Haryana Elections: आखिर कांग्रेस-आप में गठबंधन की संभावना क्यों तलाश रहे राहुल? ये रही वजह
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Haryana Elections: आखिर कांग्रेस-'आप' में गठबंधन की संभावना क्यों तलाश रहे राहुल? ये रही वजह

हरियाणा विधानसभा के चुनाव से पहले कांग्रेस चयनकर्ताओं के पास नामांकन के लिए करीब 2,500 आवेदन पहुंचे हैं.


Haryana Assembly Elections: 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के चुनाव से पहले कांग्रेस चयनकर्ताओं के पास नामांकन के लिए करीब 2,500 आवेदन पहुंचे हैं. टिकट चाहने वाले कई लोग अपने समर्थकों के साथ दिल्ली स्थित एआईसीसी कार्यालय में अपना पक्ष रखने के लिए उमड़ पड़े. इससे न केवल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा में देरी हुई, बल्कि शीर्ष नेताओं में अन्य आशंकाएं भी पैदा हो गईं. जल्द ही, चयन न होने की स्थिति में निराशा और असफल टिकट आवेदकों द्वारा अपनाई जाने वाली संभावित राह, उम्मीदवार-चयन समिति की मुख्य चिंता बन गई.

हरियाणा की कई सीटों पर कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ बागी उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने की संभावना प्रबल दिख रही थी. इस बात से पार्टी के उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया गया है.

कांग्रेस की रणनीति

कांग्रेस के स्टार और रणनीतिकार राहुल गांधी को यह फैसला लेना पड़ा कि कांग्रेस के चुनाव प्रबंधक आम आदमी पार्टी (आप) के साथ चुनावी समझौते की संभावना तलाशें , जो कि इंडिया गठबंधन में एक प्रमुख भागीदार है. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि गठबंधन न होने की स्थिति में असफल कांग्रेस उम्मीदवारों के 'आप' में शामिल होने की संभावना काफी अधिक है. 'आप' के साथ गठबंधन को कुछ संभावित कांग्रेसी बागियों के खिलाफ सबसे अच्छा दांव माना जा रहा था, जो किसी दूसरी पार्टी का टैग या चुनाव चिह्न लेकर कांग्रेस उम्मीदवारों की संभावनाओं को खतरे में डाल सकते थे. इस तरह कांग्रेस ने हरियाणा में सीट बंटवारे के लिए सही समय पर 'आप' से संपर्क किया.

हरियाणा में 'आप'

हालांकि, हरियाणा में 'आप' की उपस्थिति बहुत कम है. लेकिन जेल में बंद इसके नेता अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता पार्टी के चुनाव में प्रवेश की घोषणा करने के लिए स्थानीय 'आप' नेताओं के साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर रही हैं. केजरीवाल का जन्म हरियाणा में हुआ है. दिल्ली की आबकारी नीति को लेकर भाजपा सरकार के साथ उनके विवाद की पृष्ठभूमि में 'आप' उनके जेल जाने का इस्तेमाल हरियाणा के मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करने के लिए कर सकती है.

इससे पहले 'आप' नेताओं ने कहा था कि उनकी पार्टी हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह तब हुआ जब 'आप' को सभी निर्वाचन क्षेत्रों में उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिल पाए थे. ऐसे में कांग्रेस द्वारा टिकट न दिए गए कुछ उम्मीदवारों को 'आप' के माध्यम से आसानी से विधानसभा में प्रवेश और सीटें मिल सकती थीं. लेकिन कांग्रेस-आप गठबंधन ऐसी किसी भी संभावना को समाप्त कर देगा.

