
बहुमत की सरकार के बावजूद दिल्ली-पंजाब में नहीं चला AAP का जादू, आखिर क्या रहे कारण?
दिल्ली में सरकार होने के बावजूद आम आदमी पार्टी (AAP) लोकसभा चुनाव में राजधानी में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई.
Aam Aadmi Party: दिल्ली में सरकार होने के बावजूद आम आदमी पार्टी (AAP) लोकसभा चुनाव में राजधानी में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. इसके पीछे की वजह कांग्रेस के साथ बेमेल गठबंधन हो सकता है. जिस तरह से यूपी में कांग्रेस और सपा में गठबंधन का बेहतर तालमेल दिखा. लेकिन दिल्ली में उस तरह का गठबंधन नजर नहीं आया. दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता भी गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति में दिखे. जिसका फायदा बीजेपी को मिला और सातों सीट अपने खाते में डालने में कामयाब हो पाई.
इस लोकसभा चुनाव ने फिर से साबित कर दिया है कि भले ही AAP की दिल्ली और पंजाब में बहुमत वाली सरकार है. लेकिन उसको अभी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के लिए काफी लंबा सफर तय करना है. दिल्ली में विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के बावजूद AAP लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय राजधानी में संसदीय चुनावों में केवल ३ सीट जीतने में कामयाब रही.
साल 2014 में भी AAP लोकसभा चुनावों में मोदी का मुकाबला नहीं कर पाई थी. जबकि, उस समय AAP को कांग्रेस का राष्ट्रीय विकल्प माना जा रहा था. ऐसे में पार्टी ने 400 से अधिक लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन पंजाब में चार सीट को छोड़कर सभी में हार गई. इसके बाद साल 2019 के चुनाव में पार्टी महज एक सीट पर सिमट कर रह गई. जबकि, इस बार AAP ने पंजाब में कांग्रेस के सात के मुकाबले तीन सीट ही जीती है. जबकि, साल 2014 में पंजाब में इसने चार सीटों और 24 फीसदी वोटों के साथ अच्छी शुरुआत की थी. लेकिन साल 2019 और 2024 में इसका प्रदर्शन कुछ भी अच्छा नहीं रहा. साल 2019 में इसका वोट शेयर गिरकर 7.46 फीसदी हो गया.
हालांकि, साल 2024 में यह बढ़कर 26 फीसदी हो गया. लेकिन यह साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव की तुलना में बहुत कम है, तब इसने 92 सीटें और 42 फीसदी वोट हासिल किए थे और पंजाब में सरकार बनाकर कई लोगों को चौंका दिया था. हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव में AAP को उम्मीद थी कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण कम से कम दो सीट जीत जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री और AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और प्रचार करने के लिए जमानत पर रिहा होने के बावजूद मतदाता पार्टी के पक्ष में नहीं आ सके. ऐसा लगता है कि मतदाता आम चुनावों में AAP से बहुत अधिक की उम्मीद नहीं करते हैं. कोई नहीं जानता है कि AAP की आर्थिक, विदेश और रक्षा नीतियां क्या हैं.
सीएम केजरीवाल के जेल जाने से पार्टी की इमेज काफी हद तक प्रभावित हुई है. वहीं, दिल्ली और पंजाब में AAP के मुद्दे जनता को पसंद नहीं आए. इसके अलावा संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, आरक्षण, जेल का जवाब वोट से जैसे नारे जनता को प्रभावित नहीं कर सके. इसके अलावा स्वाति मालीवाल मारपीट मामला भी AAP के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ. इसका महिला वोटरों पर नकारात्मक असर पड़ा. वहीं, बीजेपी ने उम्मीदवार बदलकर जनता तक यह मैसेज पहुंचाया कि उसको जनता से सरोकार है.