दिल्ली में हाथ ने पकड़ा झाड़ू का साथ फिर भी नहीं कर सका कमल को साफ़, कांग्रेस और आप क्यों हुए फेल
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दिल्ली में हाथ ने पकड़ा झाड़ू का साथ फिर भी नहीं कर सका कमल को साफ़, कांग्रेस और आप क्यों हुए फेल

दिल्ली की सातों सीटों पर लगातार तीसरी बार भगवा लहराया है. दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी ने एक तरफ़ा जीत दर्ज की है. वहीँ इंडिया गठबंधन के तहत साथ लड़ी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के हाथ खाली ही रहे.


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लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं. देश में एनडीए को 293 सीट मिली हैं. बीजेपी 240 सीटों के साथ देश की सबसे बड़ी पार्टी रही है है, हालाँकि बीजेपी अकेले दम पर बहुमत के आंकड़े 272 सीट को नहीं छू पायी है. इस बीच दिल्ली की सातों सीटों पर लगातार तीसरी बार भगवा लहराया है. यानी दिल्ली के अधिकतर वोटर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भरोसा जताया है. दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी ने एक तरफ़ा जीत दर्ज की है. वहीँ इंडिया गठबंधन के तहत साथ लड़ी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के हाथ खाली ही रहे. जिस समय कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन हुआ तो जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध भी जताया था, लेकिन फिर भी दोनों ही दलों की टॉप लीडरशिप ने इसे नज़रंदाज़ करते हुए एक साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था.

पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ दूसरी बार गठबंधन किया(एक बार उस समय किया था जब 2013 में आप ने कांग्रेस के समर्थन से 49 दिन की सरकार चलायी थी). गठबंधन के तहत आप ने दिल्ली में सीटों के हिसाब से सबसे बड़ा शेयर यानी 4 सीटें अपने पास रखीं. आप को उम्मीद थी कि 4 में से कम से 2 से 3 सीट पर उन्हें जीत मिल सकती हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब बात करते हैं किन बातों को भुनाने की कोशिश की गयी और किन बातों से हुआ गलत असर.

केजरीवाल और सिसोदिया का जेल में होना - दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जेल में हैं. इस दौरान दिल्ली में चुनाव को लीड करने के लिए शुरूआती समय में कोई बड़ा नेता जो जनता के बीच बहुत प्रसिद्ध हो, वो मौजूद नहीं था. हालाँकि अरविन्द केजरीवाल 21 दिन की अंतरिम जमानत पर बाहर जरुर आया और उन्होंने प्रचार प्रसार में कोई कमी भी नहीं छोड़ी लेकिन वो भी जनता से जीत हासिल नहीं कर पायी.

जेल में बंद रहने की सहानुभूति नहीं मिली- मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को 10 जून को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली. चुनाव प्रचार के लिए उन्हें 21 दिन की अंतरिम जमानत दी गयी. जेल से बाहर आने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने जनता से इस विषय पर सहानुभूति लेने की हर संभव कोशिश की गयी. लेकिन जनता को केजरीवाल की ये तमाम बातें पसंद नहीं आई और जनता ने आप और कांग्रेस के गठबंधन पर मोहर नहीं लगायी.

जनता के मन में कांग्रेस और आप गठबंधन को लेकर भी गुस्सा रहा - बेशक आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने ये सोच कर गठबंधन किया था कि वो एक दूसरे के वोट को बांधे रखेंगे, वोट बटेगा नहीं खास तौर से मुस्लिम वोट लेकिन जनता को ये गठबंधन उतना पसंद नहीं आया जितना सोचा गया था. इसके पीछे की प्रमुख वजह ये रही कि जनता के मन में ये सवाल सबसे बड़ा रहा कि जो केजरीवाल या आम आदमी पार्टी कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर शोर मचा कर दिल्ली की सत्ता में काबिज हुए थे, वो अब उसी कांग्रेस के साथ हाथ मिला चुके हैं. वहीँ कांग्रेस के जो जमीनी स्तर के नेता या कार्यकर्त्ता रहे उन्होंने भी आप के साथ गर्मजोशी नहीं दिखाई.

शराब घोटाले को लेकर महिलाओं के मन में केजरीवाल के प्रति रहा गुस्सा - दिल्ली सरकार के कथित शराब घोटाले की बात करें तो आम आदमी पार्टी लगातार इसे झूठा करार देती रही है. लेकिन दिल्ली की महिलाओं की बड़ी संख्या ऐसी हैं, जो इस विषय को लेकर आम आदमी पार्टी से नाराज़ हैं. नाराज़गी घोटाले के नाम पर नहीं बल्कि जिस तरह से दिल्ली में शराब की बिक्री को बढावा दिया गया. एक बोतल के साथ एक बोतल बेची गयी, उस बात पर दिल्ली की महिलाओं में नाराज़गी रही. इस विषय पर कई जगहों पर महिलों ने मुखर हो कर इसकी आलोचना भी की और नाराज़गी भी व्यक्त की थी.

