जेएनयू में शर्मनाक अध्याय: प्रोफेसर यौन उत्पीड़न मामले में बर्खास्त
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जेएनयू परिसर जहां यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया और प्रोफेसर को बर्खास्त किया गया

जेएनयू में शर्मनाक अध्याय: प्रोफेसर यौन उत्पीड़न मामले में बर्खास्त

जापानी अधिकारी की शिकायत और रिकॉर्डिंग के आधार पर जेएनयू प्रशासन ने लिया सख्त एक्शन, ICC की रिपोर्ट के बाद कार्यकारी परिषद ने सुनाया फैसला


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. स्वरण सिंह को यौन उत्पीड़न के आरोप में बर्खास्त कर दिया है। यह कदम विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की विस्तृत जांच और सिफारिशों के बाद उठाया गया। यह मामला एक जापानी महिला अधिकारी की शिकायत के बाद सामने आया, जो दिल्ली स्थित जापानी दूतावास में कार्यरत हैं और विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों के आयोजन में नियमित रूप से प्रोफेसर के संपर्क में थीं।

जापानी अधिकारी की शिकायत ने खोली परतें

इस मामले में मुख्य रूप से प्रोफेसर स्वरण सिंह और जापानी दूतावास की एक महिला अधिकारी शामिल थीं। महिला अधिकारी ने आरोप लगाया कि सिंह ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया और संवाद के दौरान कई बार मर्यादा का उल्लंघन किया। उन्होंने शिकायत के साथ बातचीत की रिकॉर्डिंग भी बतौर सबूत प्रस्तुत की, जो जांच में निर्णायक सिद्ध हुई।

मई 2023 में हुई शुरुआत, अप्रैल 2025 में हुआ निष्कर्ष

इस पूरे मामले की शुरुआत मई 2023 में हुई जब विश्वविद्यालय को महिला अधिकारी द्वारा आधिकारिक शिकायत प्राप्त हुई। हालांकि, घटना कुछ महीने पहले एक विश्वविद्यालय कार्यक्रम के दौरान हुई थी। जांच करीब एक साल चली और अप्रैल 2025 में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने बैठक कर प्रोफेसर की सेवा समाप्त करने का निर्णय लिया।

जेएनयू परिसर बना घटनास्थल, ICC ने निभाई मुख्य भूमिका

घटना जेएनयू के कैंपस में एक अकादमिक सम्मेलन के दौरान हुई। प्रोफेसर और अधिकारी के बीच यह संवाद सम्मेलन से जुड़े समन्वय के दौरान हुआ। विश्वविद्यालय की ICC ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पूरी जांच की और रिपोर्ट कार्यकारी परिषद के समक्ष पेश की।

'जीरो टॉलरेंस नीति' के तहत सख्त कार्रवाई

जेएनयू प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई विश्वविद्यालय की 'यौन उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति' का हिस्सा है। कुलपति संतीश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि यह निर्णय सिर्फ न्याय दिलाने के लिए नहीं, बल्कि अकादमिक संस्थानों में अनुशासन और सुरक्षा की भावना बनाए रखने के लिए लिया गया है।

इस मामले ने यह भी उजागर किया कि प्रोफेसर सिंह के खिलाफ पहले भी कई बार इसी तरह की शिकायतें आई थीं। जानकारी के अनुसार, उन पर पहले भी यौन दुराचार के लगभग आठ आरोप लगे थे। एक बार वे इस कारण एसोसिएट प्रोफेसर पद से इस्तीफा भी दे चुके थे, लेकिन बाद में फिर से प्रोफेसर पद पर नियुक्त कर दिए गए थे।

ICC की रिपोर्ट बनी कार्रवाई की नींव

ICC की रिपोर्ट में प्रोफेसर को दोषी ठहराया गया, जिसके बाद कार्यकारी परिषद ने उन्हें बर्खास्त करने का निर्णय लिया। इसी बैठक में तीन अन्य शिक्षकों पर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई—दो की तीन-तीन वेतनवृद्धियां रोकी गईं और तीसरे को संवेदनशीलता प्रशिक्षण लेने का आदेश दिया गया।

इसके साथ ही एक बड़ा बदलाव यह हुआ कि पहली बार छात्रों को ICC में प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई है। अब से छात्र प्रतिनिधियों का चुनाव कर उन्हें ICC का हिस्सा बनाया जाएगा।

तीन दशक की प्रतिष्ठित शैक्षणिक पृष्ठभूमि अब विवाद में घिरी

स्वरण सिंह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में तीन दशकों का अनुभव रखते हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए, जेएनयू से एमफिल और पीएचडी तथा स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टोरल डिप्लोमा किया है। वे IDSA, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, बीजिंग विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों से जुड़े रहे हैं।

उनकी प्रमुख कृतियों में इंडिया एंड ASEAN इन द इंडो-पैसिफिक, पॉलिटिक्स ऑफ क्लाइमेट चेंज, और चाइना एंड द इंडो-पैसिफिक शामिल हैं। वे भारतीय एशिया एवं प्रशांत अध्ययन कांग्रेस के महासचिव और एशियन स्टडीज एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

यह मामला भारत के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कड़े कदम उठाने की दिशा में एक अहम उदाहरण है। विश्वविद्यालय की कार्रवाई ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि चाहे आरोपी कितना भी वरिष्ठ या प्रतिष्ठित क्यों न हो, अनुशासन और नैतिकता से समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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