यूजीसी का गणित का नया मसौदा पुराना और पीछे ले जाने वाला: प्रोफेसर अंबर हबीब
x

यूजीसी का गणित का नया मसौदा पुराना और पीछे ले जाने वाला: प्रोफेसर अंबर हबीब

गणित के प्रोफेसर का मानना ​​है कि 'भगवाकरण' को बढ़ावा देने वाला नया ढांचा छात्रों को आधुनिक शोध और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए अयोग्य बना देगा


Learning Outcome Based Curriculum Framework : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने हाल ही में लर्निंग आउटकम बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF) के तहत नौ विषयों के लिए मसौदा पाठ्यक्रम जारी किया है। आधिकारिक रूप से इसका उद्देश्य पाठ्यक्रम को लचीला और नवाचारपूर्ण बनाना बताया गया है, लेकिन विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का कहना है कि यह मसौदा “भगवाकरण” (saffronisation) की ओर इशारा करता है।

नए पाठ्यक्रम में राजनीति विज्ञान में रामायण से सतत विकास की थीम, मानवशास्त्र में वास्तु और आयुर्वेद, वाणिज्य में भारतीय दर्शन, और गणित में मंडल ज्यामिति, यंत्र तथा विषय का “भारतीय दृष्टिकोण” जैसे नए अध्याय जोड़े गए हैं।

शिव नादर यूनिवर्सिटी के गणित प्रोफेसर अंबर हबीब का कहना है कि यह नया ढांचा न केवल भगवाकरण की ओर झुकाव दिखाता है बल्कि छात्रों को कमजोर और पिछड़ा बना देगा, जिससे वे आधुनिक शोध और पीएचडी स्तर की पढ़ाई के योग्य नहीं रह जाएंगे।

पुराने जमाने के पाठ्यक्रम की वापसी

प्रो. हबीब ने कहा कि जब उन्होंने 25 साल पहले भारत में कॉलेज स्तर पर पढ़ाना शुरू किया था, तब भी कई विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम इसी तरह का था। हालांकि आईआईटी और शोध संस्थानों में स्थिति अलग थी और धीरे-धीरे सभी जगह सुधार हुआ। अगले 10-15 वर्षों में गणित की पढ़ाई आधुनिक और शोधपरक हुई।

लेकिन नए LOCF मसौदे में वे सुधार मिटा दिए गए हैं। फिर से छात्रों को सूत्र याद कराने वाली गणित पढ़ाई जाएगी। उन्होंने बताया कि सूची में कुछ किताबें 1910, 1922 और 1924 की हैं। एनालिटिक ज्योमेट्री और पुराने जमाने की मैकेनिक्स जैसे विषय, जिन्हें दशकों पहले खत्म कर दिया गया था, अब दोबारा मुख्य अनिवार्य पाठ्यक्रम में शामिल कर दिए गए हैं।

स्कूल और कॉलेज शिक्षा से मेल नहीं

हबीब ने कहा कि पाठ्यक्रम का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह स्कूल स्तर की पढ़ाई के साथ तालमेल रखे। लेकिन पिछले 30-40 वर्षों में स्कूल शिक्षा बहुत बदली है, जबकि यह पाठ्यक्रम उससे पूरी तरह असंबद्ध है।

इसके अलावा, जो छात्र इस कार्यक्रम से निकलेंगे, उनके सामने तीन रास्ते होते हैं –

केवल गणित में विशेषज्ञ बनना।

गणित के साथ-साथ उसके अनुप्रयोगों को समझना।

वे छात्र जो आगे गणित नहीं करना चाहते लेकिन वित्त, बीमा, मॉडलिंग और अन्य विज्ञानों जैसे क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।

नया पाठ्यक्रम इन तीनों समूहों की ज़रूरतें पूरी नहीं करता।

पीएचडी की तैयारी असंभव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का दावा है कि 4 साल का स्नातक कार्यक्रम छात्रों को सीधे पीएचडी में प्रवेश योग्य बनाएगा, बिना मास्टर डिग्री के। लेकिन हबीब का कहना है कि यह पाठ्यक्रम 3 साल के पुराने कार्यक्रम से भी कम जानकारी देगा।

जो छात्र इस कार्यक्रम से बाहर निकलेंगे, वे न तो मास्टर्स के लिए तैयार होंगे और न ही सीधे पीएचडी के लिए। उनके अनुसार, गणित का यह ढांचा अन्य विषयों से भी ज्यादा पिछड़ा हुआ है क्योंकि इसमें 30-40 साल पुराने पाठ्यक्रम की नकल की गई है और 100 साल पुरानी किताबों को सुझाया गया है।

