दिग्गजों के फेर में फंसी कांग्रेस, हुडा, सैलजा और सुरजेवाला, किसकी सुने
कांग्रेस को इस बार हरियाणा में जीत की पूरी उम्मीद है लेकिन पार्टी की अंदरूनी कलह इस उम्मीद को कमजोर करने का काम कर रही है. हुडा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं और इसी वजह से गुटबाजी बढ़ रही है.
Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव में जहाँ एक तरफ कांग्रेस खुद को मजबूत स्थिति में होने का दावा कर रही है तो वहीँ दूसरी ओर पार्टी के अंदरूनी कलह उसके इस मजबूती के दावे को कमजोर करने में लगी है. कारण है पार्टी के अन्दर भूपिंद्र हुडा, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और कैप्टेन अजय यादव के बीच गुटबाजी. इसी गुटबाजी में पार्टी को चिंता में डाल दिया है कि कहीं इस गुटबाजी का फायदा तीसरी बार भी बीजेपी को न मिल जाए. हालाँकि पार्टी ने इस गुटबाजी को ख़त्म करने के लिए ये कहा है कि परिणाम आने के बाद जिस भी नेता के समर्थन में विधायकों की संख्या ज्यादा होगी मुख्यमंत्री वही बनेगा.
भूपिंद्र हुडा और कुमारी सैलजा के बीच की पुरानी कलह
ये बात किसी से छुपी नहीं है कि भूपिंद्र हुडा और कुमारी सैलजा के बीच कलह आज की नहीं बल्कि काफी पुरानी है. वजह है दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी दावेदारी ठोकते रहे हैं.
भूपिंद्र हुडा की बात करें तो वो लगातार दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वो पार्टी के जाट नेता हैं और हुडा का प्रभाव सोनीपत, रोहतक और झज्जर में सबसे ज्यादा है, क्योंकि ये तीनों ही जिले जाट बहुल माने जाते हैं. इसके अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी हुडा की पकड़ है क्योंकि वो दो बार के मुख्यमंत्री हैं.
वहीँ कुमारी सैलजा की बात करें तो वो प्रदेश में पार्टी की प्रमुख दलित चेहरा हैं. कुमारी सैलजा महिला होने के साथ साथ दलित हैं और पार्टी की सीनियर लीडर हैं, इसलिए वो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोकती हैं.
कांग्रेस के सामने इस बात को लेकर भी टेंशन है कि अगर सीधे तौर पर कुमारी सैलजा की दावेदारी को ख़ारिज करती हैं तो राहुल गाँधी का दलित सम्मान अभियान सवालों के घेरे में आ जायेगा. इसलिए पार्टी की सीनियर लीडरशिप इस विषय पर खुद को दूर रखना चाहती है. कुमारी सैलजा सिरसा और अम्बाला जिला में प्रभाव है. इसके अलावा वो महिला होने के साथ साथ दलित भी हैं तो कहीं न कहीं दलितों के बीच भी उनका थोड़ा प्रभाव है.
अब बात करें रणदीप सुरजेवाला की तो जींद और कैथल में उनका प्रभाव माना जाता है.
अब बात करें कैप्टेन अजय यादव की तो उनका गुरुग्राम और रेवाड़ी में प्रभाव माना जाता है. वजह है यादव होना क्योंकि दोनों ही क्षेत्र अहीर बहुल हैं.
हुडा Vs आल
गुटबाजी की बात करें तो भूपिंद्र सिंह हुडा के सामने अब रणदीप सुरजेवाला, अजय यादव और कुमारी सैलजा एक साथ आ गए हैं. सूत्रों का कहना है कि इसकी वजह है पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक प्रभारी का हुडा के प्रति रुझान होना.
मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की होड़
जिस तरह से पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला निकाला है कि जिसके समर्थन में ज्यादा विधायक होंगे उसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, ठीक इसी फोर्मुले के तहत हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने अपनी दव्दारी मजबूत करने के लिए फार्मूला तैयार कर लिया है. हर नेता ने अपने अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा सीट दिलवाने की कवायद को तेज कर दिया है.
कुमारी सैलजा और सुरजेवाला की पार्टी हाईकमान से सीधी बात है इसलिए वो अपनी बात प्रदेश प्रभारी से न कह कर सीधे दिल्ली पहुंचा रहे हैं. सूत्रों की माने तो कुमारी सैलजा और सुरजेवाला ने अपने अपने पसंद के उम्मीदवारों की सूची दिल्ली पहुंचा दी है. वहीँ भूपिंद्र हुडा जो दिल्ली के साथ साथ प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया के साथ भी अच्छी बातचीत है, इसलिए उन्होंने भी अपनी पसंद की सूची थमा दी है.
पार्टी के सामने दुविधा
पार्टी के सामने अब इस बात की दुविधा है कि इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए क्या समाधान किया जाए? किसकी सूची पर ध्यान दिया जाए, किसकी बात पर ज्यादा अमल किया जाए, इसे लेकर भी पार्टी की टॉप लीडरशिप में चिंता है. पार्टी को गुटबाजी के साथ साथ ये सन्देश भी जनता के बीच बनाए रखना है कि वो दलितों के साथ सच में खड़ी है, इसी वजह से कुमारी सैलजा की काट करना या उन्हें नज़रन्दाज करना पार्टी के लिए कठिन चुनौती है.
स्क्रीनिंग कमिटी के अध्यक्ष अजय माकन भी पशोपेश में
अजय माकन हरियाणा की स्क्रीनिंग कमिटी के अध्यक्ष हैं. उम्मीदवारों के चयन में उनकी भूमिका भी अहम है. उनके सामने इस बात की चुनौती है कि वो किस गुट की सुने और किसकी बात को नज़रअंदाज करें. जिसकी बात को नज़रअंदाज करते हैं उसी के बुरे बनते हैं.
मंगलवार को आ सकती है पहली सूचि
इस सब गहमागहमी के बीच उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस की पहली सूची मंगलवार को आ सकती है. इस सूची के बाद ही ये भी साफ़ हो पायेगा कि किस गुट की कितनी चली और आगे ये गुटबाजी किस तरफ जाती है.
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