स्वाति मालीवाल प्रकरण ने ऐन मौके पर आप को दिया करार झटका- दिल्ली की जनता को क्झास तौर से महिलाओं को स्वाति मालीवाल प्रकरण से भी आप के प्रति नाराज़गी रही. इसके पीछे जो कारण रहा, वो ये कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस पूरे मामले पर कोई बात नहीं कही. एक दिन वो बोले भी तो अपने पीए बिभव कुमार की गिरफ्तारी के विरोध में धरने पर बैठे, यानी उन्होंने स्वाति मालीवाल के आरोपों को इशारों इशारों में संदेह के घेरे में रख दिया. स्वाति मालीवाल की बात करें तो राज्य सभा सांसद होने से पहले वो वो दो बार दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं. इस दौरान उन्होंने बड़े स्तर पर दिल्ली के उन इलाकों में नशा कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाया था, जहाँ अवैध शराब का काम होता था. महिला पंचायत का गठन किया था. यह भी एक वजह मानी जा रही है, जिसकी वजह से कहीं न कहीं आप के प्रति महिलाओं में नाराज़गी रही.

आप के तीन विधायक हारे - इस लोकसभा चुनाव में आप 4 सीटों पर लड़ी. 4 में से तीन सीट नयी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली सीट पर अपने मौजूदा विधायकों सोमनाथ भर्ती, कुलदीप कुमार और सहीराम पहलवान को संसदीय उम्मीदवार बनाया था. लेकिन ये तीनों ही हार गए.

अब बात करते हैं कांग्रेस की

कांग्रेस ने जब इस गठबंधन पर सहमति जताई तो उसी के अपने कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया, ख़ास तौर से दिल्ली इकाई के पुराने नेताओं ने. उन्होंने राष्ट्रिय इकाई को स्पष्ट चेताया कि इस गठबंधन से कांग्रेस को फायदा कम नुक्सान ज्यादा होगा लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गयी.

अरविंदर सिंह लवली का इस्तीफा देना - अभी इस गठबंधन के एलान को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे. दिल्ली कांग्रेस में ही इसे लेकर दो मत हो गए. इस बीच कांग्रेस ने उत्तरपूर्वी दिल्ली और नार्थ वेस्ट दिल्ली से उम्मीदवारों की घोषणा की. इस घोषणा ने मानों इस गठबंधन करने वाले नेताओं के जले पर नमक छिड़क दिया. नतीजा ये हुआ कि दिल्ली कांग्रेस एक तत्कालीन अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने पद से इस्तीफा दे दिया, उनके साथ कुछ पूर्व विधायकों ने भी कांग्रेस लीडरशिप के प्रति असंतोष जाहिर किया. फिर लवली के साथ ही प्रति छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गये. उनके साथ ही उनके समर्थक भी.

कांग्रेस को लाभ से ज्यादा नुक्सान- दरअसल कांग्रेस की दिल्ली इकाई के जो नेता इस गठबंधन का विरोध कर रहे थे, उनका कहना था कि आम आदमी पार्टी का जो भी वोट बैंक है, वो कांग्रेस का ही है. ऐसे में ये गठबंधन कांग्रेस से ज्यादा आप का फायदा करेगा, जो बचा कुचा जनाधार है वो भी कांग्रेस के हाथ से निकल जायेगा. उनका ये भी कहना था कि 4 लोकसभा सीट आप को देने का मतलब 40 विधानसभा सीटों पर जो कांग्रेस के समर्थक और कार्यकर्त्ता हैं, वो आप के लिए काम करेंगे. भविष्य में ये कांग्रेस के लिए ही नुकसानदेह साबित होगा.

प्रचार में एक दूसरे का नहीं मिला भरपूर साथ - विश्लेषकों का कहना है कि जैसा गठबंधन के समय सोचा गया था, लगभग वैसा ही चुनाव परिणामों में देखने को मिला. हाँ ये बात जरुर है कि मुस्लिम वोट बनता नहीं लेकिन इसके उलट ये भी देखने को मिला कि आप को कांग्रेस का पूरा वोट नहीं मिला. इसके पीछे का कारण ये भी रहा कि कांग्रेस के पुराने और कर वोटर के मन में आप और केजरीवाल के प्रति काफी गुस्सा है, जिस तरह से केजरीवाल ने कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे और दिवंगत मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर गंभीर आरोप लगाये थे, उन्हें दिल्ली का पुराना कांग्रेसी केजरीवाल को अभी तक माफ़ नहीं कर पाया है.

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