गठबंधन के भंवर में फंसे उद्धव ! क्या एनसीपी-कांग्रेस डाल रहे हैं बेजा दबाव
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गठबंधन के भंवर में फंसे उद्धव ! क्या एनसीपी-कांग्रेस डाल रहे हैं बेजा दबाव

महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होगा। हालांकि महा विकास अघाड़ी के घटक दल सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बना सके हैं।


Maharashtra Assembly Polls 2024: नवंबर के महीने में दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा का चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक दल उम्मीदवारों पर मंथन कर नाम भी जारी कर रहे हैं। लेकिन विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। जैसे महाराष्ट्र में महायुति में बीजेपी ने 99 उम्मीदवारों की सूची जारी की है और बगावत को शांत करने में जुटी है। वहीं महा विकास अघाड़ी में सीट बंटवारे पर सहमति बनाने की कवायद जारी है। इन सबके बीच हम यहां समझने की कोशिश करेंगे कि शिवसेना यूबीटी गुट के नेता बार बार यह क्यों कह रहे हैं कि उनकी बातचीत राज्यस्तरीय नेताओं के साथ नहीं होगी वो सीधे तौर पर केंद्रीय नेतृत्व से बात करेंगे। उद्धव ठाकरे कैंप को कांग्रेस के नाना पटोले से ऐतराज है।

36 सीटों पर घमासान, विदर्भ पर भी रार
बताया जा रहा है कि शिवसेना और कांग्रेस के बीच कुल 36 सीटों को लेकर घमासान है। ये सभी सीटें मुंबई, नासिक और विदर्भ इलाके की हैं। इन सीटों पर ना तो कांग्रेस और ना ही शिवसेना पीछे हटने के लिए तैयार है। इस तरह के भी संदेश जा रहे हैं कि यह संभव है कि बगावत का स्तर इतने बड़े पैमाने पर हो कि महाविकास अघाड़ी के अस्तित्व पर संकट उठ खड़ा हो। हालांकि बड़े नेताओं को उम्मीद है कि अंत भला तो सब भला वाला मुहावरा काम कर जाएगा। यानी उन्नीस-बीस का समीकरण बनेगा और सभी धड़े चुनावी प्रचार में जुट जाएंगे।

शिवसेना का तल्ख रुख
बता दें कि महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों के लिए एक चरण यानी 20 नवंबर को मत डाले जाएंगे। चुनाव के लिहाज से महाराष्ट्र के बाकी क्षेत्रों की तरह विदर्भ की भूमिका अहम है। इस इलाके में कांग्रेस और शिवसेना दोनों का आधार है लिहाजा सीटों के मुद्दे पर टकराव भी इन्हीं दो दलों के बीच है। एनसीपी शरद पवार दर्शक की भूमिका में है। हालांकि महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि सबकी नजर शरद पवार पर है। यानी कि शरद पवार अगर कोई समाधान लेकर आते हैं तो वो सबको मान्य हो जाएगा। विदर्भ की सात सीटें ऐसी हैं जिसे लेकर शिवसेना उद्धव कैंप और कांग्रेस पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। दोनों दलों का दावा है कि उन सीटों पर उनका उम्मीदवार महायुति के उम्मीदवार को हराने की माद्दा रखता है।

कांग्रेस क्यों बना रही दबाव
कांग्रेस दबाव क्यों बना रही है। इस सवाल का जवाब आम चुनाव 2024 के नतीजों में छिपा हुआ है। कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था और उस आधार पर 110 सीटों पर दावेदारी पर विचार कर रही है, वहीं शिवसेना का भी दावा 100 सीटों पर है। लेकिन इसके लिए ना तो कांग्रेस और ना ही एनसीपी शरद गुट सहमत होता दिख रहा है। इन दोनों दलों का तर्क है कि सीट बंटवारे के लिए आम चुनाव 2024 को आधार बनाना चाहिए। जबकि शिवसेना उद्धव गुट का तर्क 2019 का चुनाव है। इन सबके बीच अहम सवाल यह भी है कि अगर कांग्रेस और उद्धव ठाकरे 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो शरद पवार के हाथ में क्या आएगा क्योंकि छोटे छोटे कई और दल है जिनकी मदद से सामाजिक आधार को मजबूत किया जा सकता है।

इन सबके बीच शिवसेना और कांग्रेस दोनों तरफ से बयान आ रहा है कि हमारे बीच अनबन नहीं है। यह तो बीजेपी सिर्फ वोटर्स में भ्रम फैलाने के लिए इस तरह से प्रचार कर रही है। हालांकि सियासी जानकार कहते हैं कि भ्रम फैलाने वाली बात अपनी जगह है। असली लड़ाई बड़े भाई छोटे भाई की है। कांग्रेस अगर 2024 को आधार बनाकर अधिक सीटों पर लड़ने की बात कह रही है तो सैद्धांतिक तौर पर उसमें गलत क्या है। लेकिन हरियाणा चुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस के सहयोगियों को लगवे लगा कि वो कुछ दबाव बनाकर अपनी सीट संख्या में इजाफा कर सकते हैं जिसके संकेत नतीजों वाले दिन यानी आठ अक्टूबर को ही मिल गए थे।

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