
IIT और IIM: शिक्षा के मंदिर या मानसिक दबाव के केंद्र?
उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की रोकथाम पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक राष्ट्रीय कार्यबल का गठन किया गया था। लेकिन हाल ही में दिए गए एक आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि लगभग 57,000 संस्थानों ने अब तक कार्यबल के सर्वेक्षण का जवाब नहीं दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (IIT Kharagpur) को नोटिस जारी किया, जब एक दलित छात्रा, जिसे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है, IIT दिल्ली को ट्रांसफर नहीं होने दी गई, ताकि वह ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में सस्ती और बेहतर इलाज करवा सके। कोर्ट ने IIT खरगपुर, IIT दिल्ली और AIIMS सभी से इस मामले में जवाब तलब किया। यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट के उस महत्वपूर्ण जुलाई फैसले के कुछ समय बाद आया है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य को “जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग” माना गया।
मामले की पृष्ठभूमि और बढ़ती चिंताएं
यह छात्रा प्रथम वर्ष की आर्किटेक्चर की छात्रा है। IIT खड़गपुर की प्रारंभिक मना करने की स्थिति से यह स्पष्ट हुआ कि शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां कितनी गहरी हैं। IIT, IIM जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में ह्ल-चूल से लेकर आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है।
अन्य आत्महत्या संबंधी घटनाएं
इस वर्ष मार्च में आंध्र प्रदेश की एक दलित छात्रा IIT रोपड़ में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। IIT कानपुर में पिछले सप्ताह एक छात्र को हॉस्टल के कमरे में मृत पाया गया – यह वर्ष में दूसरी घटना है (पहली घटना फरवरी में PhD छात्र की थी)। अगस्त में IIT बॉम्बे में एक छात्र कथिततः हॉस्टल की छत से कूदकर अपनी जान गंवा बैठा। BITS पिलानी – गोवा परिसर में भी इस वर्ष 10 महीनों में लगातार पांच आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं। IIM तिरुचिरापल्ली और IIM बैंगलोर में भी इसी तरह की घटनाएं सामने आई हैं।
छात्रों की आवाज
छात्र बताते हैं कि कोर्स का भारी लोड, भयानक मूल्यांकन प्रणाली, पाठ्यक्रम की कठिनाईयां, क्लबों द्वारा बहिष्करण और काउंसलर से मिलने में लगने वाला कलंक (stigma) आदि मानसिक दबाव बढ़ाते हैं। जाति और लिंग आधारित भेदभाव भी छात्रों को असहज महसूस कराने का एक बड़ा कारण है। IIT दिल्ली के 2019 के एक अध्ययन में यह पाया गया कि आरक्षित वर्ग के 75% छात्र जातिगत टिप्पणियों से प्रभावित होते हैं।
संस्थागत जवाबदेही और सुधार की पहल
IIT दिल्ली ने 2023‑24 में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए एक 12 सदस्यीय कमेटी का गठन किया, जिसका अध्यक्षता प्रोफ़ेसर संतोष कुमार चतुर्वेदी ने की। इस रिपोर्ट में संस्थागत प्रतिस्पर्धा, कोचिंग थकावट, जाति‑लिंग पूर्वाग्रह, ग्रेडों पर अधिक जोर आदि निदान किए गए। सुधार के सुझावों में शामिल हैं: आरक्षणों की नीति में सुधार, प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए अनिवार्य परामर्श, संवेदनशीलता प्रशिक्षण, पाठ्यभार में संतुलन, नेतृत्व पात्रता मानदंडों में बदलाव आदि। विभिन्न IITs और IIMs ने वेलनेस सेल, काउंसलिंग सेवाएं, छात्रों‑काउंसलर मीटिंग्स, वेलनेस वर्कशॉप्स आदि तैयार की हैं।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और भविष्य की दिशा
सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष मार्च में "छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य एवं आत्महत्या की रोकथाम" विषयक राष्ट्रीय कार्यबल (National Task Force, NTF) गठित किया। 10 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन संस्थानों पर कड़ी टिप्पणी की, जिन्होंने NTF सर्वे का जवाब नहीं दिया है। लगभग 57,000 संस्थाएं अब तक सर्वेक्षण में हिस्सा नहीं ले चुकी हैं। अदालत ने कहा कि अगर ऐसे संस्थान आगे भी सहयोग नहीं करेंगे तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जो उनके लिए बदनाम करने वाली हो सकती है।
(समीर कर पुरकायस्थ, श्वेता त्रिपाठी और सलीम के इनपुट के साथ)