कुमारी शैलजा की नाराजगी पड़ेगी कांग्रेस को भारी! हरियाणा में बिगड़ सकता है पार्टी का खेल?
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कुमारी शैलजा की नाराजगी पड़ेगी कांग्रेस को भारी! हरियाणा में बिगड़ सकता है पार्टी का खेल?

हरियाणा की वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पार्टी का प्रमुख दलित चेहरा कुमारी शैलजा ने हरियाणा में चुनावी जंग में एक नया मोड़ ला दिया है.


Haryana assembly election: हरियाणा की वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पार्टी का प्रमुख दलित चेहरा कुमारी शैलजा ने हरियाणा में चुनावी जंग में एक नया मोड़ ला दिया है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव और सिरसा से कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण के दौरान दरकिनार किए जाने से नाखुश होने की खबरों के बीच पार्टी के प्रचार अभियान से खुद को दूर रखा है.

बता दें कि हरियाणा में कांग्रेस के प्रचार अभियान पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा रहा है, जो खबरों के अनुसार पार्टी के भीतर फैसले ले रहे हैं, जिससे शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे राज्य के अन्य वरिष्ठ नेताओं को काफी परेशानी हो रही है. भाजपा ने हुड्डा के खिलाफ शैलजा की कथित "असंतोष" का फायदा उठाने में देर नहीं लगाई और कांग्रेस पर पार्टी में दलित नेताओं का अपमान करने का आरोप लगाया.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने "बहन" शैलजा का अपमान करने के लिए एक चुनावी रैली में राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए इस हमले का नेतृत्व किया. दरअसल, अमित शाह के हमले से कुछ दिन पहले ही भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री एमएल खट्टर ने शैलजा को भगवा पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था. जैसी कि उम्मीद थी, शैलजा ने भाजपा के प्रस्तावों को खारिज कर दिया और कहा कि "मैं कांग्रेसी हूं, कांग्रेसी ही रहूंगी."

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कांग्रेस नेता ने कहा कि "चूंकि मैं चुप थी, इसलिए उन्होंने (भाजपा ने) बोलना शुरू कर दिया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, वे भी यह जानते हैं, वे भी राजनीति कर रहे थे, लेकिन वे जानते हैं और हर कोई जानता है कि शैलजा कांग्रेसी हैं." उन्होंने भाजपा पर अपनी सरकार की विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए उनके मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और जल्द ही पार्टी के अभियान में शामिल होने का वादा किय.।

हालांकि, इन बयानों के बावजूद अगर भाजपा चुनावी राज्य में "नाखुश शैलजा" की धारणा को घर-घर तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती है तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. बता दें कि हरियाणा में कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से 17 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. साल 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने इनमें से 7 सीटें जीतीं. जबकि भाजपा 5 सीटें जीत सकी. बाकी में से जेजेपी ने 4 सीटें जीती. जबकि एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.

भाजपा की 2019 की संख्या 2014 की 9 सीटों से चार कम है. जबकि कांग्रेस ने 2014 के चुनावों की तुलना में 3 सीटें हासिल की हैं. साल 2014 से 2019 तक सत्तारूढ़ दल ने कांग्रेस के लिए 3 सीटें मुलाना, सढौरा और इसराना खो दीं. जबकि इस सबसे पुरानी पार्टी ने एक सीट होडल भाजपा के लिए खो दी.

जाहिर है कि कांग्रेस साल 2019 में इन 17 सीटों पर जो फायदा मिला था, उसे गंवाना नहीं चाहेगी. सैलजा ने 26 सितंबर से पार्टी अभियान में शामिल होने की घोषणा की है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की और पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि राज्य के दो शीर्ष नेता सैलजा और हुड्डा न केवल चुनावों के दौरान, बल्कि परिणाम आने के बाद भी एक ही पृष्ठ पर रहें.

इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने मजबूत प्रदर्शन के साथ 2019 के विधानसभा लाभ को मजबूत किया. इसने भाजपा से 5 सीटें छीनकर राज्य में स्कोर 5-5 कर दिया. पार्टी को 10 साल बाद राज्य में सत्ता में वापसी का भरोसा है और वह नहीं चाहेगी कि गुटबाजी खेल बिगाड़े. आखिरकार कांग्रेस ने राजस्थान में गुटबाजी के प्रतिकूल प्रभाव को देखा है, जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच करीब 3 साल तक तीखी नोकझोंक हुई और पार्टी ने आखिरकार राज्य में अपनी सरकार भाजपा के हाथों गंवा दी.

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