Maharashtra Election : कहीं सोयाबीन का मुद्दा निकाल न दे तेल ! 70 सीटों पर है प्रभाव
सोयाबीन की बम्पर उपज के चलते कीमतें कम हुई हैं, जिसकी वजह से किसानों में नाराजगी है. इसके साथ ही MSP के हिसाब से भी फसल नहीं बिक पा रही है क्योंकि सरकारी केंद्र पूरी तरह से खुल नहीं पाए हैं.
Maharashtra Election And Soyabeen : महाराष्ट्र में मतदान 20 नवम्बर को होने वाला है. हर पार्टी हर मुद्दे पर कोई न कोई वादा कर रही है लेकिन इन तमाम मुद्दों के बीच एक मुद्दा सोयाबीन का भी है, जो कहीं न कहीं इस चुनाव का रुख मोड़ सकता है. प्रदेश की 70 विधानसभा सीट ऐसी हैं, जहाँ पर सोयाबीन की खेती काफी होती है, ऐसे में इन 70 सीटों पर सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है. अब बात करते हैं कि मुद्दा क्या है तो ये सोयाबीन की फसल की कीमतों से जुड़ा है. उचित कीमत नहीं मिल पाने की वजह से किसानों में सरकार के प्रति नाराज़गी है. कहीं ऐसा न हो कि लोकसभा चुनाव में जो आंसू प्याज ने निकाले वो विधानसभा चुनाव में सोयाबीन न निकाल दे.
सोयाबीन की उपज ज्यादा कीमत कम
सोयाबीन की बात करें तो इसकी उपज बम्पर हुई है, जिसकी वजह से बाज़ार में इसके भाव कम हो गए हैं. हालाँकि MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 4800 रूपये प्रति क्विंटल है, लेकिन सरकारी खरीद की सुस्त चाल ने किसानों को फसल बाज़ार में बेचने के लिए मजबूर कर दिया है. आलम ये है कि सरकारी केंद्र अभी तक पूरी तरह से खुल नहीं पाए हैं. इस वजह से किसानों MSP से लगभग 400 से 450 रूपये कम पर अपनी फसल बेचने पड़ रही है.
कृषि मूल्य आयोग के अध्यक्ष पाशा पटेल ने परिचालन केंद्रों की कमी पर निराशा व्यक्त करते हुए राज्य सरकार से इस पर तेजी से कार्रवाई करने का आग्रह किया है.
सोयाबीन की कीमतों को लेकर क्या राजनीति है?
चुनावी सीजन में राजनीती करने का मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता. विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ गठबंधन को घेरने के लिए इस मौके का फायदा उठाया है. शिवसेना (UBT) के नेता उद्धव ठाकरे ने सोयाबीन की कीमतों का मुद्दा उठाते हुए ये वादा किया है कि महा विकास अघाड़ी के सत्ता में आने पर फसल के लिए 6,000 रुपये का MSP देने का वादा किया है. वहीँ सत्तारूढ़ महायुति ने खाद्य तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने के बाद 400 रुपये की मामूली बढ़ोतरी की घोषणा करके संकट को कम करने की कोशिश की है.
मराठवाड़ा और विदर्भ में है सोयाबीन का प्रभाव
मराठवाड़ा और विदर्भ में सोयाबीन की खेती काफी होती है. यही वजह है कि इस क्षेत्र में ये एक बड़ा राजनितिक मुद्दा है. मराठवाड़ा के लातूर, उस्मानाबाद, जालना, बीड, परभणी और औरंगाबाद जैसे जिलों के साथ-साथ विदर्भ के नागपुर, यवतमाल, चंद्रपुर, वाशिम, वर्धा और बुलढाणा में चुनावी नतीजे किसानों की भावनाओं से प्रभावित हो सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी किसानों से किया वादा
ऐसा नहीं है कि किसानों की ये तकलीफ सत्तारूढ़ दलों तक नहीं पहुंची है . खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस मुद्दे पर एक रैली के दौरान सोयाबीन की कीमतों को स्थिर करने के उपायों का वादा किया है.
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