
क्यों खिंचे चले जाते हैं भारतीय मेडिकल छात्र ईरान की ओर? अब अनिश्चित भविष्य से परेशान
भारत में किफायती ट्यूशन फीस, प्रतिस्पर्धी NEET और महंगे निजी कॉलेजों की तुलना में आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण हजारों लोग चिकित्सा की पढ़ाई के लिए ईरान जा रहे हैं।
हाल ही में संघर्षग्रस्त ईरान से सुरक्षित निकाले गए लगभग 2,500 भारतीय नागरिकों में बड़ी संख्या मेडिकल छात्रों की है। The Federal ने कुछ छात्रों से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि उन्होंने ईरान में MBBS पढ़ाई का विकल्प क्यों चुना। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1,700 भारतीय छात्र ईरान में पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें से अधिकांश चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हैं, जबकि कुछ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।
सस्ता और सुलभ विकल्प
छात्रों ने बताया कि भारत की तुलना में ईरान में मेडिकल पढ़ाई काफी सस्ती है। इसके साथ ही वहां का माहौल सुरक्षित, संस्कृति मैत्रीपूर्ण और पाठ्यक्रम सरल है। वहीं, भारत में NEET जैसे अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परीक्षा को पार करना और निजी मेडिकल कॉलेजों की भारी फीस एक बड़ी चुनौती है।
NEET-UG 2025 में करीब 22 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया, जबकि देश में केवल 1.1 लाख MBBS सीटें हैं। इनमें से सिर्फ 58,000 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं। निजी कॉलेजों में फीस ₹70 लाख से ₹1 करोड़ तक पहुंचने के कारण छात्र ईरान को एक बेहतर और किफायती विकल्प मानते हैं। ईरान में सालाना फीस $4000 से $6000 (लगभग ₹3.3 से ₹5 लाख) के बीच है, जिसमें आवास भी शामिल होता है।
आसान प्रवेश प्रक्रिया
छात्रों ने बताया कि ईरान में बिना किसी प्रवेश परीक्षा के मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों में आसानी से प्रवेश मिल जाता है। वहीं विश्वविद्यालयों में आधुनिक चिकित्सा उपकरण और तकनीकी संसाधन भी हैं। तेहरान स्थित शाहिद बेहेश्ती यूनिवर्सिटी की तीसरे वर्ष की छात्रा फरवाह ज़ैनब ने बताया कि ईरान में सुरक्षित वातावरण के साथ रहने का खर्च भी कम है और परीक्षा पैटर्न MCQ आधारित होता है, जिससे NEET PG जैसी परीक्षाओं की तैयारी में भी मदद मिलती है। हालांकि, ईरान में MBBS पाठ्यक्रम भारत की तुलना में लंबा (करीब 6 वर्ष) होता है।
पढ़ाई में रुकावट
ईरान-इजरायल संघर्ष के चलते छात्रों की पढ़ाई में बड़ा व्यवधान आया है और वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। सोबिया सज्जाद, जो हाल ही में दिल्ली लौटी हैं, ने बताया कि कॉलेज प्रशासन ने छात्रों से कहा है कि वे इस समय को छुट्टियों के रूप में लें और आगे की जानकारी जल्द दी जाएगी। उन्होंने कहा कि अब परीक्षा का समय था, उसके बाद अगस्त-सितंबर में डेढ़ महीने की छुट्टी होती। हम चाहते हैं कि हालात सामान्य हों, ताकि हम यूक्रेन जैसे हालात का सामना न करें।
यूक्रेन संकट जैसी चिंता
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान लौटे भारतीय छात्रों को भारत में न तो डिग्री जारी रखने की अनुमति मिली और न ही इंटर्नशिप करने की। NMC ने केवल विदेश में अन्य विश्वविद्यालयों में माइग्रेशन की अनुमति दी थी, भारत में नहीं। अब ईरान से लौटे छात्र भी वैसी ही स्थिति का डर झेल रहे हैं।
इंतजार और अनिश्चितता
हालांकि, संघर्षविराम की घोषणा हो चुकी है, लेकिन छात्र अभी भी स्थिति के स्थिर होने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। कई विश्वविद्यालय छात्रों के संपर्क में हैं, लेकिन शिक्षा मंत्रालय की ओर से अब तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। छात्रा ज़ारा अनीम ने बताया कि विश्वविद्यालय लगातार संपर्क में है और परीक्षा की तारीखें टाल दी गई हैं। हम स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय से अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।
भारत में प्रैक्टिस के लिए जरूरी FMGE
विदेश से मेडिकल डिग्री लेकर लौटने वाले छात्रों को भारत में मेडिकल प्रैक्टिस शुरू करने से पहले*Foreign Medical Graduate Examination (FMGE) पास करना अनिवार्य होता है। हर साल इस परीक्षा में 35,000 से 40,000 छात्र भाग लेते हैं, लेकिन इनमें से केवल 30% ही पास हो पाते हैं। हालांकि, ईरान का पाठ्यक्रम भारत के समान होने के कारण वहां से पढ़े छात्रों को FMGE पास करना अपेक्षाकृत आसान होता है। डॉ. मोहम्मद मोमिन खान, उपाध्यक्ष (जम्मू-कश्मीर), ऑल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने कहा कि ईरान का सिलेबस भारत के समान है, इसलिए छात्र अच्छे से तैयार हो पाते हैं। उम्मीद है कि यह संघर्ष ज्यादा लंबा न चले और छात्रों का भविष्य सुरक्षित रहे।