केजरीवाल की रिहाई के राजनीतिक मायने, BJP-कांग्रेस पर कितना होगा असर?
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केजरीवाल की रिहाई के राजनीतिक मायने, BJP-कांग्रेस पर कितना होगा असर?

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की रिहाई को हरियाणा की राजनीति के लिहाज से शानदार माना जा रहा है। यहां पर हम समझने की कोशिश करेंगे बीजेपी-कांग्रेस पर कैसे असर पड़ सकता है।


Arvind Kejriwal News: दिल्ली एक्साइज पॉलिसी स्कैम में सीएम अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई वाले केस में भी राहत मिल चुकी है। दो जजों की पीठ ने शर्तों के साथ जमानत दे दी और इस तरह से तिहाड़ जेल से बाहर आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो चुका है। जमानत मिलने के बाद आप के नेताओं ने सत्य की जीत बताया तो एनसीपी शरद पवार गुट ने कहा कि इस फैसले से साफ है कि लोकतंत्र की नींव मजबूत है। अब यह फैसला उस वक्त आया है जब हरियाणा की 90 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की कवायद जब जमीन पर नहीं उतरी तो आप ने भी सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए। ऐसे में हरियाणा की राजनीति में आप के धारदार प्रचार से कांग्रेस और बीजेपी को कितना नुकसान हो सकता है या आप को खुद कितना फायदा हो सकता है। उससे पहले सियासी फिजा को समझिए।

चुनावी रेस में कुल पांच दल
हरियाणा में अलग अलग कांग्रेस, बीजेपी और आप चुनाव लड़ रही है, वहीं बीएसपी-इनेलो गठबंधन और जननायक जनता पार्टी और आजाद समाज पार्टी गठबंधन ताल ठोंक रहा है। इसका अर्थ यह है कि कुल पांच धड़े चुनावी रेस में हैं। बीजेपी पिछले 10 साल से सत्ता पर काबिज है लिहाज उसके सामने हैट्रिक लगाने का अवसर और चुनौती दोनों है। कांग्रेस के सामने बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का मौका तो इनेलो-बीएसपी, जननायक जनता पार्टी- आजाद समाज पार्टी के सामने वजूद को बचाए रखने की और आम आदमी पार्टी को खुद को स्थापित करने की चुनौती है। अगर आम आदमी पार्टी की बात करें तो दिल्ली, पंजाब, गुजरात और गोवा की तुलना में हरियाणा में संगठन कमजोर है। सीएम अरविंद केजरीवाल का नाता वैसे तो हिसार के खेड़ा गांव से है लेकिन राजनैतिक कर्मभूमि दिल्ली रही है। ऐसे में क्या वो अपने उम्मीदवारों को जीत दिला पाएंगे।

कांग्रेस पर असर
इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि केजरीवाल की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल धुआंधार रैलियां कर कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम कर रही हैं। अब केजरीवाल को अदालती झमेलों से राहत मिलने के बाद जाहिर है कि वो भी ऊर्जा हरियाणा चुनाव के लिए लगाएंगे। यहां पर देखना दिलचस्प होगा कि वो कांग्रेस पर कितने हमलावर होते हैं। कांग्रेस पर हमलावर होने से उन्हें इस रूप में फायदा मिल सकता है कि उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं में जोश का संचार हो। लेकिन इसके साथ ही बीजेपी को हमला करने का मौका मिलेगा कि यह कैसा गठबंधन है, दिल्ली में कुछ और बात हरियाणा में कुछ और। दरअसल कांग्रेस और आप का गठबंधन मौका परस्ती का है। हरियाणा में जब सीटों के गठबंधन की बात जब सामने आई तो प्रदेश के नेता नहीं चाहते थे कि केजरीवाल की पार्टी से समझौता हो क्योंकि उन्हें डर था कि गठबंधन का मतलब यह होगा कि हम केजरीवाल को पनपने का मौका देंगे। ऐसी सूरत में कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व उतने आक्रामक अंदाज में भले ही आप का विरोध ना करे, प्रदेश नेतृत्व पीछे नहीं रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ को गठबंधन के जो फायदे मिल सकते थे वो अब दोनों दलों को हासिल नहीं होने वाला है।

बीजेपी को कितना खतरा
अब बात करते हैं बीजेपी की। बीजेपी का आधार शहरों में मजबूत है। अब जब आप उम्मीदवारों के समर्थन में केजरीवाल मोर्चा खोलेंगे तो जाहिर सी बात है कि शहरी इलाकों में आप का सामना बीजेपी को करना होगा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तरी हरियाणा बीजेपी का गढ़ रहा है। यहां आठ जिलों में फैली 31 सीटों में से 16 सीटों पर बीजेपी काबिज हुई थी। लेकिन अब तस्वीर बदल सकती है। इन 31 विधानसभाओं में से कुछ सीटें पंजाब से लगी हुई हैं। इन सीटों पर सीएम भगवंत मान का असर भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि आम आदमी पार्टी का असर बीजेपी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। यहां बता दें कि 90 में से करीब 32 सीटें ऐसी हैं जहां आप किसी अन्य दल को हराने या जिताने की भूमिका में है। किसान आंदोलन, महिला पहलवानों का मुद्दा, अग्निवीर पर युवाओं के विरोध के बाद बीजपी को उत्तरी हरियाणा से उम्मीद है। अब ऐसे में अगर अरविंद केजरीवाल आक्रामक अंदाज में प्रचार करते हैं तो बीजेपी की राह आसान नहीं होगी।

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