हरियाणा में कांग्रेस के जीत से दूर रहने की पांच वजह
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हरियाणा में कांग्रेस के जीत से दूर रहने की पांच वजह

कांग्रेस के लिए हरियाणा के नतीजे अस्वीकरीय हैं, क्योंकि कांग्रेस को ये विश्वास था कि सरकार सी की बननी है लेकिन रुझान ये दिखा रहे हैं कि राज्य में तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनने जा रही है.


Haryana Election Results : हरियाणा विधानसभा चुनाव की मतगणना जारी है. रुझानों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलता दिख रहा है तो वहीँ कांग्रेस की सरकार बनाने की उम्मीद ख़त्म होती दिख रही है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो क्या वजह रही जो कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गयी. ऐसे में 5 कारण ऐसे हैं, जो शायद कांग्रेस की हार के लिए ज़िम्मेदार साबित हुए हैं.

1 अंदरूनी कलह - हरियाणा चुनाव के एलान होने के साथ ही कांग्रेस की अंदरूनी कलह उभर कई आई. एक तरफ भूपिंदर सिंह हुडा और दीपेन्द्र हुडा गुट लगा हुआ था तो दूसरी ओर कुमारी शैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाल आदि सक्रीय थे. सबको यही लग रहा था कि 10 साल से भाजपा की सरकार के प्रति प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर चल रही है, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा. कांग्रेस ने इसी आधार पर अपनी जीत को सुनिश्चित मान लिया, जनता के बीच जाकर बीजेपी के खिलाफ जो लड़ाई होनी चाहिए थी, कांग्रेस उसे न लड़ कर अंदरूनी लड़ाई में गुथ गयी और मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी अपनी दावेदारी ठोकने लगे.

2. स्थानीय दलों और नेताओं ने बिगाड़ी बाजी - अगर हरियाणा की बात करें तो स्थानीय दलों और नेताओं ने भी कहीं न कहीं कांग्रेस का खेल बिगाड़ा है. जैसे कि बात करें आईएनएलडी और बसपा के गठबंधन की तो दोनों ने मिलकर कोई ख़ास बढ़त तो नहीं बना पाए लेकिन कहीं कहीं दलित वोट, जो शायद कांग्रेस की तरफ जाते उन्हें कांग्रेस की तरफ जाने से रोक दिया.
अगर बात करें वोट प्रतिशत की तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही 2019 के मुकाबले ज्यादा मत प्रतिशत लेकर मैदान में हैं लेकिन सीटों की बात करें तो कांग्रेस की सीटों में ज्यादा इजाफा नहीं हो पाया. इसके पीछे की वजह कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच वोटों का बंट जाना माना जा रहा है.

3. जाट बनाम अन्य - तीसरा बड़ा कारण रहा जाट बनाम अन्य. असल में कांग्रेस की तरफ से भूपिंदर हुडा ही मुख्यमंत्री के चेहरे प्रतीत हो रहे थे, क्योंकि सीट बांटने में भी हुडा की ही ज्यादा चली थी. इसे लेकर जनता के बीच ये सन्देश गया कि कांग्रेस के आने पर प्रदेश में जाट मुख्यमंत्री बनेगा. इसकी वजह से जो अन्य जाति हैं, वो कहीं न कहीं जाटों के खिलाफ लामबंद हुईं और ये वोट जाट बनाम अन्य हो गया. हालाँकि जाट बेल्ट की भी बात करें तो रुझान ये दर्शाते हैं कि जाट वोट भी 100 प्रतिशत कांग्रेस को नहीं गया है, कुछ वोट बीजेपी को भी गया है.

4. बीजेपी की रणनीति - बीजेपी की बात करें तो उसने चुनाव लड़ने में अपनी सारी मशीनरी उतार दी. हर चुनावों की तरह प्रधानमंत्री मोदी स्टार प्रचारक रहे. बीजेपी ने चुनाव के एलान से पहले मुख्यमंत्री बदल दिया और ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जो ओबीसी वर्ग से आता है. यानी बीजेपी ने भी चुनाव से पहले जाट बिरादरी के खिलाफ अन्य ओबीसी को लामबंद करने के लिए पासा फेंक दिया था. इसके अलावा बीजेपी ने दलितों को भी साधने के लिए हर संभव प्रयास किया.

5. कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास - जैसा की ऊपर भी बात की गयी कि कांग्रेस ने ये मान लिया था कि सत्ता विरोधी लहर के चलते उसकी जीत सुनिश्चित है. इसलिए मैदान की उतर कर जिस तरह से चुनाव लड़ना चाहिए था, वो नहीं किया गया. पार्टी गुटबाजी में उलझी रही. रही बात इंडिया गठबंधन की तो कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन के लिए काफी दिनों तक बातचीत की लेकिन गठबंधन नहीं हुआ. नतीजा रहा कि आप ने अलग चुनाव लड़ा और ज्यादा नहीं तो थोड़ा ही सही लेकिन कांग्रेस के वोट काटने का काम किया.


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