यूँ ही नहीं जाटों पर गरमाई दिल्ली की राजनीति, जाट वोटर्स की भूमिका महत्वपूर्ण
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यूँ ही नहीं जाटों पर गरमाई दिल्ली की राजनीति, जाट वोटर्स की भूमिका महत्वपूर्ण

आखिर क्यों केजरीवाल ने जाटों के नाम खेला जातिवाद का खेल, नतीजे बताएँगे केजरीवाल पास होंगे या फेल. भाजपा ने जिस तरह से आप की इस चाल का जवाब दिया है, उससे आप के लिए चुनौती पैदा हो गयी है.


Delhi Assembly Elections 2025 : दिल्ली विधानसभा चुनाव के आगाज़ के साथ ही राजनीती का पारा चढ़ गया है. सबसे हैरानी की बात ये है की पिछले 11 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी अब अपने शुरूआती सिद्धांतों को पीछे छोड़ती जा रही है. गाड़ी बंगला की बात तो पुरानी हो ही चुकी थी, अब आम आदमी पार्टी ने जातिवाद का सहारा लेने का एक प्रयास भी किया है. इसके लिए अचानक से आप के राष्ट्रिय संयोजक अरविन्द केजरीवाल को जाटों के लिए आरक्षण की याद आ गयी. वहीँ आप के इस दाव पर भाजपा को भी सक्रीय होते देर नहीं लगी और भाजपा ने आप की इस गेंद को उसी के पाले में डालने का प्रयास किया.

अब दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिहाज से ये समझना जरुरी है कि आखिर ऐसा क्या है जो जाटों को लेकर आम आदमी पार्टी और भाजपा काफी सक्रीय हो गए? तो सबसे पहली बात ये कि दिल्ली के कुल वोटरों की संख्या में जाटों की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है. दूसरा कारण ये कि जाटों की इस हिस्सेदारी का असर लगभग 28 विधानसभा पर है, जिनमें से 8 सीटें पूरी तरह से जाट बहुल हैं. यही वजह है कि इस बिरादरी को लेकर इस चुनावी समर में राजनीती तेज हो गयी.


दिल्ली की राजनीति में जाट समुदाय का प्रभाव सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं है, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बीजेपी और अन्य पार्टियों के लिए जाट वोटर्स को साधना आगामी चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है.


बात करते हैं आम आदमी पार्टी और भाजपा की
आम आदमी पार्टी की बात करें तो जाट बहुल 8 सीटों में से 5 सीटें फिलहाल आप के कब्जे में है. सूत्रों की माने तो इस बार परिस्थिति थोड़ी अलग है. इस बार दिल्ली देहात में आप को लेकर कोई बहुत ख़ास समर्थन नहीं दिख रहा है. रही बात जाटों की तो जाटों में भी आप को लेकर कोई दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही है. इसका मतलब ये नहीं कि सभी जाट आप के विरोध में हैं लेकिन मामला 2015 और 2020 से ज्यादा टाइट हो चुका है, जिसका खामियाजा आप को भुगतना पड़ सकता है.

आप में कोई बड़ा जाट नेता नहीं - आम आदमी पार्टी के अन्दर कोई कोई भी बड़ा जाट नेता नहीं है, जिसका खुद का कोई वजूद हो या फिर पार्टी के अन्दर उसका कोई अहमियत वाला ओहदा हो.

लाल डोरा के मुद्दे पर आप के प्रति नाराज़गी - दिल्ली देहात में रहने वाले लोग, जिनमें जाट भी शामिल हैं, उनके अन्दर लाल डोरे के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के प्रति नाराज़गी है. इसकी वजह से ग्रामीण दिल्ली का वोटर आप के प्रति नाराज़ भी है.

हिंदुत्व भी है एक वजह
- सूत्रों का कहना है कि दिल्ली देहात में भी कहीं न कहीं हिंदुत्व एक मुद्दा बन चुका है. इसी वजह से दिल्ली के जो जाट हैं उनमें से भी कई लोग ऐसे हैं, जो इस विषय पर अपनी राय रखते हैं और इस वजह से कहीं न कहीं भाजपा को लेकर उनके मन में नर्म रुख इस बार दिख रहा है.

साहब सिंह वर्मा के बेटे होने की वजह से प्रवेश वर्मा को कुछ हद तक मिल रही है सहानुभूति - अब अगर बात करें जाटों के बड़े नाम की तो इसमें कोई दो राय नहीं रही कि दिल्ली के जाटों में साहब सिंह वर्मा काफी बड़ा नाम था. उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे प्रवेश साहब सिंह वर्मा राजनीती में आये. हालाँकि उनका बिरादरी में अपने पिता जैसा कद तो नहीं है लेकिन पिता के नाम की वजह से उनके साथ सहानुभूति जरुर है.

