जनता से AAP का सिर्फ इतना नाता, 5 साल में असेंबली में सिर्फ 74 दिन कामकाज
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जनता से 'AAP' का सिर्फ इतना नाता, 5 साल में असेंबली में सिर्फ 74 दिन कामकाज

जनता अपने नुमाइंदों को संसद-विधानसभा में समस्याओं को उठाते हुए देखना चाहती है। लेकिन जन सरोकार का दावा करने वाली आप सरकार ने असेंबली के सिर्फ पांच बैठकें बुलाईं


Delhi Assembly Session: डेढ़ करोड़ से अधिक मतदाता दिल्ली में पांच फरवरी को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इस दफा के चुनाव में कुल 699 उम्मीदवार किस्मत आजमाने के लिए चुनावी रण में हैं। क्या आम आदमी पार्टी को तीसरी दफा सरकार बनाने का मौका मिलेगा। क्या बीजेपी 27 साल बाद सत्ता में वापसी कर पाएगी। क्या कांग्रेस का 11 साल का सूखा खत्म होगा। इन सबके बीच जनता के सामने आप सरकार (AAP Government) की विपक्ष ने पोल खोलते हुए विधानसभा सत्र को लेकर कई तरह के सवाल उठाए। ऐसे में आप की भी दिलचस्पी होगी कि अरविंद केजरीवाल और सीएम आतिशी के कार्यकाल में सातवीं विधानसभा के कितने सत्र बुलाए गए थे।

पीआरएस इंडिया (PRS India Report) की रिपोर्ट के अनुसार,सातवीं दिल्ली विधानसभा अपने पांच साल के कार्यकाल में केवल 74 दिनों के लिए ही बैठी। यह पिछली सभी विधानसभाओं की तुलना में सबसे कम है। इस अवधि के दौरान केवल 14 विधेयक पारित किए जिनमें से पांच विधायकों का नाता मंत्रियों और अन्य प्रमुख अधिकारियों के वेतन और भत्ते बढ़ाने से संबंधित थे। इन्हें उसी दिन पारित कर दिया गया जिस दिन इन्हें पेश किया गया था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कानूनों में संशोधन करने वाले पांच विधेयकों को तीन दिनों के भीतर मंजूरी दे दी गई जबकि शिक्षा, बिजली सुधार और पर्यटन सहित अन्य विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कर दिया गया जिनमें से कुछ को पेश किए जाने के एक दिन बाद ही पारित कर दिया गया।

PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में विधानसभा की बैठकों की संख्या और विधायी गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।

बैठकों की संख्या

सातवें विधानसभा के कार्यकाल में, विधानसभा ने कुल 74 दिन बैठकों का आयोजन किया, जो अब तक के सभी पांच वर्षीय कार्यकालों में सबसे कम है। इसका औसत लगभग 15 दिन प्रति वर्ष बैठकों का रहा। प्रत्येक बैठक में औसतन तीन घंटे की कार्यवाही हुई।

विधायी कामकाज

इस अवधि में, विधानसभा ने कुल 14 विधेयकों को पारित किया, जो पिछले कार्यकालों की तुलना में कम हैं। इनमें से पांच विधेयकों ने विधायकों, मंत्रियों, विपक्ष के नेता, मुख्य सचेतक, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्तों में वृद्धि की। ये विधेयक जुलाई 2022 में पारित हुए और राष्ट्रपति की स्वीकृति फरवरी 2023 में मिली।

समितियों की भूमिका:

दिल्ली विधानसभा में, पारित किए गए विधेयकों को समितियों के पास भेजने की परंपरा नहीं रही है। आखिरी बार 2012 में दिल्ली रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरिजेस बिल, 2012 को चयन समिति के पास भेजा गया था।

प्रश्नकाल

प्रश्नकाल, जिसमें सदस्य मंत्रियों से प्रशासनिक मामलों पर प्रश्न पूछते हैं, केवल नौ बार आयोजित किया गया। यह संख्या विधानसभा की कुल बैठकों का एक छोटा हिस्सा है।

कार्यकाल की संरचना

सत्रों को बिना समापन के विभाजित किया गया, जिससे कई बार विधानसभा केवल एक या दो दिन के लिए बैठी। यह कार्यप्रणाली विधानसभा की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिह्न उठाती है।

सातवें दिल्ली विधानसभा के कार्यकाल में बैठकों की संख्या में कमी, विधायी गतिविधियों की सीमितता, समितियों की निष्क्रियता, और प्रश्नकाल की दुर्लभता जैसी चुनौतियां सामने आईं। इन पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में विधानसभा की कार्यप्रणाली को और अधिक प्रभावी और उत्तरदायी बनाया जा सके।

पिछले विधानसभा के कार्यकाल में कामकाज
सबसे पहले नजर डालते हैं कि 1993 से लेकर 2015 तक कितना कामकाज हुआ था। 1993-98 में कुल 130 दिन, 1998-2003 के बीच 106 दिन, 2003-2008 में 104 दिन, 2008-2013 में 104 दिन, 2014 में सात दिन, 2015-2020 में 106 दिन कामकाज हुआ था। अगर 2020-2025 को देखें तो पांच साल में कुल पांच सत्र बुलाए गए। पहले सत्र में न्यूनतम एक दिन और अधिकतम 3 दिन काम हुआ। दूसरे सत्र में न्यूनतम एक दिन अधिकतम पांच दिन, तीसरे सेशन में न्यूनतम 2 और अधिकतम 6 दिन, चौथे सेशन में न्यूनतम 1 और अधिकतम 8 दिन, पांचवें सेशन में न्यूनतम और अधिकतम 2 दिन काम हुआ। यानी कि आप सरकार में जिसमें अधिकतम अवधि तक अरविंद केजरीवाल सीएम रहे कामकाज अधिकतम आठ दिन हुआ।

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