बेटा-बेटी के सामने विचारधारा बौना, हरियाणा में किसी दल को परहेज नहीं
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बेटा-बेटी के सामने विचारधारा बौना, हरियाणा में किसी दल को परहेज नहीं

भारतीय राजनीति में परिवारवाद सिर्फ कहने के लिए है। इस मुद्दे पर राजनीतिक दल निशाना तो साधते हैं। लेकिन चुनाव आते आते अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करते हैं।


Haryana Assembly Elections: हरियाणा की सभी 90 सीटों के लिए मतदान 5 अक्तूबर को होना है। सभी 90 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हो रहा है। बीजेपी, कांग्रेस बगावत का मूड देख धीरे धीरे कैंडिडेट लिस्ट जारी कर रही हैं। इन सबके बीच अब तक जितने भी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ है बेटा-बेटी यूं कहें कि परिवार का मोह नहीं छूटा है। यह बात अलग है कि जनता के बीच सभी दल परिवारवाद पर निशाना साधते हैं। ताज्जुब की बात यह कि आरोर लगाते समय परिवारवाद की परिभाषा बदल जाती है। मससन विपक्षी का बेटा-बेटी चुनावी मैदान में तो वो परिवारवाद है। लेकिन बाज जब अपने पर आए तो जनसेवा का तर्क मौजूद रहता है।

बेटे- बेटी से परहेज नहीं
सबसे पहले बात बीजेपी की करेंगे। बीजेपी के नेता खुद को पार्टी विद डिफरेंस का नारा देते हैं यानी कि उनका चाल चरित्र और चेहरा औरों से अलग है। लेकिन क्या जमीनी हकीकत वैसा ही है। इसके लिए अगर आप अब तक जारी 67 उम्मीदवारों की सूची देखें तो केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव चुनावी मैदान में हैं। बता दें कि राव इंद्रजीत को दक्षिण हरियाणा का राजा कहा जाता है। यानी कि राजा की ताकत और जीत की उम्मीद ने बीजेपी को खुद उसके आदर्शों से पीछे ढकेल दिया। इसी तरह किरन चौधरी जो बीजेपी में शामिल होने से पहले कांग्रेस में थीं वो अपनी बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से टिकट दिलाने में कामयाब रही हैं। किरन चौधरी, परिवारवाद का हवाला देकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का विरोध करती रही हैं। इसके अलावा एक और नाम शक्ति रानी शर्मा का है। ये राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा की मां है। कार्तिकेय शर्मा वैसे तो निर्दलीय सांसद हैं लेकिन हाल के वर्षों में उनका झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है।

हरियाणा की राजनीति में कुलदीप बिश्नोई के नाम से हर कोई वाकिफ है। अब उनके बेटे भव्य बिश्नोई आदमपुर से चुनाव लड़ेंगे। इसके साथ ही सतपाल सांगवान के बेटे सुनील सांगवान को बीजेपी ने टिकट दिया है। सुनील सांगवान का राजनीति से रिश्ता इतना ही है कि उनके पिता विधायक रहे हैं। राजनीति में आने से पहले सुनील सांगवान सुनारिया जेल के अधीक्षक रहे हैं और उनके समय ही डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम को सबसे अधिक फरलो मिला था। इसे लेकर जमकर बयानबाजी भी हुई। ऐसा नहीं कि परिवारवाद की बात सिर्फ बीजेपी तक सीमित हो। चाहे कांग्रेस हो, आईएनएलडी या जेजेपी हर जगह की तस्वीर एक जैसी। भूपेंद्र हुड्डा पर दीपेंद्र हुड्डा को लेकर आरोप लगते हैं। इनेलो तो पारिवारिक पार्टी रही। समय के साथ विरासत ट्रांसफर होती गई। देवी लाल की विरासत को ओम प्रकाश चौटाला, उनकी विरासत को अभय चौटाला और अजय चौटाला ने संभाला हालांकि अजय चौटाला की राह अलग हो गई और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला जेजेपी के नाम से चुनावी मैदान में हैं।

सियासत के जानकार कहते हैं कि परिवारवाद का मुद्दा अब जमीन पर दिखता भी नहीं है। दरअसल अब पब्लिक यह समझने लगी है कि हम्माम में सभी नंगे हैं। सिर्फ कहने के लिए विरोध होता है। आप यदि अधिक सवाल पूछेंगें तो उसका भी रेडीमेड जवाब तैयार रहता है। तर्कों के जरिए वो आपको बताएंगे कि हमने तो सिर्फ इतने फीसद ही टिकट दिए है बाकी लोगों का देखिए। यानी कि राजनीतिक दल अपने कला कौशल से फैसलों को जायज ठहरा देते हैं।

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