आरक्षण का मुद्दा आप के लिए उल्टा भी पड़ सकता है : यूँ तो आम आदमी पार्टी नैरेटिव सेट करने में माहिर मानी जाती है लेकिन चुनावी मौसम में कौनसी चाल कब पलट जाए इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ ऐसा ही जाट आरक्षण को लेकर छेड़े गए राग को लेकर भी कहा जा रहा है.
राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि जब अरविन्द केजरीवाल ने जाटों के आरक्षण का मुद्दा छेड़ा तो एक बार को लगा कि शायद केजरीवाल ने भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर दी है, लेकिन थोड़ी देर बाद ही जब भाजपा की तरफ से प्रवेश साहब सिंह वर्मा ने बतौर जाट नेता पार्टी का पक्ष रखा तो आप के लिए चुनौती खड़ी हो गयी.

हरियाणा के नैरेटिव को भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहती है आप - आप सूत्रों की बात करें तो हरियाणा विधानसभा चुनाव में सब जगह ये सन्देश गया कि भाजपा ने जाट बनाम अन्य बिरादरी के तहत चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. आम आदमी पार्टी ने जाट आरक्षण का मुद्दा इस वजह से भी उठाया कि दिल्ल्ली विधानसभा चुनाव में ये जता सके कि भाजपा जाटों के विरुद्ध है.

OBC कमीशन : प्रवेश वर्मा ने कहा कि वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने OBC कमीशन को संवैधानिक दर्जा दे दिया है. यानी अब OBC के तहत किस जाति को आरक्षण मिलेगा ये OBC कमीशन की सिफारिश के बाद ही तय होगा. लेकिन उससे पहले सम्बंधित राज्य की सरकार को एक प्रस्ताव पास करते हुए OBC कमीशन के पास भेजना अनिवार्य है. अब सवाल ये उठता है कि OBC कमीशन कमिशन बनने के 6 साल तक आम आदमी पार्टी कहाँ सो रही थी.
2013 से 2018 तक आम आदमी पार्टी ने जाटों को OBC के तहत दर्जा दिलवाने के लिए प्रयास क्यों नहीं किये.
आम आदमी पार्टी से भाजपा में आये दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत ने आप में रहते हुए ही अरविन्द केजरीवाल को पत्र लिखते हुए आरक्षण दिलाने की मांग की थी लेकिन उनकी बात भी नहीं सुनी गयी.


जाट वोटर्स का प्रभाव:
दिल्ली में जाट समुदाय का राजनीतिक प्रभाव काफी मजबूत है. यहां की कुल वोटर संख्या का लगभग 10 प्रतिशत जाट वोटर्स हैं. दिल्ली की 8 ग्रामीण सीटें जाट बहुल हैं, और इन पर जीत-हार का फैसला जाट मतदाता करते आए हैं.

वर्तमान राजनीतिक समीकरण:
जाट बहुल 8 सीटों में से 5 सीटों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है, जबकि 3 सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं. जाट वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी लगातार प्रयासरत है, और इसे पहले भी इस समुदाय का समर्थन मिलता रहा है.

जाट समुदाय की संगठित शक्ति:
जाट समुदाय आमतौर पर एक संगठित वोट बैंक की तरह काम करता है. यह समुदाय अपने राजनीतिक हितों को समझते हुए एकजुट होकर मतदान करता है, जिससे उनकी सामूहिक शक्ति बढ़ जाती है. जब जाट समुदाय एक पार्टी के पक्ष में मतदान करता है, तो यह चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है.

ग्रामीण इलाकों में दबदबा:
दिल्ली के लगभग 60 प्रतिशत गांवों पर जाट वोटर्स का प्रभाव है. ग्रामीण इलाकों की सीटों पर हार-जीत का फैसला मुख्य रूप से जाट मतदाता ही करते हैं. बीजेपी ने इस समुदाय के समर्थन को बनाए रखने के लिए स्वर्गीय साहेब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार बनाया है.

जातीय और धार्मिक समीकरण:
दिल्ली में जातीय और धार्मिक समीकरण का चुनावी राजनीति पर बड़ा असर है. 81 प्रतिशत हिंदू वोटर्स में जाट समुदाय का प्रभाव प्रमुख है. इस समुदाय की राजनीतिक सक्रियता और एकजुटता इसे अन्य जातीय समूहों के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली बनाती है.

कांग्रेस ने आप और भाजपा दोनों पर साधा निशाना

दिल्ली कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर कहा कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जाट समाज को केंद्रीय सूची में दिल्ली सहित देश के नौ राज्यों में जाट आरक्षण 4 मार्च 2014 को प्रदान कर उसकी अधिसूचना क्रमांक 20012/29/2009-BC जारी कर दी थी.

दिल्ली के अलावा बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जारी की थी.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च 2015 को अपने फैंसले में इसे ख़ारिज कर दिया, क्योंकि 2015 में केंद्र की मोदी सरकार ने उसकी पैरवी सुप्रीम कोर्ट में नहीं की और न ही दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उस वक़्त मुखरता से उस वक्त आवाज उठाई. अब जब दिल्ली में चुनाव हैं, तो केजरीवाल और मोदी सरकार जाट समाज के भावनाओं से खेल रहे हैं जो बेहद शर्मनाक हैं.


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