हरियाणा में इन सीटों पर ना BJP ना कांग्रेस ना इनेलो, निर्दलियों का रहा है कब्जा
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हरियाणा में इन सीटों पर ना BJP ना कांग्रेस ना इनेलो, निर्दलियों का रहा है कब्जा

हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटें है। इनमें से कुछ सीटों की खासियत यह है कि सिर्फ निर्दलीय उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आए हैं।


Haryana Assembly Elections: पांच अक्टूबर को हरियाणा में राजनीतिक दलों को परीक्षा देनी है जिसके नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा यह देखने वाली बात होगी। चुनावी लड़ाई में बीजेपी, कांग्रेस, इनेलो-बीएसपी, जेजेपी-असपा एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। वहीं हम बात कुछ खास सीटों की करेंगे जिस पर कोई दल नहीं बल्कि निर्दलियों का कब्जा रहा है। इसे आप समझ सकते हैं कि निर्दलीय उम्मीदवार का आभामंडल राजनीतिक दलों पर भारी पड़ा है।

पुंडरी सीट
सबसे पहले बात करेंगे पुंडरी की। विधानसभा की यह सीट कैथल जिले में पड़ती है। इस समय रणधीर सिंह गोलेन यहां से विधायक हैं। खास बात यह है कि वो 6 दफा इस सीट से लगातार चुनाव जीतते आए हैं। अब तक कुल सात दफा निर्दलीय किस्मत आजमाई थी और सभी मुकाबलों में जीत मिली। पहली बार इस सीट पर किसी निर्दलीय उम्मीदवार की जीत साल 1968 में हुई थी। ईश्वर सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार तारा सिंह को हरा दिया था।1996 में नरेंद्र शर्मा ने ईश्वर सिंह को मात दी थी। इस दफा ईश्वर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थे। साल 2000 की बात करें तो दो निर्दलियों के बीच ही मुख्य मुकाबला हुआ था। तेजवीर ने नरेंद्र को मात दी थी। इसी तरह 2004 में दिनेश कौशिक ने इनेलो की तरफ से किस्मत आजमा रहे नरेंद्र शर्मा को मात दी।

नूंह

विधानसभा की यह सीट नूंह जिले में है। 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार रहीम खान ने कांग्रेस पार्टी उम्नीदवार के अहमद को हराया था। साल 1972 में रहीम खान को कामयाबी मिली। 1982 में रहीम खान ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा दिया। 1989 में हसन मोहम्मद को जीत हासिल हुई। 2005 में आखिरी बार निर्दल के तौर पर हबीब उर रहमान ने जीत दर्ज की। इस तरह से 1967 से अब तक पांच दफा निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई है।

नीलोखेड़ी

करनाल जिले में विधानसभा की यह सीट है। अनुसूचित जाति समाज के लिए यह सीट आरक्षित है। यहां से मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर पिछली दफा भी निर्दलीय विधानसभा पहुंचे थे। इस सीट पर अब तक पांच दफा निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं। 1967 में चंदा सिंह ने कांग्रेस के राम स्वरूप गिरी को परास्त किया था। 1982 में एक बार फिर जीत दर्ज की। इस दफा भी कांग्रेस उम्मीदवार को मात दी थी। इसके बाद के चुनाव में जय सिंह राणा ने लोकदल और जनता पार्टी के उम्नीदवार को शिकस्त दी थी। 1991 के बाद फिर 2019 में आजाद उम्मीदवार को जीत मिली। 2019 में धर्मपाल गोंदर ने बीजेपी उम्मीदवार भगवान दास को हराया था। इस दफा धर्मपाल कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।

हथीन

विधानसभा की यह सीट पलवल जिले का हिस्सा है। इस सीट पर चार दफा निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली है। 1968 में पहली दफा आजाद उम्मीदवार हेम राज को कामयाबी मिली। उन्होंने कांग्रेस के देवी सिंह तेवतिया को परास्त किया था। इसके बाद 1972 में राम जी लाल नाम के उम्मीदवार विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे। कांग्रेस के टिकट पर चुनावी ताल ठोंक रहे हेम राज को शिकस्त दी। इसके बाद 2005 में निर्दलीय हर्ष कुमार ने जालेब खान को शिकस्त दी हालांकि अगले चुनाव में जालेब खान ने हर्ष कुमार को हरा दिया था। इस दफा जालेब खान निर्दलीय और हर्ष कुमार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे।

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