बिहार में मोदी मैजिक का अभाव और मतदाताओं की नाराजगी के बीच मुश्किल में NDA
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बिहार में मोदी मैजिक का अभाव और मतदाताओं की नाराजगी के बीच मुश्किल में NDA

भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को 1 जून को होने वाले लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में बिहार में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.


Lok Sabha Elections: भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए अपने पक्ष में कोई लहर न होने के कारण 1 जून को होने वाले लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में पटना की 2 लोकसभा सीट और बिहार की चार पड़ोसी सीटों को बरकरार रखने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. साल 2014 और 2019 के आम चुनावों के विपरीत बीजेपी के लिए न कोई सहानुभूति है और न ही तथाकथित मोदी जादू. इससे भाजपा के लिए पटना जिले के पटना साहिब और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्रों तथा आरा, बक्सर, काराकाट और जहानाबाद सीटों पर फिर से समर्थन और सहानुभूति की उम्मीद करना बहुत कठिन हो गया है.

नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एहसास हो गया है कि अब वह राज्य की राजनीति में अहमियत नहीं रखते हैं. वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए के लिए वोट मांग रहे हैं. वहीं, आरजेडी के नेतृत्व वाला विपक्षी महागठबंधन कहीं ज़्यादा आश्वस्त नज़र आ रहा है. कांग्रेस समेत अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राजद सभी छह सीटों पर भाजपा और एनडीए को चुनौती दे रहा है. लेकिन एनडीए के बागियों ने काराकाट, जहानाबाद और बक्सर में मुक़ाबला त्रिकोणीय बना दिया है.

रविशंकर प्रसाद

पटना साहिब में मौजूदा भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को चुनाव प्रचार के दौरान जोरदार विरोध का सामना करना पड़ रहा है. उनसे बार-बार अपने वादे पूरा न करने के बारे में सवाल किए गए तो प्रसाद ने स्वीकार किया कि उन्होंने गलतियां की हैं और उन्हें नहीं दोहराएंगे. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ लोगों ने सड़क, जल निकासी और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें वोट न देने की कसम खा ली है.

खाली पड़ी कुर्सियां

26 मई को नीतीश को उस समय झटका लगा, जब पटना में रविशंकर प्रसाद के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा में बमुश्किल से 500 लोग ही आए थे और कई कुर्सियां खाली रह गई थीं. यह घटना 12 मई को पटना के बीचों-बीच मोदी द्वारा आयोजित बहुचर्चित रोड शो के करीब दो सप्ताह बाद हुई. हालांकि, भाजपा नेताओं ने दावा किया था कि इस आयोजन से रविशंकर प्रसाद के खिलाफ गुस्सा कम होगा. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. रविशंकर प्रसाद का मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार अंशुल अभिजीत से है, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी हैं और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के पुत्र और दिग्गज दलित नेता जगजीवन राम के पोते हैं.

मीसा भारती

पाटलिपुत्र में भाजपा के निवर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम कृपाल यादव हैट्रिक बनाने की कोशिश में हैं. वह अपनी विनम्रता के लिए लोकप्रिय हैं. लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है. राम कृपाल यादव को चुनौती राजद प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती दे रही है. राज्यसभा सदस्य मीसा भारती साल 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनाव करीब 40,000 वोटों से हार गई थीं. हालांकि, अब उनके पिता खुद उनके चुनावी अभियान की निगरानी कर रहे हैं. आरजेडी नेता एजाज अहमद ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस बार हम हार का अंतर भर लेंगे. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी, जिससे इस बार मीसा भारती को उम्मीद जगी है.

उपेंद्र कुशवाहा

काराकाट में भाजपा के सहयोगी और आरएलएम प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा के बागी और भोजपुरी फिल्म स्टार पवन सिंह के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरने से उनकी नींद उड़ गई है. पवन सिंह ने जब कुशवाहा के खिलाफ मैदान से हटने से इनकार कर दिया तो भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया. वैसे तो काराकाट में मुख्य मुकाबला भाजपा और सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार राजा राम सिंह के बीच है. लेकिन पवन सिंह ने इसे त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है. वह अपने ग्लैमर और लोकप्रिय भोजपुरी गानों से भारी भीड़ खींच रहे हैं.

चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी

जहानाबाद में जेडीयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को भी नाराज मतदाताओं ने घेर लिया है. उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी आरजेडी के सुरेंद्र प्रसाद यादव हैं, जो पूर्व सांसद और मंत्री हैं, जो साल 2019 में 1,700 वोटों से हार गए थे. लेकिन जहानाबाद में बीएसपी उम्मीदवार के तौर पर पूर्व सांसद अरुण कुमार के मैदान में उतरने से चंद्रवंशी के खिलाफ माहौल बन गया है.

