दिलचस्प है नेशनल कांफ्रेंस का इतिहास, जिससे कभी हुआ था झगड़ा अब उसके साथ
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दिलचस्प है नेशनल कांफ्रेंस का इतिहास, जिससे कभी हुआ था झगड़ा अब उसके साथ

अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू- कश्मीर में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। इन सबके बीच हम आपको नेशनल कांफ्रेंस का इतिहास बताएंगे जो कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में है।


National Conference History: अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। इस चुनावी प्रक्रिया में बीजेपी, पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के साथ साथ दूसरे छोटे दल किस्मत आजमा रहे हैं। यहां पर हम बात करेंगे उस दल नेशनल कांफ्रेंस की जो वादा कर रही है कि अगर जीत मिली तो अनुच्छेद 370 की वापसी करेंगे। ये बात अलह है कि उनके सहयोगी राहुल गांधी राज्य दर्जा दिए जाने की बात करते हैं हालांकि 370 पर खामोश हो जाते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के चार चेहरे अब तक जम्मू-कश्मीर की कमान संभाल चुके हैं। यहां हम आपको इस पार्टी से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी बताएंगे।

1932 में हुआ था गठन
92 साल पहले फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ऑल जम्मू कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस की स्थापना की थी। कुछ वर्षों के बाद इसे जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस का नाम दिया। साल 1965 में इसका कांग्रेस में विलय भी हुआ था। नेशनल कांफ्रेंस की कहानी बेहद दिलचस्प है। 1951 में नेशनल कांफ्रेंस ने कुल 75 सीटों पर चुनाव लड़ा और 1953 तक शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर रियासत के पीएम रहे। बता दें कि भारत के खिलाफ साजिश के आरोप में 1953 में उनकी बर्खास्तगी हुई थी। शेख अब्दुल्ला को 1953 में 9 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था।
1965 में कांग्रेस में विलय
साल 1965 तक जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत राज्य के मुखिया को पीएम कहा जाता था। लेकिन 1965 में राज्य संविधान में छठवें संशोधन के बाद सदर ए रियासत को राज्यपाल और पीएम को सीएम के तौर पर जाना गया। साल 1965 में ही नेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस में विलय हुआ। शेख अब्दुल्ला को देश के खिलाफ साजिश के आरोप में 19565 में गिरफ्ताप किया गया और यह गिरफ्तारी 3 साल तक चली। हालांकि उन्होंने तत्कालीन केंद्र सरकार से समझौता किया और एक बार फिर 1975 में जम्मू-कश्मीर की सत्ता में वापसी की। 1975 में शेख अब्दु्ल्ला के प्लेबिसाइट फ्रंट ने मूल पार्टी यानी नेशनल कांफ्रेंस का नाम ले लिया

साल 1977 में विधानसभा का चुनाव हुआ और नेशनल कांफ्रेंस को जीत मिली। शेख अब्दुल्ला सीएम बने और 1982 तक कार्यभार संभाला। 1982 में निधन के बाद राज्य की कमान फारुख अब्दुल्ला के हाथ में आई। 1983 में हुए चुनाव में फारुख अब्दुल्ला से स्पष्ट बहुमत हासिल किया। लेकिन 1984 आते आते उनकी पार्टी में टूट हो गई और उनके जीजा गुलाम मोहम्मद शाह सीएम बनने में कामयाब रहे। हालांकि 1986 में उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई और राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।

1987 में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और फारुक अब्दुल्ला सीएम बने। लेकिन आतंकवाद भी चरम पर पहुंच चुका था। फारुक अब्दुल्ली की नाकामी बताकर 1990 में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। हालात में थोड़ा सुधार हुआ तो 1996 में चुनाव कराए गए। नेशनल कांफ्रेंस फिर सरकार बनाने में कामयाब रही। फारुख अब्दुल्ला सीएम बने। लेकिन साल 2000 में कुर्सी छोड़ी और उमर अब्दुल्ला ने सत्ता संभाली। हालांकि 2002 के चुनाव में उमर को हार का सामना करना पड़ा।

2008 के चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ। उमर अब्दुल्ला की अगुवाई में सरकार बनी। लेकिन साल 2014 में कांग्रेस फिर अलग हो गई। 2014 के चुनाव में 28 सीट के साथ पीडीपी बड़ी पार्टी बनी और बीजेपी 25 सीट के साथ मिलकर सरकार बनाई। हालांकि गठबंधन वाली सरकार अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सकी और पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के खात्मे के साथ ही जम्म-कश्मीर से राज्य का दर्जा हटा दिया गया।

अब्दुल्ला परिवार

अगर अब्दुल्ला परिवार की बात करें तो शेख अब्दुल्ला की शादी अकबर जहां से हुई थी। शेख अब्दुल्ला के चार बच्चे फारुख अब्दुल्ला, सुरैया अब्दुल्ला अली, शेख मुस्तफा कमाल और खालिदा शाह थीं। फारुख अब्दुल्ला की शादी मौली से हुई और उनकी बहन सुरैया की शादी गुलाम मोहम्मद शाह से हुई थी। फारुख और मौली के कुल चार बच्चे उमर ,साफिया, हिना और सारा हुए। उमर की शादी पायल नाथ से हुई हालांकि अब वो अलग हैं। बहन सारा की शादी कांग्रेस नेता सचिन पायलट से हुई हालांकि ये दोनों भी अलग हो चुके हैं।

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