चाहे एमवीए या महायुति राह आसान नहीं, जनता का नब्ज समझने में छूट रहे पसीने
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चाहे एमवीए या महायुति राह आसान नहीं, जनता का नब्ज समझने में छूट रहे पसीने

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का नतीजा 23 नवंबर को आएगा। लेकिन उससे पहले चाहे महायुति हो या महा विकास अघाड़ी इन दोनों को वोटर्स का मिजाज पढ़ने में पसीने छूट रहे हैं।


Maharashtra Assembly Elections 2024 महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की सभी 288 सीटों पर मतदान 20 नवंबर को होना है। राज्य की जनता सभी उम्मीदवारों की किस्मत उस खास दिन ईवीएम में कैद कर देगी। नतीजे 23 नवंबर को आएंगे और सबकी निगाह जादुई आंकड़ा 145 पर टिकी होगी। यानी कि जिस गठबंधन के पास 145 का आंकड़ा होगा वो सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगा। लेकिन यदि यह आंकड़ा किसी को नहीं मिला तो क्या 2019 जैसी तस्वीर दिखाई।

एक बात तो तय है कि कोई भी राजनीतिक दल अपने बलबूते सभी सीटों पर चुनावी मैदान में नहीं है तो इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी दल को अकेले 145 की संख्या नहीं मिलने जा रही। ऐसे में सरकार महायुति(Mahayuti) की होगी या महाविकास अघाड़ी (Maha vikas Aghadi) की या इन दोनों से इतर भी कोई राजनीतिक तस्वीर बन रही है। इन सबके बीच राज्य की सियासत में मराठा (Maratha Reservation Issue)और ओबीसी(OBC Issue in Maharashtra) का मुद्दा इतना जटिल हो गया है कि दोनों गठबंधन समझ नहीं पा रहे कि पलड़ा किसके पक्ष में भारी होगा।

पहले महाराष्ट्र के वोटबैंक पर नजर डालते हैं। पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी समाज की भागीदारी करीब 52 फीसद है जबकि मराठा समाज की हिस्सेदारी 28 फीसद। इस आंकड़े से साफ है कि ओबीसी की संख्या मराठा समाज से अधिक है। यह बात तो सच है कि कोई भी राजनैतिक दल सैद्धांतिक तौर पर किसी एक समाज के पक्ष में नारे बुलंद कर सकता है। लेकिन सत्ता तक पहुंच बनाने के लिए उसे दोनों समाज को साधना होगा। महाराष्ट्र की राजनीति की एक खासियत यह भी है कि भले ही संख्या में ओबीसी अधिक हों जमीनी तौर कम संख्या में होते हुए भी मराठा भारी पड़ते हैं।

राज्य के विदर्भ इलाके में कुल 62 सीट है, मराठवाड़ा में 46 सीट और पश्चिम महाराष्ट्र में 70 सीट। यह तीनों मिलाकर 116 सीटें होती हैं। यदि 288 के लिहाज से देखें तो करीब 80 फीसद सीटें इन इलाकों से आती हैं। इसका अर्थ यह है कि अगर कोई भी गठबंधन इन इलाकों में बेहतर प्रदर्शन करता है तो मुंबई जाने का टिकट पक्का हो जाएगा। लेकिन सबसे अधिक पेंच इन्हीं इलाकों में है।

अब बात करेंगे कि मराठा और ओबीसी का झुकाव आम तौर पर किस दल की तरफ रहा है। मराठा समाज आमतौर पर शरद पवार वाले गुट और शिवसेना उद्धव का समर्थन करता रहा है। कुछ हद तक कांग्रेस को भी इस समाज का समर्थन मिलता रहा है। लेकिन कांग्रेस का मामला इस लिए अलग है कि पार्टी को जो भी वोट मिलते हैं वो मराठा नेताओं की वजह से मिलता है। बीजेपी को आमतौर पर मराठा वोट कम मिलता रहा है और उसकी नैया शिवसेना के जरिए पार होती थी। महाराष्ट्र की सियासत को अगर गौर से देखें तो सब में से कुछ और कुछ में सब का हिसाब किताब रहा। यानी कि किसी भी दल का समान रूप से मराठा या ओबीसी दोनों वर्गों पर असर नहीं है। जमीनी तौर पर यह देखा भी गया है कि जिन सीटों पर मराठा उम्मीदवार चुनावी मैदान में रहे हैं वहां ओबीसी समाज ने वोट कम किया है। इन सबके बीच मराठा आरक्षण के मुद्दे पर एक तीसरा पक्ष मनोज जरांगे का भी है। जरांगे ने पहले उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन नाम वापसी वाले दिन सभी उम्मीदवार चुनावी रेस से बाहर हो गए। अब इसे लेकर स्थिति साफ नहीं हो रही है इसका असर या नुकसान किस दल पर अधिक होगा।

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