आम आदमी पार्टी की वो गलतियाँ जो बनी हार का कारण, क्या केजरीवाल करेंगे विचार ?
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आम आदमी पार्टी की वो गलतियाँ जो बनी हार का कारण, क्या केजरीवाल करेंगे विचार ?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुई आम आदमी पार्टी की हार के बाद से इस बात की समीक्षा की जा रही है कि आखिर वो क्या कारण रहे, जिसकी वजह से केजरीवाल और उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.


AAP's Introspection : दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद आम आदमी पार्टी को लेकर तरह तरह की चर्चाएँ हो रही है. उन्हीं चर्चाओं में एक ये भी है कि आखिर आदमी पार्टी किस वजह से हारी. ऐसे कौनसे कारण बने, जिनकी वजह से आम आदमी पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. ऐसा तब हुआ जब आम आदमी पार्टी के राष्ट्रिय संयोजक अरविन्द केजरीवाल जनता से अपनी इमानदारी का सर्टिफिकेट लेने के लिए चुनाव लड़े थे. चुनाव परिणाम के बाद हर कोई अरविन्द केजरीवाल को आतम मंथन की सलाह दे रहा है. लेकिन जरुरी बात ये है कि जो सबको दिख रहा था, वो तेज तर्रार अरविन्द केजरीवाल को क्यों नहीं दिखा? क्या इसकी एक वजह अहंकार या फिर अति आत्मविश्वास रहा, जिसने औरों से दो कदम चलने वाले अरविन्द केजरीवाल को औंधे मुंह गिरा दिया.

अब बात करते हैं उन वजहों की जो कहीं न कहीं आप की हार का कारण बनी

जेल जाकर भी इस्तीफा न देना - ये बात सर्वविदित है कि आम आदमी पार्टी की राजनीती भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से शुरू हुई थी. लेकिन किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जो केजरीवाल किसी पर भी बेईमानी का आरोप लगते हुए उसे भ्रष्ट घोषित कर देते हैं, वहीँ केजरीवाल खुद ऐसे ही आरोपों में घिर जायेंगे. न केवल घिरेंगे बल्कि जेल भी जायेंगे.

जेल जाने पर आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच जाकर सहानुभूति भी काफी एकत्र की लेकिन ये सहानुभूति उस समय आश्चर्य में बदल गयी जब केजरीवाल ने जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया.

केजरीवाल के इस कदम से भाजपा व कांग्रेस ने जनता के मन में ये सवाल भी पैदा कर दिया कि आखिर केजरीवाल सत्ता के आगे नैतिकता को भी भूल गए हैं.

शीश महल - जब केजरीवाल पहली बार विधायक बने और सत्ता में आये तो एक पुरानी सी नील रंग की वैगन-आर कार में सवार होकर शपथ लेने पहुंचे थे. जनता को शपथ पत्र दिखाते हुए दावा किया कि सरकारी बँगला गाड़ी नहीं लेंगे. लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद धीरे धीरे सब भुलाते चले गए. कोरोना काल में केजरीवाल के लिए 50 हजार गज का एक आलिशान सरकारी आवास तैयार किया गया. भाजपा ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया और उस सरकारी आवास को शीश महल का नाम दिया गया, जिसके निर्माण की कीमत 43 करोड़ होने का दावा किया गया. अरविन्द केजरीवाल और उनकी सारी टीम ने इस मुद्दे को इस तरह से लिया जैसे ये कोई बात ही नहीं है और जनता पर इसका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ेगा. लेकिन इसके उलट बीजेपी और कांग्रेस ने इसे उठाना जारी रखा. जनता के सामने बार बार वो वादा दोहराया, जिसमें केजरीवाल ने सरकारी बंगला न लेने की बात कही थी.

आतिशी को मुख्यमंत्री बना कर चुनाव बाद खुद मुख्यमंत्री बनने की बात कहना - अरविन्द केजरीवाल ने लगभग छह महीने पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने का काम किया. लेकिन उसके बाद ये कहा कि आतिशी टेम्पररी मुख्यमंत्री हैं, चुनाव बाद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बनेंगे. यानी आतिशी डमी मुख्यमंत्री बनी. ये बात जनता को बीजेपी और कांग्रेस द्वारा समझाई गयी. संभवत: जनता को ये बात समझ भी आई कि ये महज एक स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं है.