आधुनिक गणित के अहम हिस्से गायब

हबीब ने उदाहरण देते हुए कहा कि कैलकुलस आधुनिक इंजीनियरिंग, भौतिकी और अर्थशास्त्र का आधार है। स्कूल में छात्र केवल इसकी बुनियादी गणनाएँ सीखते हैं, जबकि विश्वविद्यालय स्तर पर इसे रियल एनालिसिस के जरिए गहराई से पढ़ाया जाता है। सामान्यतः विश्वविद्यालय में दो रियल एनालिसिस पाठ्यक्रम होते हैं, जिनके बाद मैट्रिक स्पेसेस जैसी पढ़ाई होती है।

लेकिन नए पाठ्यक्रम में केवल एक बुनियादी रियल एनालिसिस कोर्स है और वह भी सातवें सेमेस्टर में। परिणामस्वरूप, छात्र पहले ही डिफरेंशियल इक्वेशंस और ऑप्टिमाइजेशन जैसे विषय बिना उचित आधार के पढ़ेंगे, जिससे पढ़ाई सिर्फ सूत्र-आधारित और रटने वाली रह जाएगी।

कुछ छात्र तीन साल बाद ही कोर्स छोड़ देंगे और रियल एनालिसिस तक नहीं पहुँच पाएंगे। ऐसे छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गणित के स्नातक ही नहीं माने जाएंगे।

प्राचीन भारतीय गणित और इतिहास

प्रो. हबीब ने कहा कि उन्हें भी प्राचीन भारतीय गणित से लगाव है और उन्होंने इसे कई बार पढ़ाया है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और दिलचस्प है। लेकिन इसके अध्ययन में यह भी स्पष्ट है कि भारतीय गणितज्ञ यूनानी विद्वानों से सीखते थे और उनके नामों का उल्लेख भी करते थे।

नए पाठ्यक्रम में इसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया है और लिखा गया है कि विदेशी विद्वानों ने हमारी विद्या दबाई। हबीब ने इसे ऐतिहासिक बेईमानी बताया।

उन्होंने यह भी कहा कि पाठ्यक्रम केवल उच्च वर्ग के गणितज्ञों – आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, भास्कर – पर केंद्रित है, जबकि समाज के अन्य हिस्सों की गणितीय समझ की उपेक्षा की गई है। यह संकीर्ण दृष्टिकोण ही भारतीय गणित के रुक जाने का एक कारण हो सकता है।

आधुनिक विषयों की जगह परंपरागत गणित

प्रो. हबीब ने कहा कि यदि प्राचीन भारतीय गणित को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया जाए तो कोई समस्या नहीं। लेकिन नए पाठ्यक्रम में बेसिक प्रोग्रामिंग और न्यूमेरिकल मेथड्स जैसे जरूरी आधुनिक विषयों को वैकल्पिक बना दिया गया है। दूसरी ओर, चुनावी विषयों में प्राचीन गणित भर दी गई है।

कई कॉलेजों में केवल इन्हीं कोर्सों की पेशकश होगी, जिससे छात्र 20वीं सदी की शुरुआत के बाद का आधुनिक गणित पढ़ ही नहीं पाएंगे।

गैर-गणित छात्रों के लिए स्थिति और भी खराब है, क्योंकि वैकल्पिक और वैल्यू-एडेड कोर्स लगभग सभी आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और भास्कर पर आधारित हैं। इस तरह गैर-गणित छात्र कोई उपयोगी या रोचक आधुनिक गणित नहीं सीख पाएंगे।

‘वैदिक गणित’ पर कड़ा सवाल

हबीब ने कहा कि पाठ्यक्रम में “वैदिक गणित” शब्द शामिल करना भ्रामक है। असल में यह 20वीं सदी में लिखी गई एक किताब पर आधारित कुछ गणना-युक्तियाँ हैं, जिनका वेदों से कोई संबंध नहीं है।

मशहूर गणितज्ञ एस.जी. दानी ने भी लिखा है कि यह न तो गणित है और न ही वैदिक। यह केवल तेज़ गणना करने की तरकीब है, लेकिन इसे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाना गुमराह करना है।


प्रोफेसर अंबर हबीब का कहना है कि यह नया पाठ्यक्रम अधूरा, पुराना और छात्रों को कमजोर बनाने वाला है। आधुनिक गणित के अनिवार्य हिस्सों को हटाकर और प्राचीन गणित को थोपकर यह छात्रों को शोध और उच्च शिक्षा से दूर कर देगा। इससे भारत के गणित शिक्षा और आम जनता की गणितीय समझ दोनों को गंभीर नुकसान होगा।

Read More
Next Story