ओडिशा में 45 साल तक पटनायक राज, 2 फीसद आबादी लेकिन दबदबा हर तरफ
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ओडिशा में 45 साल तक 'पटनायक राज', 2 फीसद आबादी लेकिन दबदबा हर तरफ

ओडिशा की राजनीति का जिक्र होते ही पटनायकों की बात होने लगती है. दरअसल उसके पीठे वजह यह है बीजू, जेबी और नवीन पटनायक ने लंबे समय तक राज करने में कामयाब रहे.


Odisha Political News: देश के अन्य राज्यों की तरह ओडिशा में भी आम चुनाव हो रहा है. इसके साथ ही विधानसभा के लिए भी मतदाता मत का इस्तेमाल करेंगे. अगर नवीन पटनायक को एक और मौका मिलता है तो वो देश में सबसे लंबे समय कर सीएम का रिकॉर्ड बनाएंगे. यदि बीजेपी उनसे सत्ता छीन पाने में कामयाब होती है तो अलग तरह की तस्वीर बनेगी. सामान्य तौर पर ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा में भले ही बीजू जनता दल को थोड़ा नुकसान हो. विधानसभा में वो एक बार फिर वापसी कर सकते हैं. हालांकि वी के पांडियन का जिक्र कर बीजेपी ओडिशा अस्मिता का सवाल उठा रही है. लेकिन यहां हम बात करेंगे तीन पटनायकों की जिनका 70 साल में 45 साल तक राज रहा है.

ओडिशा की राजनीति में तीन पटनायक

जब बात हम तीन पटनायक की करते हैं तो आपके मन में भी विचार उठ रहा होगा कि उनके नाम क्या हैं. दरअसल हम बात जानकी बल्लभ पटनायत, बीजू पटनायक और नवीन पटनायक की करेंगे. पटनायक का संबंध करन जाति से है हालांकि पटनायक समाज के लोग मोहंती टाइटल का भी इस्तेमाल करते हैं. ओडिशा में इस जाति समूह की आबादी करीब 2 फीसद है. लेकिन राजनीति में इनके दबदबे को आप ऐसे समझ सकते हैं कि पटनायकों ने 45 साल तक राज किया. अगर बात नवीन पटनायक की करें तो साल 2000 में वो सीएम बने. अगर एक बार फिर मौका मिलता है तो वो सिक्किम के एक्स सीएम पवन चामलिंग को पछाड़ कर सबसे लंबे कार्यकाल वाले सीएम बन जाएंगे. नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक 1961-63 और 1990- के बीच सीएम रहे. वहीं जानकी बल्लभ पटनायक 1980-89 और 1995-99 के बीच कुल 14 साल तक सीएम रहे.

77 साल के नवीन पटनायक ने कुंवारे हैं. वो कहते रहे हैं कि उनके परिवार का कोई दूसरा सदस्य राजनीति का हिस्सा नहीं बनेगा, हालांकि राजनीति के गलियारों में चर्चा होती थी कि शायद उनके भतीजे अरुन पटनायक या भतीजी गायत्री सियासत का हिस्सा हो सकती हैं. लेकिन वी के पांडियन का नाम जिस तेजी से उभरा उसमें ये नाम कयास मात्र रह गए हैं. इन तीनों पटनायक के अलावा नबकृष्ण चौधरी ने भी 1950-52 , 1952-56 तक ओडिशा की कमान संभाली थी. इनका भी नाता करन जाति से है.

ब्राह्मण, राजपूत, ट्राइबल भी रहे सीएम
ओडिशा की राजनीति में पटनायकों के अलावा ब्राह्मण, राजपूत और ट्राइबल(हेमानंद विस्वाल, गिरधर गमांग) भी सीएम रहे हैं. ब्राह्मण और करन जाति की कुल संख्या 10 फीसद से कम है. लेकिन ओडिशा की राजनीति इनके आसपास ही घूमती रही है. हालांकि ओडिशा की राजनीति को करीब से समझने वाले कहते हैं कि इस राज्य में जाति बहुत बड़ा मुद्दा कभी नहीं रहा है. यह बात अलग है कि शीर्ष जगहों पर बड़ी जातियों के लिए प्रभावी रहे हैं. गिरधर गमांग या हेमानंद विस्वाल के सीएम बनने को आप कांग्रेस हाईकमांड की कृपा मान सकते हैं. राज्य की आबादी में 22 फीसद आदिवासी, 17 फीसद अनुसूचित जाति और करीब 50 फीसद ओबीसी हैं.


आबादी में कम, दबदबा हर तरफ

अगर बात पटनायकों की करें तो ना सिर्फ सत्ता, सरकार, शासन-प्रशासन बल्कि विपक्ष में भी दबदबा है.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शरत पटनायक, कांग्रेस इलेक्शन कमेटी के कोऑर्निटेर बिजय पटनायक, पूर्व मुख्य सचिव भी करन जाति से है भले ही कुनबे अलग अलग हों. अगर बात जे बी पटनायक की करें तो उनके बेटे पृथ्वी पटनायक बेगुनिया सीट और दामाद सौम्य रंजन पटनायक चुनावी मैदान में हैं. अगर बात बीजेपी की करें तो प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन शामल और मुख्य कैंपेनर धर्मेंद्र प्रधान पिछड़ी जाति से हैं. बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समीर मोहंती करन जाति से हैं, अपराजित सारंगी और बैजयंत पांडा ब्राह्मण हैं.

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