शराब घोटाला - आम आदमी पार्टी पर जो सबसे बड़ा दाग लगा वो शराब घोटाले का रहा, जिसने उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया. ऐसा आरोप, जो अक्सर आम आदमी पार्टी दूसरों पर लगाया करती थी. शराब के विषय पर सबसे ज्यादा नाराज़गी महिला वर्ग में देखने को मिली, जो इस बात से नाराज़ दिखीं कि दिल्ली में शराब एक के साथ एक फ्री होने की वजह से इसकी खपत ज्यादा बढ़ी, जिसकी वजह से घरों में कलह बढ़ी. लेकिन आम आदमी पार्टी ने इन आरोपों को भी नज़रंदाज़ किया.

विक्टिम कार्ड खेलना महंगा साबित हुआ - आम आदमी पार्टी की दिल्ली की सरकार ने काम से ज्यादा इस बात शोर मचाया कि उसे काम नहीं करने दिया जा रहा है. हर बात पर उपराज्यपाल या फिर केंद्र की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाना, जिससे जनता में ये सन्देश जा सके कि दिल्ली की आप सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है. शुरुआत की तो जनता को ये सही लगा कि आम आदमी पार्टी को काम नहीं करने दिया जा रहा है. लेकिन एक वक़्त के बाद जनता आम आदमी पार्टी के इस रवैये से तंग आ गयी और यहाँ तक कहने लगी कि ऐसी सरकार ही क्यों चुननी जो काम कराने में ही सक्षम न हो.

यमुना की सफाई - यमुना की सफाई का मुद्दा दिल्ली विधानसभा 2025 के चुनाव में शुरुआत में मुद्दा तो था लेकिन इतना बड़ा नहीं था कि जनता को बहुत ज्यादा प्रभावित कर पाए. लेकिन जब खुद अरविन्द केजरीवाल ने हरियाणा द्वारा यमुना में ज़हर डालने जैसे गलत आरोप लगाये तो जनता के मन में ये बात घर करने लगी कि केजरीवाल बगैर किसी सर पैर के आरोप लगाने में माहिर है. इसके बाद लोग भी यमुना की सफाई को लेकर प्रश्न करने लगे.

सत्ता विरोधी लहर - दिल्ली की सत्ता पर लगातार 10 साल से काबिज अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने सत्ता विरोधी लहर को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने ये तो समझा कि इस बार सत्ता विरोधी लहर है और इसी बिन्हा पर 20 से ज्यादा मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए गए. लेकिन वो अपने प्रति उत्पन्न हुई सत्ता विरोधी लहर को नहीं समझ पाए. अरविन्द केजरीवाल नयी दिल्ली से मैदान में उतरे, जहाँ से वो 3 बार जीत भी चुके हैं. ये वो इलाका है, जहाँ सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में रहते हैं या कहें कि मिडिल क्लास का बहुत बड़ा वर्ग यहाँ का वोटर है. वो वोटर जिसे आम आदमी पार्टी द्वारा नज़रअंदाज किया जाता रहा.


अति आत्मविश्वास और अहंकार

अरविंद केजरीवाल, जो खुद को जनता के 'ईमानदार नेता' के रूप में पेश कर रहे थे, इस चुनाव में बड़ा झटका खा गए। उनकी पार्टी ने एक मजबूत लड़ाई लड़ी, फिर भी जनता का विश्वास हासिल करने में असफल रही। सवाल ये है कि क्या यह हार सिर्फ विपक्षी दलों के प्रचार का असर थी, या पार्टी की कुछ अपनी ही गलतियाँ थीं, जिनकी वजह से चुनावी परिणाम पलट गए?

कई विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की हार की वजह एक हद तक अरविंद केजरीवाल का अति आत्मविश्वास था। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी छवि एक मजबूत नेता की बन चुकी थी, लेकिन चुनावी प्रचार में जिस तरह का आत्मविश्वास और अहंकार दिखाया गया, उसने कई समर्थकों को दूर कर दिया। केजरीवाल का विश्वास था कि दिल्ली की जनता उन्हें हर हाल में समर्थन देगी, लेकिन यह सोच उन्होंने गलत समय पर दिखा दी। जब वह जनता के बीच से अपनी दूरी बनाए रखने लगे और आलोचनाओं को नजरअंदाज किया, तो यह उनकी हार की एक अहम वजह बन गई।

