हरियाणा में डेरों के प्रसाद की सबको चाहत, विरोध करने से डरते हैं नेता
हरियाणा की राजनीति में डेरों का अपना अलग महत्व है। इनका प्रभाव जाति समूहों में इस कदर है कोई भी दल चुनावी प्रसाद हासिल करने के लिए उन्हें नजरंदाज नहीं कर सकता।
Haryana Dera Politics: हरियाणा की राजनीत में डेरों की अहम भूमिका है। किसी भी राजनीतिक दल का नेता क्यों ना हो सियासी बैतरणी पार करने में उसे डेरे पतवार की तरह नजर आते हैं। सभी दलों के उम्मीदवारों को यकीन रहता है कि अगर डेरा से आशीर्वाद मिल गया तो चुनावी जीत हासिल करने से कोई रोक नहीं सकता। हरियाणा में अलग अलग हिस्सों में काम करने वाले डेरों के लाखों अनुयायी हैं और वो अलग अलग हिस्सों में चुनावी राजनीति को प्रभावित करते हैं। अगर पिछले 10 साल की राजनीति को देखें तो डेरा सच्चा सौदा ने बीजेपी को समर्थन दिया था। लेकिन उसके संस्थापक राम रहीम के जेल जाने के बाद डेरे ने अपने राजनीतिक ईकाई को भंग कर दिया था बावजूद उसके प्रत्याशी किसी न किसी तरह से आशीर्वाद हासिल करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
राम रहीम डेरों में बड़े नाम
डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक राम रहीम वैसे तो उम्रकैद की सजा काट रहे हैं लेकिन अब तक वो 10 बार परोल या फरलो पर जेल से बाहर आ चुके हैं। इसे लेकर सियासत भी गरमाती रही है। कांग्रेस और दूसरे दलों के नेता इसे लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। लेकिम राम रहीम पर पर सीधे तौर पर निशाना साधने से बचते रहे हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि अजी विरोध तो सिर्फ दिखावे के लिए है। किसी भी दल का नेता खुले तौर पर विरोध करने से कतराता है। आपको पता है कि हरियाणा की सभी विधानसभाओं मतदाताओं की संख्या डेढ़ लाख से दो लाख के करीब है। ऐसे में जीत और हार के बीच अंतर में बहुत फर्क नहीं होता। यानी कि पांच से दस हजार वोट इधर उधर हुए तो मामला किसी के पक्ष में जा सकता है। यहां हम पहले नजर डालेंगे कि 2024 के चुनाव में कितने उम्मीदवार हैं जिनका सीधे तौर पर किसी ना किसी डेरे से जुड़ाव है।
हरियाणा के ये कुछ खास डेरे
- डेरा सच्चा सौदा
- पूरी धाम
- रोहतक का गोकर्ण धाम
- सतजिंदा कल्याण डेरा
- सांपला का डेरा कालीदास महाराज
- कलानौर का डेरा बाबा ईश्वर शाह
- बाबा मस्त नाथ मठ- रोहतक, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ में असर
इन उम्मीदवारों को अलग अलग डेरों से कनेक्शन
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में डेरा और मठों से जुड़ाव रखने वाले करीब 8 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। पानीपत शहर से अग्निवेश, बरवाला से महामंडलेश्वर दर्शन गिरि,जुलाना से सुनील जोगी(खिलाफ में विनेश फोगाट), पृथला से अवधूत नाथ, चरखी दादरी से कर्मयोगी नवीन, तोशाम से बाबा बलवान नाथ, बलदेव कुमार ऐलनाबाद, सतनाम सिंह अंबाला सिटी से चुनाव मैदान में हैं। हरियाणा की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले कहते हैं कि इन लोगों का सीधे तौर पर जुड़ाव है, हालांकि किसी भी दल का नेता क्यों ना हो वो नहीं चाहता कि डेरों से संबंध खराब हो।
अब सवाल यह है कि डेरे इतने प्रभावी क्यों हो जाते हैं। इसके जवाब में सियासी पंडित कहते हैं कि दरअसल ये लोग धर्म कर्म के बारे में जो कुछ बताते हैं उससे भी अधिक सामाजिक सेवा से जुड़े हैं, समाज का कमजोर तबका इनसे सीधे लाभान्वित होता है. लिहाजा उन्हें लगता है कि बदले में वो डेरे के लिए क्या कुछ कर सकते हैं। इसीलिए जब डेरों की कार्यप्रणाली या उसके किसी प्राधिकारी पर सवाल उठता है तो वे स्वीकार नहीं कर पाते।
डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम हों या संत रामपाल। इन लोगों ने क्या कुछ किया है पूरी दुनिया जानती है। लेकिन इनके खिलाफ कुछ बोलने से राजनीतिक दल सिर्फ इस लिए परहेज करते हैं क्योंकि उन्हें सरकार बनानी है। अगर इनकी नजर टेढ़ी हुई तो सारी कवायद पर पानी फिर सकता है। लिहाजा इनकी गलतियों का ठीकरा वो सरकार पर फोड़ते है। राम रहीम तो इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
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