
'केतनो विकास होई जाति से दिल्लगी छूटती नहीं', सीएम सिटी गोरखपुर का क्या है हाल
सातवें और अंतिम चरण में यूपी की 13 सीटों पर चुनाव 1 जून को होना है. ऐसे में सीएम सिटी गोरखपुर में विकास और जाति में कौन किस पर भारी है उस बारे में चर्चा करेंगे.
Gorakhpur Loksabha Election News: गोरखपुर शहर से महज सात किमी पश्चिमी दिशा में एक जगह नौषढ़ है. यहां से दो तरफ लखनऊ और वाराणसी के लिए रास्ता जाता है. लखनऊ में मतदान संपन्न हो चुका है. लेकिन वाराणसी और गोरखपुर में एक जून को मत डाले जाएंगे.इस इलाके के लोग वाराणसी को पीएम सिटी और गोरखपुर की सीएम सिटी भी कहते हैं. पूर्वांचल के इस इलाके में विकास बनाम जाति पर खूब बहस होती है. कुछ लोग कहते हैं कि केतनो विकास होई का फर्क वोट त लोग जाति पर ही देला. इस तरह से लोग भोजपुरी में बोलते हैं.मतलब इसका यह है कि विकास कितना भी क्यों ना हो जाति से दिल्लगी छूटती नहीं.
यहां हम बात करेंगे कि गोरखपुर का माहौल क्या है. इस सीट से दूसरी बार रविकिशन अपनी किस्मत आजमाने के साथ जीत का दावा कर रहे हैं. हालांकि इंडी ब्लॉक की तरफ से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार काजल निषाद दमदार आवाज में दावा कर रही हैं इस दफा तो रवि किशन रेस से बाहर हैं.
जाति का दबदबा है लेकिन..
गोरक्षनाथ पीठ के महंत और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 30 मई को रवि किशन के पक्ष में रोड शो किया.रोड शो के दौरान कहा कि इस दफा भी अब बंपर जीत दर्ज करने जा रहे हैं. बीजेपी उम्मीदवार के टक्कर में कोई नहीं. 400 पार का नारा हकीकत में तब्दील होने जा रहा है. लेकिन इसके पीछे कोई आधार भी है. गोरखपुर की राजनीति को करीब से समझने वाले स्थानीय पत्रकार अजीत सिंह कहते हैं कि सच तो यह है कि अगर जातीय आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी का जीतना आसान नहीं है. लेकिन गोरक्षपीठ का असर सभी तरह की चुनौतियों को बेअसर कर देता है. ऐसे में सवाल उठा कि 2018 के उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार की हार क्यों हो गई. उस सवाल के जवाब में कहते हैं कि उस समय पार्टी के अंदर ही भीतरघात हुआ था.
गोरखपुर सीट पर पीठ का असर
गोरक्षनाथ पीठ का राजनीति से नाता महंत दिग्विजय नाथ के समय से ही रहा है. साल 1921 में वो कांग्रेस के हिस्सा बने.चौरी चौरा कांड में हिस्सा लेने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई थी. हालांकि 1937 में कांग्रेस छोड़कर हिंदू महासभा में शामिल हो गए. 1949 में रामजन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था. उस आंदोलन के दौरान ही राम लला की मूर्ति बाबरी मस्जिद में नजर आई. 1967 में वो गोरखपुर से सांसद बने. हालांकि उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्य नाथ 1962, 1967, 1969, 1977 में विधायक रहे. 1970 और 1989 में सांसद भी चुने गए. रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान वो 1991 और 1990 में सांसद भी बने. महंत अवैद्यनाथ के बाद योगी आदित्यनाथ का दौर आता है और वो 1998 से लेकर 2017 तक लगातार सांसद बने रहे. हालांकि 2018 में तस्वीर बदली जब समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद को कामयाबी मिली थी.