हरियाणा में हाथ से झाड़ू फिसल गई या ? जहां जो ताकतवर वहां नियम नहीं
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हरियाणा में 'हाथ' से 'झाड़ू' फिसल गई या ? जहां जो ताकतवर वहां नियम नहीं

हरियाणा में आप और कांग्रेस के चुनावी रिश्तों पर ब्रेक लगता नजर आ रहा है। अब सवाल यह है कि जहां जिसका जोर है वहां वो कमजोर दल को दबाने की कोशिश करता है।


Congress AAP Alliance in Haryana: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन पर करीब करीब ब्रेक लग चुका है। कांग्रेस की तरफ से 32 सीटों के लिए उम्मीदवारों का ऐलान भी हो चुका है और 12 सितंबर नामांकन की आखिरी तारीख है। दरअसल लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी ने हरियाणा का चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया था। हालांकि राहुल गांधी ने इच्छा जाहिर की बड़े मकसद के लिए आप के साथ गठबंधन पर विचार करना चाहिए। अब राहुल गांधी ने इच्छा जाहिर की तो आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की तरफ से तुरंत हामी वाला बयान आया उन्होंने स्वागत किया। लेकिन बात सीटों की संख्या पर अटक गई।

लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटों में से 9 सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर आप लड़ी थी। फॉर्मूला 10 विधानसभा सीट पर एक लोकसभा सीट का था। अब इसी तर्ज पर आम आदमी पार्टी के नेता 9 विधानसभा सीटों की मांग कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस सात से अधिक सीट देने को तैयार नहीं हुई। इस विषय पर आप के नेता और विधायक सोमनाथ भारती ने तंज कसा।

सोमनाथ भारती ने साधा निशाना
हरियाणा में आप-कांग्रेस गठबंधन होने से पहले आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में बने इसी तरह के गठबंधन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना चाहिए। मेरे राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल जी ने तीनों कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए रोड शो किए, आप के वरिष्ठ नेताओं और कैबिनेट मंत्रियों ने तीनों कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया, लेकिन आप उम्मीदवारों को, खासकर मुझे, दिल्ली कांग्रेस और स्थानीय नेताओं द्वारा बिल्कुल भी समर्थन नहीं मिला। दिल्ली कांग्रेस प्रमुख सरदार अरविंदर सिंह लवली और कई कांग्रेस नेता चल रहे चुनाव प्रचार के बीच में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन ने मिलने से भी इनकार कर दिया। जितेन्द्र कोचर (मालवीय नगर में) जैसे स्थानीय नेताओं ने इस गठबंधन के खिलाफ काम किया और कथित तौर पर पैसे के लिए भाजपा के सांसद उम्मीदवार के लिए वोट मांगे। कांग्रेस के वोटों को हमारे पक्ष में एकजुट करने के लिए हमारे संसदीय क्षेत्रों में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया। आम आदमी पार्टी के समर्थक इस तरह के बेमेल और स्वार्थी गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं और आम आदमी पार्टी को हरियाणा, पंजाब और दिल्ली में सभी सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए।

हरियाणा में बीजेपी अपनी मृत्युशैया पर है, कांग्रेस में भारी अंतर्कलह है और हरियाणा केजरीवाल जी का गृह राज्य है। आम आदमी पार्टी को हरियाणा में पहली गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी ईमानदार सरकार देने के लिए सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए।और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस काल्पनिक शराब घोटाले ने भाजपा को हमारे नेताओं को महीनों और सालों तक गिरफ्तार करने का कारण दिया, उसकी साजिश माकन ने रची और उसे सख्ती से आगे बढ़ाया। जब आप को हराने की बात आती है, तो भाजपा और कांग्रेस दोनों खुले तौर पर या चुपके से एक साथ काम करते हैं।

बंगाल, महाराष्ट्र उदाहरण

अगर आप बंगाल को देखें तो आम चुनाव से पहले किस तरह ममता बनर्जी ने सीटों की संख्या पर ही इंडिया गठबंधन से बाहर निकल गई। ममता बनर्जी ने तर्क यही दिया कि जहां जो ताकतवर है वहां वो चुनाव लड़े। लेकिन जहां जो कमजोर होता है उस समय उसे लगता है कि गठबंधन धर्म का पालन नहीं हो रहा है। बड़ा दल दबाने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में आपने महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में सीएम फेस के मुद्दे पर शिवसेना यूबीटी गुट की अकुलाहट को देखा होगा। हालांकि शरद पवार ने साफ कर दिया था कि फैसला बाद में लिया जाएगा।

दरअसल आम चुनाव में महाविकास अघाड़ी के तीनों धड़ों में सबसे कमजोर प्रदर्शन शिवसेना यूबीटी का रहा। कांग्रेस की कामयाबी शानदार थी। उद्धव गुट जब कभी सीएम के चेहरे पर आवाज बुलंद करता रहा सबसे अधिक प्रतिवाद कांग्रेस की तरफ से आई। इस मामले में सियासत के जानकार कहते हैं कि सत्ता की गणित का यही उसूल है और इस तरह की टैक्टिस के लिए आप किसी खास दल को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।

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