BJP का संकल्प पत्र बनाम कांग्रेस का गारंटी पत्र, इस दफा किसका होगा हरियाणा?
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BJP का संकल्प पत्र बनाम कांग्रेस का गारंटी पत्र, इस दफा किसका होगा हरियाणा?

हरियाणा की सभी 90 सीटों के लिए पांच अक्टूबर को मतदान होगा और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। इस बीच कांग्रेस और बीजेपी ने जनता से लंबे चौड़े वादे किए हैं।


BJP Manifesto Vs Congress Manifesto: हरियाणा के चुनावी रण में अब राजनीतिक दल पूरे साजो सामान के साथ उतर चुके हैं। जीत हासिल करने के लिए वादों का पिटारा खुल चुका है। दोनों राष्ट्रीय दल यानी कांग्रेस और बीजेपी का घोषणापत्र अब सामने है। कांग्रेस ने गारंटी पत्र तो बीजेपी ने संकल्प पत्र का नाम दिया है। बीजेपी ने अग्निवीर के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी दूर करने के लिए जहां स्थाई जॉब का वादा किया, महिलाओं को खुश रखने के लिए 2100 रुपए का वादा किया है तो कांग्रेस ने एमएसपी का वादा कर किसानों, जातिगत आरक्षण की बात कर पिछड़े समाज को अपने खेमें में लाने की कोशिश की है। लड़ाई 90 सीटों में अधिक से अधिक सीट हासिल करने का है। अगर ज्यादा से ज्यादा ना भी मिले तो जादुई आंकड़ा 46 की संख्या का हासिल करने की कवायद।

2024 की हरियाणा की लड़ाई कम से कम दो वजहों से खास है। पहला तो ये कि बीजेपी के पास हैट्रिक बनाने की मौका और चुनौती दोनों है, वहीं कांग्रेस के सामने आम चुनाव 2024 के प्रदर्शन को बनाए रखने की चुनौती तो 10 साल का सूखा खत्म करने का मौका है। दोनों दलों ने अपने अपने तरकश से तीर निकाल चुके हैं, हम आगे यह समझने की कोशिश करेंगे कि क्या लोकलुभावन वादों से फायदा होता है या जमीन पर ठोस काम की जरूरत पड़ती है या जनता इन सबसे इतर अपना फैसला सुनाती है। लेकिन सबसे पहले एक नजर बीजेपी के 20 संकल्प और कांग्रेस की सात गारंटी पर।

बीजेपी के संकल्प पत्र की खास बातें
  • लाडो लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को 2100 रुपए प्रति महीने
  • अग्निवीरो को स्थाई जॉब देने का वादा
  • चिरायु- आयुष्मान के तहत प्रत्येक परिवार को 10 लाख तक मुफ्त इलाज.
  • 70 साल से ऊपर बुजुर्ग को पांच लाख तक मुफ्त इलाज
  • आईएमटी खरखौदा की तरह 10 औद्योगिक शहरों का निर्माण
  • प्रत्येक शहर में 50 हजार स्थानीय युवाओं को नौकरी की व्यवस्था
  • 24 फसलों को घोषित एमएसपी पर खरीद
  • 2 लाख युवाओं को बिना पर्ची खर्ची परमानेंट सरकारी नौकरी
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पांच लाख आवास
  • सरकारी अस्पताल में डायलिसिस फ्री
  • हर जिले में ओलंपिक खेल की नर्सरी
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर का अरावली जंगल सफारी पार्क

कांग्रेस के गारंटी पत्र में सात वादे

  • महिलाओं को शक्ति के तहत हर महीने 2000 रुपए और 500 में गैस सिलेंडर
  • सामाजिक सुरक्षा में 6000 रुपए बुढ़ापा पेंशन, 6000 रुपए दिव्यांग पेंशन, 6000 रुपए विधवा पेंशन
  • युवाओं को सुरक्षित भविष्य के तहत भर्ती विधान में 2 लाख पक्की भर्ती, नशा मुक्त हरियाणा
  • हर परिवार को खुशहाली में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 25 लाख तक मुफ्त इलाज
  • गरीब को छत के तहत 100 गज का प्लॉट, 3.5 लाख की लागत से 2 कमरे का मकान
  • किसानों के लिए एमएसपी को कानूनी गारंटी, फसल मुआवजा तत्काल
  • पिछड़ों को अधिकार में जातिगत सर्वे, क्रीमीलेयर की सीमा 10 लाख रुपए

मुफ्तखोरी संस्कृति को बढ़ावा तो नहीं

अब अगर दोनों दलों के घोषणा पत्र को देखें तो एक बात साफ है कि जनता उनके खूंटे से बंधी रहे उसका खास ख्याल है। लेकिन क्या सिर्फ घोषणापत्र से सरकारें बनती हैं। इस सवाल का जवाब ना पूरी तरह से हां और ना पूरी तरह से ना है। इसके लिए आप आम चुनाव २०२४ के कांग्रेस के घोषणापत्र को देखें। प्रति वर्ष एक लाख रुपए देने का जो वादा किया गया उसका क्या हुआ। लखनऊ में कांग्रेस के दफ्तर के बाहर सैकड़ों की संख्या में महिलाएं जुट गईं। कांग्रेस को समझाना पड़ा कि उनके वादे का अर्थ क्या था।

इसी तरह पिछले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान का चुनाव नतीजों को देखें। इससे साफ है कि घोषणापत्र में किए गए वादे से ही मतदाता पूरी तरह प्रभावित नहीं होते। बल्कि कई और कारण जिम्मेदार होते हैं। अगर आम चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन को देखें तो इस पार्टी ने भी लोकलुभावन वादे किए लेकिन नतीजे उनके लिए निराशाजनक रहे। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी पार्टी की जीत में मैनिफेस्टो की सिर्फ एक कारण है।

जानकार कहते हैं कि अब मतदाता भी समझदार हो चुका है। वो भावनाओं के आवेश में आकर फैसला तो करता है। लेकिन अब वो परख रहा है कि किसके वादे ठोस हैं। किस दल की तरफ से उसे अधिक से अधिक अवसर मिलेगा। जो दल विपक्ष में रहकर बड़े बड़े वादे कर रहा है सत्ता में रहते हुए उसने क्या किया था। यानी कि अब कोई राजनीतिक दल बादल के घिरने या छंटने की तरह वादे करेगा तो वो अपने मनमुताबिक सियासी फसल नहीं काट पाएगा।

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