किस तरह कमजोर पड़ने के बाद भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी रही
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किस तरह कमजोर पड़ने के बाद भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी रही

लोकसभा चुनाव 2024 के रुझान अब नतीजों में बदलने शुरू हो चुके हैं. बीजेपी देश में अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनी है, जो 242 सीटों पर आगे चल रही है. लेकिन बीजेपी नेतृत्व आगे होने के बावजूद मायूस है. वजह है केंद्र में समझौते वाली सरकार की राजनीती का एक बार फिर से आगाज होना



लोकसभा चुनाव की मतगणना के रुझानों ने ये इशारा कर दिया है कि पिछले दो दशकों से सबसे मजबूत स्थिति में रही बीजेपी कमजोर पड़ी है. यही वजह भी है कि एनडीए बेशक 272 वाले बहुमत के आंकड़े से आगे चल रही है, लेकिन इसके बाद भी उत्साह की कमी है, ख़ासतौर से बीजेपी में. वजह है बीजेपी अभी तक अकेले पूर्ण बहुमत के आंकड़े के नजदीक नहीं पहुँच पायी है. हालाँकि अभी भी बीजेपी 242 सीट पर आगे चलते हुए अकेली सबसे बड़ी पार्टी जरुर बनी हुई है, फिर भी आगे रहने की वो ख़ुशी बीजेपी के नेतृत्व के चेहरे पर नजर नहीं आ रही है.

दूसरी बात ये भी है जिस तरह से विपक्ष नै इंडिया गठबंधन क गठन किया और फिर मुखर होकर चुनाव में मोदी सरकार 2.0 के काम को चुनौती दी. कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी को विवश किया कि वो इंडिया गठबंधन की पिच पर खेलें. जनता के बीच भी भ्रम की स्थिति पैदा कर दी कि अब मोदी सत्ता में नहीं आ रहे हैं. संविधान खतरे में है और आरक्षण को लेकर जिस तरह से इंडिया गठबंधन ने प्रचार प्रसार किया उससे भी जमीनी स्तर पर बीजेपी को नुक्सान पहुँचाया. हाँ इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को 272 के जादुई आंकड़े से दूर तो किया है लेकिन सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनने से नहीं रोक पाया. हाँ, ये बात भी है कि इस जीत को लेकर बीजेपी के नेतृत्व बहुत उत्साहित नहीं है.

क्या वजह है निराशा की

2014 की बात करें तो नरेंद्र मोदी की सरकार लम्बे समय बाद देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बन कर आई थी. इसके बाद 2019 में जब चुनाव हुए तो बीजेपी पहले के मुकाबले और मजबूत बन कर सत्ता में आई. दोनों कार्यकाल में बीजेपी ने कई कड़े निर्णय लिए चाहे वो धारा 370 लागु करने की बात हो य फिर सीएए लागू करने की. तमाम विरोध के बावजूद भी केंद्र सरकार ने पीछे नहीं हटी. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया था और मोदी की गारंटी पर चुनाव लड़ा था, वो अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पायी है. यही वजह है कि सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के बाद भी बीजेपी में ख़ुशी की लहर नहीं है. इसके पीछे की कुछ प्रमुख वजह ये है :

1 - समझौते की राजनीती - लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे जिस ओर बढ़ते जा रहे हैं, वो समझौते की राजनीती को मजबूत करते जा रहे हैं. यही वजह भी है कि एनडीए में 272 के आंकड़े के पार होने के बाद भी संशय की स्थिति बनी हुई है. वजह है बीजेपी का पूर्ण बहुमत के आंकड़े से दूर रहना. ये बात इस ओर इशारा करती है कि अब अपने सहयोगियों से सलाह मशविरा किये बगैर कुछ भी करना संभव नहीं रहेगा.

2- बड़े फैसलों पर नहीं ले पाएंगे तुरंत निर्णय - इस चुनाव के मतदान ख़त्म होने के बाद जिस तरह से एग्जिट पोल दिखाए गए तो लगा कि मोदी का 400 पार का नारा सच साबित होगा. इस बीच ये बात भी सामने आने लगी कि प्रधानमंत्री मोदी ने अगले 100 - 125 दिनों का अजेंडा भी तैयार किया हुआ है. इतना ही नहीं ये भी कहा गया कि देश हित में कई और बड़े फैसले लिए जाने हैं. पर अब जो हालत बने हैं, उसमें प्रधानमंत्री के 100-125 दिन के अजेंडे और बड़े फैसलों पर अम्ल करना एक चुनौती बन चुकी है.

3- सहयोगी दल ही नहीं बीजेपी के अंदर से भी मिलेगी चुनौती - अगर हम प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी की बात करे तो गुजरात से लेकर दिल्ली की केंद्र सरकार के 2014 से 2024 तक के 10 साल के अंतराल को अजय जोड़ी कहा जाता रहा है. हालाँकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई है लेकिन इसके बावजूद जो चुनौती है वो इस बात की है कि सहयोगी दलों को किस तरह से साध कर रखा जाए. सिर्फ सहयोगी दल ही नहीं बल्कि बीजेपी के अंदर भी कई धड़े ऐसे हैं, जो दबी जुबान में मोदी और अमित शाह की जोड़ी की मुखालफत करते रहे हैं, उन पर किस तरह से काबू रखा जाएगा.

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