साइकिल मकेनिक से UPSC IAS रैंकर तक, वरुण कुमार बरनवाल की है प्रेरणादायक कहानी
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साइकिल मकेनिक से UPSC IAS रैंकर तक, वरुण कुमार बरनवाल की है प्रेरणादायक कहानी

अगर मेहनत सच्चे दिल से की जाए तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता.


महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे वरुण कुमार बरनवाल की जिंदगी एक साधारण लड़के की तरह शुरू हुई. बचपन से ही पढ़ाई में होशियार वरुण हमेशा क्लास के टॉपर रहते थे, लेकिन दसवीं कक्षा के बाद उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ आया. उनके पिता का अचानक निधन हो गया और पूरे परिवार की जिम्मेदारी वरुण के कंधों पर आ गई.

साइकिल मकेनिक की दुकान संभाली

पढ़ाई छोड़कर वरुण को अपने पिता की साइकिल मकेनिक की दुकान संभालनी पड़ी ताकि परिवार का गुजारा हो सके. उनकी मां दूसरों के घरों में काम करती थीं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी. वरुण का सपना पढ़ाई जारी रखने का था, लेकिन कम आमदनी के चलते ये मुमकिन नहीं हो पा रहा था.

एक डॉक्टर की मदद से बदली किस्मत

वरुण की मेहनत और लगन को देखकर एक जान-पहचान के डॉक्टर ने उनकी मदद की. डॉक्टर की सहायता से वरुण ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उनकी मां ने हिम्मत दिखाई और वरुण को शहर भेजा ताकि वो ऊंची पढ़ाई कर सकें. खुद कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मां ने अपने बेटे के सपनों को उड़ान देने का निर्णय लिया.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई

वरुण ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एक नौकरी भी जॉइन कर ली, लेकिन उनके मन में हमेशा से एक सपना था. IAS ऑफिसर बनने का. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से UPSC की तैयारी में जुट गए.

बिना कोचिंग, खुद की मेहनत से की तैयारी

UPSC परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं था. न तो कोचिंग के पैसे थे, न ही ढेर सारी किताबें. उनके दोस्तों ने अपने नोट्स और किताबें शेयर कीं. वरुण ने खुद एक सटीक स्टडी प्लान तैयार किया. रोज 18 घंटे पढ़ाई करते थे, कई बार तो सिर्फ एक समय का खाना खाकर भी पढ़ाई जारी रखते थे. उन्होंने बिना किसी कोचिंग के खुद से पढ़ाई की, हर एक टॉपिक को गहराई से समझा और कड़ी मेहनत की. कड़ी मेहनत और मजबूत इरादों का फल आखिरकार मिला. जब UPSC के परिणाम घोषित हुए, तो वरुण ने पूरे देश में 32वीं रैंक हासिल की. उनके परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उनकी मां, जो हमेशा उनके सपनों का सहारा बनीं, की आंखों में गर्व के आंसू थे.

वरुण कुमार बरनवाल की ये कहानी हमें सिखाती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, हौसला बुलंद हो तो रास्ते मिल ही जाते हैं. अगर मेहनत सच्चे दिल से की जाए तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता. सपनों को पाने के लिए संसाधनों की कमी बाधा नहीं बनती, अगर इरादे मजबूत हों.

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