महाराष्ट्र | चुनाव घोषित, लेकिन महायुति, एमवीए सीट बंटवारे में ही उलझे
शिवसेना का शिंदे गुट 100 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए विशेष रूप से जोर दे रहा है, लेकिन भाजपा सीएम शिंदे से ‘बलिदान’ करने के लिए कह रही है, जैसा कि उन्होंने गठबंधन को बरकरार रखने के लिए किया था।
Maharashtra Elections 2024: महाराष्ट्र में चुनाव एलान के बाद प्रदेश के दोनों ही गठबंधन महायुती और महाविकास अघाड़ी ( एमवीए ) में सीट बंटवारा एक टेढ़ी खीर की तरह हो चला है. आलम ये है कि चुनाव की तारीख तो तय हो चुकी है लेकिन कौनसी पार्टी कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगी ये अभी तक तय नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं दोनों ही गठबंधन में जो जो घटक दल हैं, उनके बीच कहीं न कहीं सीट बंटवारे को लेकर खींचतान भी चल रही है. सिर्फ इतना ही नहीं दोनों ही गठबंधन से जुड़ी पार्टियों पर उम्मीदवारों की दावेदारी का बोझ भी बढ़ रहा है, जिसकी वजह से बागी उम्मीदवारों की संख्या के बढ़ने का डर भी इन पार्टियों को सता रहा है.
सीट शेयरिंग में हो रही है परेशानी
दोनों ही गठबंधन में तीन-तीन राजनीतिक दलों के साथ, दोनों गठबंधनों के लिए एक सौहार्दपूर्ण समझौते पर पहुंचना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि उनके प्रत्येक घटक को सीटों के बड़े हिस्से पर नज़र है, उम्मीद है कि अगर उनका गठबंधन सरकार बनाता है तो उन्हें “अच्छा सौदा” मिलेगा.
एक उम्मीदवार और दो बागी होंगे मैदान में
जैसा की ये सबको मालूम है कि दोनों ही गठबंधन में 3-3 दल हैं. इस हिसाब से हर विधानसभा सीट पर तीन तीन दलों के तीन तीन कार्यकर्त्ता उम्मीदवार की कतार में हैं, लेकिन गठबंधन के तहत एक सीट पर तीन में से 1 ही को उम्मीदवारी दी जायेगी. यानी जिन दो को उम्मीदवारी नहीं मिलती है तो उसके बागी होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि अभी की बात करें तो इस सम्भावना से दोनों ही गठबन्धनों में घबराहट है.
सत्ता तक पहुँचने के लिए निरादालियों को दिया जा सकता है बैकडोर सपोर्ट
अगर बात करें सत्ता तक पहुँचने की तो दोनों ही गठबंधन हर हाल में राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रयासरत है. उसमें भी जो घटक हैं, उनके बीच एक दूसरे से ज्यादा सीट पाने की होड़ लगी है. ऐसे में ये भी माना जा रहा है कि गठबंधन के तहत जिस भी पार्टी के कार्यकर्त्ता को उम्मीदवारी मिलती है, तो बाकी के जो अन्य दल हैं वो अपने कार्यकर्त्ता ( निर्दलीय चुनाव लड़ने की स्थिति में ) को बैक डोर सपोर्ट दे सकता है. ऐसा उसी परिस्थिति में होने की सम्भावना है, जब निर्दलीय उम्मीदवार मजबूत स्थिति में होगा.
महायुती में चल रही है उधेड़ बुन
महायुती की बात करें तो इसमें बीजेपी, शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार के बीच गठबंधन है. वर्तमान राज्य विधानसभा में 105 विधायकों के साथ, भाजपा महायुति गठबंधन में प्रमुख पार्टी का दर्जा बरकरार रखने के लिए तैयार है, जिसमें शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) भी शामिल हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा 150-155 सीटों पर, शिंदे सेना 90-95 सीटों पर और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी 288 विधानसभा क्षेत्रों में से 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। महायुति ने 230 सीटों पर सीट बंटवारे की व्यवस्था को अंतिम रूप दे दिया है और शेष 58 क्षेत्रों पर निर्णय जल्द ही लिए जाने की संभावना है। अन्य दो सहयोगी - शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (एपी) - अधिक सीटों के लिए कड़ी मोलभाव कर रहे हैं, जबकि भाजपा राज्य में उन्हें राजनीतिक स्थान देने के लिए तैयार नहीं है।
शिवसेना का शिंदे गुट खास तौर पर 100 से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए ज़ोर दे रहा है, उसका दावा है कि लोकसभा चुनावों में महायुति के सहयोगियों में उसका स्ट्राइक रेट सबसे बेहतर था। हालाँकि, भाजपा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से कह रही है कि वे गठबंधन को बरकरार रखने के लिए वैसा ही “बलिदान” करें जैसा उन्होंने किया था।
महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले ने हाल ही में कहा, "मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे के मामले में त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसा कि भाजपा ने गठबंधन को बरकरार रखने के लिए किया है। मुख्यमंत्री को खुले दिमाग से काम लेना चाहिए और त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमने भी गठबंधन को बनाए रखने के लिए त्याग किया है। यह स्पष्ट है कि भाजपा का लक्ष्य उन सीटों पर चुनाव लड़ना है जो पहले हमारे पास थीं।"
अजित पवार कमजोर स्थिति में