हरियाणा में शहरी-ग्रामीण विभाजन

चुनावी गठबंधन के पक्ष में अन्य कारक भी हैं. इनमें से एक तथ्य यह है कि ग्रामीण हरियाणा में कांग्रेस का समर्थन आधार शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मजबूत बताया जाता है, जहां भाजपा को बढ़त हासिल है. ऐसा तब है, जबकि ग्रामीण लोग अक्सर शहरों की ओर पलायन करते रहे हैं और हरियाणा में शहरी और ग्रामीण के बीच का अंतर उतना मजबूत नहीं है, जितना कि बिहार या उत्तर प्रदेश में है. लेकिन हरियाणा के शहरों में भाजपा को जो सापेक्षिक बढ़त हासिल है, उसे कुछ स्थानों पर कांग्रेस समर्थित 'आप' द्वारा बेहतर चुनौती दी जा सकती है, बजाय इसके कि कांग्रेस और 'आप' शहरी क्षेत्रों में भाजपा को अलग-अलग चुनौती दें.

कांग्रेस में अंदरूनी कलह

यह सर्वविदित तथ्य है कि हरियाणा में कांग्रेस अपने नेताओं के बीच अंदरूनी कलह से बुरी तरह ग्रस्त है. इन नेताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं इसके पीछे मुख्य कारण मानी जा रही हैं. युद्धरत गुटों के नेताओं का सामना करना या गठबंधन बनाने का नया काम समझदारी, समायोजन और शालीनता दिखाने के महत्व को दर्शाता है. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अब तक अपने राज्य के क्षत्रपों के बीच इस बात को समझाने में विफल रही है. इसलिए, 'आप' के साथ गठबंधन न केवल एक नई शुरुआत होगी, बल्कि हरियाणा में कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं के लिए अपने राज्य समकक्षों पर लगाम लगाने के विकल्प भी बढ़ेंगे.

गठबंधन

'आप' के नजरिए से देखा जाए तो नया गठबंधन देश की सबसे युवा राष्ट्रीय पार्टी को हरियाणा में अधिक मजबूत पैर जमाने में मदद करेगा, बजाय इसके कि वह अकेले राज्य की लड़ाई लड़े. 'आप' के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कांग्रेस के गठबंधन के कदम का स्वागत किया है. इसके अलावा हरियाणा दिल्ली और पंजाब के बीच में है, जहां 'आप' की सरकारें हैं. इससे आने वाले समय में दिल्ली, गुजरात और शायद कुछ और राज्यों में कांग्रेस के साथ पार्टी की समझ बढ़ने की संभावना भी बढ़ेगी.

यह 'आप' के लिए कांग्रेस से लड़ने और भाजपा को चुनावों में बढ़त दिलाने से कहीं बेहतर हो सकता है. यही कारण है कि 'आप' और कांग्रेस दोनों ही हरियाणा में अगले महीने होने वाली सत्ता की लड़ाई के ज़रिए चुनावी ताकत के तौर पर इंडिया ब्लॉक को मज़बूत करने के लिए उत्सुक हैं. वैसे भी, कांग्रेस और 'आप' ने इस साल हरियाणा और दिल्ली में एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा. हालांकि, पंजाब में दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ़ चुनाव लड़ा. हरियाणा में कांग्रेस ने 9 और 'आप' ने 1 सीट पर चुनाव लड़ा. दिल्ली में कांग्रेस ने तीन और आप ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा.

गौतम का कदम

इस बीच, 'आप' के दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी से विधायक ने शुक्रवार (6 सितंबर) को कहा कि वह इस पुरानी पार्टी में इसलिए शामिल हो रहे हैं. क्योंकि इसके नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे गरीबों, दलितों, अनुसूचित जनजातियों और अल्पसंख्यकों के हितों का दृढ़ता से समर्थन करते हैं, जिन्हें हाल ही में केंद्र और कई राज्य सरकारों के हाथों गलत व्यवहार का सामना करना पड़ा है. गौतम लगातार हिंदुत्व के वर्चस्व वाले दृष्टिकोण पर हमला करने के कारण विवादों में रहे हैं. दो साल पहले उन्होंने दिल्ली में 'आप' के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था. तब से वे राजधानी की राजनीति में हाशिये पर हैं. सूत्रों का कहना है कि 'आप' से कांग्रेस में उनके शामिल होने से दोनों पार्टियों के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

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