अमिट स्याही का इतिहास बेहद शानदार, जानें- इसे कौन बनाता है
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अमिट स्याही का इतिहास बेहद शानदार, जानें- इसे कौन बनाता है

चुनाव में मतदाता दोबारा से मत ना दे सकें इसके लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल किया जाता है. यहां हम अमिट स्याही के इतिहास के बारे में बताएंगे.


Indelible Ink History: 2024 आम चुनाव सात चरणों में संपन्न होगा.अब तक पांच चरणों के मतदान हो चुके हैं. मतदाता फर्स्ट डिविजन में पास तो हुए हैं. लेकिन 2019 की तुलना में मतदान का प्रतिशत कम रहा है. लेकिन यहां बात हम मतदान प्रतिशत की जगह उसक अमिट स्याही के बारे में जो इस बात का सबूत होता है कि वोटर अपने मत का इस्तेमाल कर चुका है.यहां हम उसी अमिट स्याही के इतिहास के बारे में बताएंगे. सबसे पहले बताएंगे कि अमिट स्याही किस हाथ की उंगली पर लगाई जाती है. जब आप वोटिंग हॉल में दाखिल होते हैं तो दस्तावेजों की जांच के बाद मतदान अधिकारी आपके बाएं हाथ की इंडेक्स फिंगर पर यह स्याही(बैंगनी-काला रंग) लगाता है. इसका अर्थ यह है कि आप अपने मत का इस्तेमाल कर चुके हैं.

कर्नाटक में उत्पादन

कर्नाटक स्थित मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निंश लिमिटेड(सरकारी संस्था) इस अमिट स्याही का निर्माण करता है. इसे बनाने वाली मैसूर पेंट्स का कहना है कि 2024 के आम चुनाव में करीब 26.5 लाख फाइल या छोटी शीशियों का उत्पादन किया गया है. बता दें कि प्रत्येक शीशी में 10 मिलीलीटर स्याही होती है.अमिट स्याही के जरिए इस बात को पुख्ता किया जाता है कि कोई वोटर बोगस मत ना दे सके. खास बात यह है कि इस स्याही का इस्तेमाल ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी होता है. खास बात यह है कि चुनाव प्रक्रिया में मत देने के तरीके में बदलाव हुआ यानी बैलट पेपर से हम ईवीएम पर आ गए. लेकिन अमिट स्याही का इस्तेमाल पहले की तरह आज भी हो रहा है.

आरपीए 1951 में जिक्र

लोक प्रतिनिधित्व की धारी 1951 में भी इस अमिट स्याही का जिक्र है. सेक्शन 61 के मुताबिक वोटिंग में सही मतदान को सुनिश्चित करने के लिए मतदाता के अंगूठे या किसी उंगली पर इसे लगाया जाएगा.इसके साथ ही जब बैलट पेपर के जरिए चुनाव होता था उस वक्त उम्मीदवारों के नाम पेपर पर होते थे. और मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम और सिंबल के सामने स्वष्तिक वाला चिन्ह लगाता था. हालांकि अब ईवीएम का इस्तेमाल होता है और अमिट स्याही का इस्तेमाल उंगली पर किया जाता है.चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 1951-52 के पहले चुनाव में अमिट स्याही का इस्तेमाल ग्लॉस रॉड की मदद से किया गया था. पहले चुनाव में 3, 89, 816 इंक बॉटल का इस्तेमाल किया गया था और खर्च 2 लाख 27 हजार 460 रुपए आए थे. 1962 के चुनाव तक फोरफिंगर के बेस पर इसका इस्तेमाल किया जाता था. उसके बाद से नाखून और स्किन के कुछ हिस्से पर किया जाने लगा.
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ऐसे बनाते हैं अमिट स्याही

अब आपको बताएंगे कि अमिट स्याही का निर्माण कैसे होता है. अमिट स्याही बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग होता है. यह रंगहीन होता है लेकिन यूवी लाइट या सूरज की रोशनी में यह नजर आता है.सिल्वर नाइट्रेट की अधिक मात्रा आमतौर पर 20 फीसद से इसकी गुणवत्ता और बढ़ जाती है. जिस दिन इसका इस्तेमाल किया जाता है उसे दिन से अगले 72 घंटे यानी तीन दिन तक इस पर साबुन या किसी डिटरजेंट का प्रभाव नहीं पड़ता. सरकारी वेबसाइट माइगाव के मुताबिक अब पानी आधारित इंक का भी इस्तेमाल होता है. यहां बता दें कि चुनाव आयोग के अनुरोध पर पहली बार सीएसआईआर ने अमिट स्याही का उत्पादन किया था.

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