हालांकि, अगर सीट बंटवारे पर मीडिया रिपोर्टों में दिए गए आंकड़े सही साबित हुए तो सबसे बड़ा नुकसान अजित पवार को होगा, क्योंकि एनसीपी (एपी) नेता इस बात पर अड़े थे कि उन्हें लगभग 70 सीटें मिलनी चाहिए, लेकिन उन्हें लगभग 45 से 55 सीटों से ही संतोष करना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि एनसीपी (एपी) लोकसभा चुनाव में महायुति गठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी थी, जिसने 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से सिर्फ़ 1 पर जीत हासिल की थी। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से यह भी कहा कि एनसीपी (एपी) अपने वोट को अन्य दो महायुति सहयोगियों को हस्तांतरित करने में विफल रही।
2019 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने 162 सीटों पर चुनाव लड़ा और 105 सीटें जीतीं, जबकि उसके गठबंधन सहयोगी अविभाजित शिवसेना ने 124 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे, जिसमें 56 सीटें हासिल हुईं।
एमवीए के बीच विदर्भ में जारी है गतिरोध
महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में कांग्रेस 110-120 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है, तो वहीँ शिवसेना (यूबीटी) 90-100 और एनसीपी (एसपी) करीब 80 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. विपक्षी गठबंधन के नेताओं के अनुसार, एमवीए 18 अक्टूबर तक अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकता है.
महायुति की तरह एमवीए भी कुल 288 सीटों में से लगभग 230 सीटों पर सहमति पर पहुंच गया है.
विदर्भ में गठबंधन सहयोगियों के बीच गतिरोध जारी है. कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) का इस क्षेत्र में बहुत कुछ दांव पर लगा है, और दोनों ही दल समझौता करने को तैयार नहीं हैं.
राजनीतिक घटनाक्रम से अवगत लोगों ने बताया कि तीनों सहयोगी दल कई दौर की चर्चा के बावजूद विदर्भ सीटों पर आम सहमति बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कई लोग इस क्षेत्र की प्रमुख सीटों के लिए खींचतान का श्रेय हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों की पृष्ठभूमि में बदलते हालात को देते हैं, जिसमें कांग्रेस को लगातार दूसरी बार भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा.
इससे पहले मुंबई की सीटों को लेकर भी गतिरोध था, लेकिन गुरुवार को एमवीए ने डील फाइनल कर दी. मुंबई में उद्धव ठाकरे की शिवसेना 36 में से 18 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस 15 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो 2019 में लड़ी गई सीटों से ज्यादा है. शरद पवार की एनसीपी को 2 सीटें मिलेंगी, जबकि 1 सीट समाजवादी पार्टी को दी जाएगी.
विदर्भ में कांग्रेस अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. वह नागपुर और उसके आसपास की सीटों पर अपने दावे का मजबूती से बचाव कर रही है और इस क्षेत्र में अपनी पिछली सफलताओं पर जोर दे रही है, जबकि शिवसेना ने पांच सीटों पर अपना दावा पेश किया है: नागपुर दक्षिण, नागपुर पूर्व, रामटेक, कामठी और उमरेड.
2024 के लोकसभा चुनाव में विदर्भ की 10 लोकसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) पीछे हटने के मूड में नहीं है. शिवसेना (यूबीटी) नेताओं का तर्क है कि उन्होंने आम चुनावों में कांग्रेस को सीटें दी थीं और अब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भी उनके इस कदम का बदला चुकाना चाहिए.
छोटी पार्टियों ने बढ़ाई परेशानी
समाजवादी पार्टी (सपा) के शामिल होने से एमवीए की सीट बंटवारे की परेशानी बढ़ गई है, क्योंकि इसके प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी ने कहा है कि वे महाराष्ट्र में कम से कम 12 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेंगे, हालांकि अंतिम निर्णय सपा प्रमुख अखिलेश यादव के परामर्श से लिया जाएगा.
सीट बंटवारे के समझौते में सपा को तीन सीटें मिलने की संभावना है. मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (पीडब्ल्यूपी) को भी तीन और सीपीआई-एम को दो सीटें मिलने की संभावना है.
इस बीच, चुनावों से पहले शरद पवार की अगुआई वाली एनसीपी उन नेताओं के लिए पसंदीदा जगह बनती दिख रही है, जिन्हें महायुति में टिकट मिलने की संभावना नहीं है. पार्टी ने पहले ही हर्षवर्धन पाटिल और समरजीत घाटगे जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया है और सत्तारूढ़ गठबंधन से कई अन्य नेताओं को भी अपने साथ जोड़ने की प्रक्रिया में है.
2019 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने 147 सीटों पर चुनाव लड़ा और 44 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि अविभाजित एनसीपी ने गठबंधन किया, जिसने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा और 54 पर विजयी हुई.
Next Story