जमीन का मुआवजा

बक्सर में भाजपा ने नया चेहरा मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा है. वह नाराज किसानों को मनाने की कोशिश करते नजर आए, जो बिजली संयंत्र के लिए ली गई जमीन का मुआवजा चाहते हैं. केंद्र सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी तिवारी के खिलाफ काम कर रही है. भाजपा ने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे को पार्टी का टिकट न देकर तिवारी को टिकट दिया है, जिससे तिवारी चुनाव प्रचार से दूर हो गए हैं. तिवारी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजद के सुधाकर सिंह हैं, जो राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं. असम-मेघालय बैच के युवा आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरने के बाद भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. क्योंकि भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाने का वादा किया था. लेकिन वे इससे मुकर गए.

आरा में भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह फिर से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार सुदामा प्रसाद से है.

जाति प्रतिद्वंद्विता

1 जून को जिन छह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होना है, उनमें से जहानाबाद, काराकाट, आरा और पटना साहिब का एक बड़ा हिस्सा कभी बिहार के उन क्षेत्रों में से एक था, जहां जमींदारों की सामंती ताकतों और नक्सलियों (माओवादियों) के नेतृत्व वाली खेतिहर जातियों के बीच जाति और वर्ग प्रतिद्वंद्विता हुआ करती थी. इन जगहों पर साल 1980 और 1990 के दशक के आखिर में माओवादी हिंसा और जातिगत नरसंहार हुए थे.

अंशुल को भारी समर्थन

पटना साहिब में कांग्रेस उम्मीदवार अंशुल को ओबीसी कोइरी (कुशवाहा), दलित, यादव और मुसलमानों का वोट मिलने की संभावना है. पटना साहिब के जल्ला इलाके के हार्डवेयर कंप्यूटर मैकेनिक इंद्रजीत कुमार ने कहा कि अंशुल की मां मीरा कुमार, जो पूर्व आईएफएस अधिकारी और केंद्रीय मंत्री हैं, दलित हैं और उनके पिता मंजुल कुमार, जो सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं, कुशवाहा जाति से हैं. अंशुल को दलितों का भारी समर्थन मिल रहा है और उन्हें बड़ी संख्या में कुशवाहों का समर्थन मिलने की संभावना है, जो भाजपा के पारंपरिक समर्थक हैं.

राम मंदिर कार्ड

भाजपा रविशंकर प्रसाद और अपने अन्य उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने के लिए राम मंदिर कार्ड खेल रही है. एनडीए के नेता उच्च जातियों, गैर-यादव ओबीसी, वैश्य, ईबीसी और दलितों के अपने पारंपरिक समर्थन आधार पर भरोसा कर रहे हैं. काराकाट में मुख्य प्रतिद्वंद्वी एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा और महागठबंधन के राजा राम सिंह हैं, दोनों ही कुशवाहा जाति से हैं. तीसरे प्रमुख उम्मीदवार पवन सिंह राजपूत हैं. अगर वे राजपूतों के आधे वोट भी जीत लेते हैं तो यह कुशवाहा के लिए बड़ा झटका होगा.

चिराग पासवान से नाराजगी

जहानाबाद में शक्तिशाली भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले अरुण कुमार एनडीए के चंद्रवंशी, जो कि एक ईबीसी है, के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. अरुण कुमार ने भाजपा के सहयोगी चिराग पासवान द्वारा निराश किए जाने के बाद चुनाव लड़ने का फैसला किया. चिंतित नीतीश कुमार ने समुदाय में गुस्से को कम करने के लिए व्यवसायी उमेश शर्मा, जो कि एक भूमिहार हैं, को जहानाबाद आमंत्रित किया है.

आक्रामक नेतृत्व

बिहार में भाजपा विरोधी अभियान का आक्रामक नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव मोदी और नीतीश दोनों को बेअसर करने के लिए आर्थिक मुद्दों पर जोर दे रहे हैं. यह सच है कि शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में लोगों के बीच नौकरियों की कमी और महंगाई मुख्य मुद्दे हैं. हालांकि, यह देखना होगा कि क्या आर्थिक कारक बिहार के कुख्यात जातिगत समीकरणों पर हावी हो पाएंगे. बता दें कि साल 2019 में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी. राजद को एक भी सीट नहीं मिली थी और कांग्रेस को सिर्फ़ एक सीट मिली थी.

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