रुझानो में मजबूत होता इंडिया गठबंधन, आगे रह कर भी क्यों कमजोर पड़ा एनडीए?
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रुझानो में मजबूत होता इंडिया गठबंधन, आगे रह कर भी क्यों कमजोर पड़ा एनडीए?

मतगणना के पांच घंटे बाद आये रुझानों में एनडीए गठबंधन 291 सीट पर आगे तो इंडिया गठबंधन 234 सीट पर आगे


मतगणना शुरू हुए पांच घंटे बीत चुके हैं. इस बीच जो रुझान मिल रहे हैं, उसके अनुसार जो तस्वीर आ रही है वो पशोपेश में डालने वाली है. रुझानों के मुताबिक एनडीए और आईएनडीआई गठबंधन के बीच काफी नजदीकी टक्कर है. एनडीए जहाँ 290 सीटों पर आगे है तो वहीँ 234 सीट पर आईएनडीआई सीट पर. यानी अगर ये रुझान परिणाम में बदलते हैं तो फिर इसके मायने यही होंगे कि विपक्ष हार कर भी जीत रहा है और सत्ताधारी बीजेपी/एनडीए जीत कर भी हार गयी. बेशक एनडीए जादुई आंकड़े 272 से आगे है लेकिन इसमें ब्रांड मोदी का जो जादू है, वो धुंधला प्रतीत हो रहा है. यहाँ इस बात पर गौर करने वाली बात है कि विपक्ष ने जिस तरह से चुनाव लड़ा, उसमें उसकी कौन सी रणनीति मजबूत रही है.

चुनाव प्रचार में विपक्ष जिन मुद्दों पर मजबूत रहा

1- संविधान बदलने की हवा - इस चुनाव में जहाँ मोदी सरकार की तरफ से 400 पार का नारा दिया गया और विपक्ष पर मनोवाज्ञानिक दबाव तैयार करने की कोशिश की गयी, तो वहीँ विपक्ष ने इसके जवाब में जोर शोर से जनता के बीच संविधान बदलने की साजिश रचने की हवा फैला दी. विपक्ष ने चुनाव के शुरू से अंत तक मुखर होकर मोदी सरकार पर ये आरोप लगाया कि अगर मोदी सरकार 400 पार करती है तो फिर निश्चित तौर पर वो देश के संविधान को बदल देगी. इसके बाद वो आरक्षण भी ख़त्म करने में लग जाएगी. विपक्ष की ये बात इस कद्र फैली की प्रधानमंत्री मोदी हो या फिर पूरी बीजेपी सब इस पर स्पष्टीकरण देने में जुटे रहे. राष्ट्रिय सहारा के स्थानीय संपादक रत्नेश मिश्र का कहना है पिछले 10-12 साल में जो चुनाव हुए हैं, उन सब की अपेक्षा इस चुनाव में कांग्रेस का प्रचार काफी प्रबल देखने को मिला. अब तक जो कांग्रेस बीजेपी या प्रधानमंत्री मोदी की पिच पर खेलती थी, इस बार उसने मोदी को अपनी पिच पर चुनाव खिलवाया. चाहे संविधान का मुद्दा हो या फिर चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी का अडाणी अम्बानी पर बोलना. सब कांग्रेस की बिछी पिच ही थी.

2 - जातीय जनगणना - इस चुनाव में कांग्रेस के प्रचार का जो दूसरा मजबूत बिंदु रहा वो जातिगत जनगणना रही. यहाँ भी पीएम मोदी और बीजेपी को कांग्रेस की पिच पर ही खेलना पड़ा. वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर दयाल का कहना है कि बीजेपी हमेशा यही चाहती है कि हिन्दू वोट बंटे नहीं. यानी जात-पात के मुद्दे पर चुनाव न लड़ा चाहे. अगर जाति का मुद्दा हावी रहा तो हिन्दू वोट बटेगा और इसका नुक्सान बीजेपी को ही होगा. ये बात कांग्रेस और विपक्ष भी बहुबी जान चुके हैं. इसलिए इस चुनाव में सभी विपक्षी दलों ने अपने अपने हित को एक किनारे रखते हुए मोदी को हारने का मन बनाया. इसी के तहत कांग्रेस ने प्रचार के दौरान जातीय जनगणना कराने की बात कही. जनता के मन में ये बात भी उतारनी चाही कि किसी अपनी जाति की जनगणना से अपना हक लेने में फायदा होता है.

3. ओबीसी आरक्षण - प्रचार के दौरान ही कांग्रेस ने देश भर में ये प्रचार भी किया कि वो ओबीसी आरक्षण को बढ़ा कर 50 प्रतिशत कर देंगे. राष्ट्रिय सहारा के स्थानीय संपादक रत्नेश मिश्र का कहना है कि देश में आरक्षण एक बहुत बड़ा मुद्दा है. इसी एक मुद्दे की वजह से हिदू डिवाइड होता है. इसलिए बड़ी ही सोची समझी प्लानिंग के साथ कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों ने ओबीसी आरक्षण को बढाने का वादा किया. इसी वजह से पुरे चुनाव में कांग्रेस ने ऐसा माहौल बनाया कि चुनाव कहीं से हल्का नहीं लगा.

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