J&K में अब अंतिम चरण का रण, योगी की भी एंट्री, BJP के लिए क्यों है खास
जम्मू-कश्मीर में तीसरे चरण के लिए एक अक्टूबर को मतदान होना है। इसमें जम्मू संभाग की 26 और कश्मीर संभाग की 14 सीटें शामिल हैं।
Jammu Kashmir Assembly Elections: जम्मू-कश्मीर में दो चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब तीसरे चरण का चुनाव 1 अक्तूबर को होना है। अगर पहले और दूसरे चरण की बात करें तो दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत पहले चरण से कम रहा है। इन सबके बीत तीसरा फेज क्यों अहम है और वो भी बीजेपी के लिए क्यों इस खास विषय को समझने की कोशिश करेंगे। थर्ड फेज में कुल चालीस सीटों के लिए चुनाव होना है जिसमें जम्मू रीजन की 26 और कश्मीर हिस्से की 14 सीटें हैं। इस फेज में ज्यादातर चुनाव जम्मू में हो रहे हैं लिहाजा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की भी एंट्री हो चुकी है। योगी आदित्यनाथ 26 को जहां खेल मैदान गढ़, गुडवाल मैदान रामगढ़ और बाना सिंह स्टेडियम में रैली संबोधित करने वाले हैं वहीं 27 सितंबर को भी दो रैली है।
उधमपुर, कठुआ, सांबा जम्मू के साथ साथ कुपवाड़ा और बांदीपोरा जिलों के साथ साथ शोपियां, हंडवाड़ा और सोपोर में मतदान होना है। इन इलाकों में जहां मतदान होना है वहां की तस्वीर अलग अलग है। कहीं पर स्थानीय मुद्दे तो कहीं बेरोजगारी, सड़क चुनावी मुद्दा है। इसके साथ ही जम्मू के इलाके में राष्ट्रीय मुद्दा, 370, 35 ए का भी असर है। इसके अलावा कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का मुद्दा भी जोर पकड़ चुका है। अगर हिंदू वोटबैंक की बात करें तो यहां भी देश के दूसरे हिस्सों की तरह जाति का असर है। 2014 से पहले तक कांग्रेस और पैंथर्स पार्टी का हिंदू मतों पर जोर रहा, हालांकि नेशल कांफ्रेस या पीडीपी बहुत कुछ नहीं कर सके। लेकिन 2014 के बाद तस्वीर बदली। जो वोट कांग्रेस या पैंथर्स पार्टी के हुआ करते थे अब वो बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो चुके हैं।
साल 2014 के बाद से कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा तबका बीजेपी की तरफ गया। पार्टी को इनकी वजह से फायदा मिला। 25 सीटों को बीजेपी 2019 में जीतने में कामयाब रही। खास बात यह कि पीडीपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। इस दफा जिस दल की तरफ इन विस्थापितों का झुकाव होगा वो चुनाव जीतने में कामयाब होंगे। आतंकवाद का मुद्दा भी अहम है। जम्मू और घाटी के लोग भी मानते हैं कि यह बात सही है कि आतंकी वारदातों पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगा है। लेकिन सच यह भी है संख्या में कमी आई है और उसका असर केंद्र की मौजूदा सरकार को जाता है। जम्मू इलाके की सीटों पर लड़ाई सीधी सीधी है जबकि घाटी में स्थिति ऐसी नहीं। वहां निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या की वजह से ज्यादातर सीटों पर बहुकोणीय लड़ाई है।
जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि इस दफा का चुनाव एकतरफा नहीं है। घाटी में खासतौर पर इस बात को लेकर कहा जा रहा है कि जो भी निर्दलीय उम्मीदवार हैं वो कहीं ना कहीं बीजेपी से जुड़े हुए हैं। यानी कि बीजेपी की तरफ से टैक्टिकल गेम खेला गया है। राशिद इंजीनियर का चुनाव से पहले बेल मिलने को लेकर शक की नजर से देख रहे हैं। इस तरह की खबर आ रही है कि राशिद जब जेल के अंदर थे तब समर्थन अधिक था। लेकिन अब तस्वीर बदली हुई है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर का रण रहस्य की चादरों में लिपट गया है।