समाज के विभिन्न वर्गों से दूरी

आम आदमी पार्टी ने अपनी नीतियों में हमेशा ही एक 'समानता' का राग अलापा है, लेकिन चुनावी माहौल में यह नजर नहीं आया। AAP ने कुछ वर्गों को खुश करने की बजाय, ऐसे फैसले लिए जो अलग-अलग समुदायों को नाराज करने का कारण बने। कई बार ऐसा हुआ कि पार्टी का चुनावी संदेश समाज के हर वर्ग तक नहीं पहुंच पाया, जिससे कई मतदाता अजनबी महसूस करने लगे। ख़ास तौर से मुस्लिम वर्ग. 2020 में हुए दिल्ली दंगों के चलते मुस्लिमों में आम आदमी पार्टी के खिलाफ नाराज़गी देखने को मिली. मुस्लिमों ने यहाँ तक कहा कि अरविन्द केजरीवाल या आम आदमी पार्टी ने उन्हें अपना वोट बैंक मान लिया है और इसी वजह से उन्हें नज़रंदाज़ किया जा रहा है.

वादा और कार्य में अंतर

केजरीवाल सरकार ने पहले दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं के सुधार के नाम पर जो वादे किए थे, उन्हें पूरा करने में भी कई बार असफलता का सामना करना पड़ा। यह वादा और कार्य में अंतर, मतदाताओं के बीच असंतोष पैदा कर गया। जब लोग महसूस करने लगे कि वादे पूरे नहीं हुए, तो उनका समर्थन घटने लगा। लोगों का ये कहना था कि केजरीवाल भी उन नेताओं जैसे ही हैं, जो सिर्फ वादे करते हैं, निभाते नहीं है. गाड़ी, बंगला न लेने की बात करने वाले अब महल जैसे घर में रहते हैं, महंगी कार में चलते हैं. ये सभी बातें दिल्ली की जनता के मन में रही.

स्थानीय मुद्दों की अनदेखी

हालांकि दिल्ली में कई बड़े मुद्दे हैं—जैसे कि बेतहाशा महंगाई, बेरोजगारी, और कानून-व्यवस्था—लेकिन आम आदमी पार्टी ने इन मुद्दों पर उतना ध्यान नहीं दिया, जैसे पानी की शुद्धता, सड़क और साफ़ सफाई. पार्टी ने अधिकतर राष्ट्रीय मुद्दों पर बात की, जैसे कि केंद्र सरकार की नीतियाँ, जबकि दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को वह उतनी प्राथमिकता नहीं दे पाई। यही कारण था कि मतदाता महसूस करने लगे कि पार्टी उनके असली समस्याओं से मुंह मोड़ रही है।

केजरीवाल का लगातार विरोध और विवाद

अरविंद केजरीवाल को अपनी राजनीति के चलते लगातार विरोध का सामना करना पड़ा। कभी उनका बयान विवादों में घिरता, तो कभी उनका तरीका। आम आदमी पार्टी को कभी समाज के एक वर्ग का, तो कभी दूसरे वर्ग का विरोध झेलना पड़ा। ये विवाद चुनावी परिणाम पर भी असर डालते हैं।

स्वाति मालीवाल - स्वाति मालीवाल जो कभी आम आदमी पार्टी का प्रमुख चेहरा थीं. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष होने के बाद उन्हें पार्टी ने राज्यसभा भेजा. लेकिन लोक सभा चुनाव से पहले अरविन्द केजरीवाल के सिविल लाइन वाले सरकारी आवास में जिस तरह से स्वाति मालीवाल ने केजरीवाल के पीए बिभव कुमार पर मारपीट का आरोप लगाया और केजरीवाल चुप रहे. केजरीवाल ने कहीं न कहीं बिभव कुमार को सही कहा और स्वाति मालीवाल के आरोपों पर संदेह जताया. ये एक वजह रही कि महिलाओं के मन में ये बात घर कर गयी कि केजरीवाल नारी सम्मान से ज्यादा अपने करीबी का पक्ष ले रहे हैं. स्वाति मालीवाल ने विधानसभा चुनाव में अलग अलग विधानसभा क्षेत्र में जा कर दिल्ली सरकार के कामों की पोल खोली और कई मुद्दों पर केजरीवाल को घेरा.


दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार कोई एक कारण नहीं बल्कि कई कारकों का परिणाम है। अरविंद केजरीवाल को आत्ममंथन करना होगा कि वे जनता से कितना जुड़ पाए और क्या उनकी रणनीतियाँ सही दिशा में थीं। एक बड़ा सवाल यह है कि क्या पार्टी को अपनी छवि और कार्यशैली में बदलाव लाने की जरूरत है.

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