड़ से अधिक वोटर्स 699 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद कर चुके हैं। 8 फरवरी को औपचारिक नतीजों के ऐलान के बाद साफ हो जाएगा कि 2025 में किसे सरकार बनाने का मौका मिला। इन सबके बीच कुल 11 एग्जिट पोल के नतीजे सामने आए हैं जिनमें 9 बीजेपी की जीत की तरफ इशारा कर रहे जबकि 2 में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की सरकार बनती नजर आ रही है। हालांकि इतिहास भी गवाह है कि एग्जिट पोल (Delhi Exit Poll 2025) के नतीजों से इतर जनता ने चुनावी फैसला सुनाया है। कोई भी दल सत्ता का स्वाद चखेगा या सत्ता से दूरी बनी रहेगी उसमें वोट शेयर का भी महत्व है।
वोट शेयर की अलग तरह से व्याख्या
वोट शेयर को लेकर तरह तरह की व्याख्या होती है। मसलन वोट फीसद बढ़ने पर जनता बदलाव पर मुहर लगाती है, वोट फीसद कम होने पर सरकार बदलने की गुंजाइश कम होती है। हालांकि भारत की जनता ने इस तथ्य या मिथक को तोड़ दिया है। अगर आप 1993 से लेकर 2020 तक के नतीजों और वोट फीसद को देखें तो ट्रेंड एक जैसा नहीं रहा है। ऐसे में 2025 में वोट फीसद से आप जनता के मिजाज को समझ सकते हैं।
वोट शेयर और सरकार
- 1993 में 61.75 फीसद मतदान- सत्ता में बीजेपी
- 1998 में 48.99 फीसद मतदान- सत्ता में कांग्रेस
- 2003 में 53.42 फीसद मतदान- सत्ता में कांग्रेस
- 2008 में 57.58 फीसद वोटिंग- सत्ता में कांग्रेस
- 2013 में 65.63 फीसद वोटिंग-- कांग्रेस की हार त्रिशंकु विधानसभा
- 2015 में 67.12 फीसद मतदान- प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आप
- 2020 में 62.55 फीसद वोटिंग- सत्ता में आप
- 2025 में 60.42 फीसद- नतीजा ?
जानकार कहते हैं कि अगर आप 1998, 2003 और 2008 के नतीजों को देखें तो वोट शेयर और सरकार बदलने में संबंध नजर नहीं आएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि दिल्ली की जनता ने चाहे बढ़चढ़कर मतदान किया हो या सुस्त रफ्तार से मदतान किया हो। नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं। यानी कि इस थ्योरी के हिसाब से 2025 के नतीजे कुछ भी हो सकते हैं। यदि 2025 के चुनावी प्रचार को देखें तो आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के साथ साथ ओवैसी वाली एआईएमआईएम भी चुनाव लड़ रही है।
भले ही दिल्ली का औसत आंकड़ा 60.42 फीसद का हो। मुस्लिम बहुल सीटों में मतदान का प्रतिशत कमोबेश 65 फीसद के ऊपर है। ये वो सीटें हैं जो आप के कब्जे में रही है। अगर वोट शेयर और नाराजगी के संबंध को स्थापित करें तो इन सीटों पर नतीजे आप के खिलाफ जा सकते हैं। यानी कि जनता ने मौजूदा सरकार के वादों और दावों पर उस तरह से ऐतबार नहीं कर रही जो 2020 के नतीजों में नजर आया था।