राहुल-अखिलेश ने पहले चरण से ही कर दिया था खेला, इंडिया गठबंधन बना चुकी थी बढ़त
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राहुल-अखिलेश ने पहले चरण से ही कर दिया था खेला, इंडिया गठबंधन बना चुकी थी बढ़त

लोकसभा चुनाव के पहले चरण से ही यूपी में इंडिया ब्लॉक आगे बढ़ गया था. उम्मीदवारों से असंतोष और स्थानीय मुद्दों जैसे कारणों ने सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोटरों का मन बदला.


UP Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव के पहले चरण से ही यूपी में इंडिया ब्लॉक आगे बढ़ गया था. वहीं, बसपा सभी चरणों में पिछड़ गई थी. वहीं, बीजेपी दूसरे चरण के दौरान अपनी साल 2019 की सफलता को दोहरा सकती थी. लेकिन उम्मीदवारों से असंतोष और स्थानीय मुद्दों जैसे कारणों ने सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोटरों का मन बदला.

चुनाव के पहले चरण में भाजपा केवल एक सीट पीलीभीत को सुरक्षित करने में सफल रही. सपा ने आठ में से चार सीटों के साथ बहुमत हासिल किया. जबकि, कांग्रेस और आरएलडी ने एक-एक सीट हासिल की थी. ​​आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद ने भी नगीना सीट जीत ली थी. इस चरण में उच्च मुस्लिम आबादी और महत्वपूर्ण दलित समुदायों वाले क्षेत्र शामिल थे. यहां बीएसपी हार गई थी. जिसने साल 2019 की सभी तीन सीटें खो दी थी. 20% से अधिक दलित आबादी वाली नगीना की आरक्षित सीट आज़ाद ने जीती. जबकि, सहारनपुर कांग्रेस के इमरान मसूद के खाते में गई, जिन्हें बीएसपी से बाहर कर दिया गया था. बिजनौर साल 2019 की बीएसपी सीट आरएलडी के खाते में गई, जो पहले बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. बीजेपी ने केवल पीलीभीत पर कब्जा किया. लेकिन कैराना और मुजफ्फरनगर एसपी से हार गईं. इंडिया ब्लॉक के लिए मुस्लिम वोटों का एकीकरण और जाटव वोटों का कांग्रेस की ओर शिफ्ट होना, गठबंधन के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ. उम्मीदवारों की रणनीतिक फील्डिंग और मौजूदा बीजेपी सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने इसमें मदद की.

चरण दो ने बीएसपी के संघर्षों को उजागर किया. साल 2019 में एक सीट अमरोहा को कांग्रेस की मजबूत चुनौती से हारना इन कठिनाइयों को दर्शाता है. भाजपा के गढ़ गाजियाबाद में वीके सिंह को हटाए जाने पर कुछ लोगों की नाराजगी के बावजूद अतुल गर्ग ने जीत हासिल की. हालांकि, ​​मतदान प्रतिशत अधिक होने के बावजूद जीत का अंतर कम हुआ. बागपत में रालोद की जीत जाट वोटों के एकजुट होने से हुई.

तीसरे चरण में सपा ने अपनी सीटों की संख्या दो से बढ़ाकर छह कर ली थी. जबकि, भाजपा की सीटें साल 2019 के आठ से आधी होकर 2024 में चार हो गईं. सपा ने एटा, बदायूं, फिरोजाबाद और आंवला पर कब्जा किया. एटा और आंवला में भाजपा की हार क्रमशः राजवीर सिंह और धर्मेंद्र कश्यप के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी भावनाओं के कारण हुई. अनुभवी सांसद संतोष सिंह गंगवार की जगह छत्रपाल गंगवार को लाने के बावजूद भाजपा ने बरेली को बरकरार रखा.

चौथे चरण में इंडिया ब्लॉक को और बढ़त मिली. इस चरण में साल 2019 में भाजपा की सीटों की संख्या 13 से घटकर सिर्फ आठ रह गईं. सीतापुर कांग्रेस के खाते में गई. जबकि खीरी, धौरहरा, कन्नौज और इटावा सपा के खाते में गई. इस चरण तक इंडिया ब्लॉक की गति स्पष्ट हो गई थी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की कन्नौज के लिए देर से उम्मीदवारी की घोषणा ने पार्टी को उत्साहित कर दिया. भाजपा सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर साफ हो गई थी.

पांचवें चरण में सपा सबसे बड़ी विजेता के रूप में उभरी. पार्टी ने मोहनलालगंज (एससी), जालौन (एससी), हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशाम्बी (एससी), और फैजाबाद पर कब्जा किया. इन सीटों पर सपा ने साल 2019 में कोई भी जीत हासिल नहीं की थी. कांग्रेस ने भी अपनी संख्या में इजाफा किया. इस चरण में सबसे ज्यादा संख्या में आरक्षित सीटें थीं. कौशांबी में विनोद सोनकर की हार मजबूत राजपूत नेता रघुराज प्रताप सिंह के तटस्थ रुख से प्रभावित थी. फैजाबाद में लल्लू सिंह को सपा के दिग्गज अवधेश प्रसाद से हार का सामना करना पड़ा. भाजपा को अमेठी में भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जहां स्मृति ईरानी को गांधी परिवार के वफादार केएल शर्मा से हार का सामना करना पड़ा.

छठे चरण में सपा ने अधिकतम सीटों पर कब्जा किया, जो साल 2019 में सिर्फ एक थी. बसपा ने साल 2019 की अपनी सभी चार सीटें खो दीं. जबकि, कांग्रेस को एक का फायदा हुआ. भाजपा की सीटों की संख्या छह घटकर तीन हो गईं. साल 2019 में बसपा के पास जो चार सीटें थीं- अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, लालगंज (एससी), और जौनपुर- सभी सपा ने जीतीं. सुल्तानपुर से मेनका गांधी और संत कबीर नगर से प्रवीण निषाद जैसे जाने-माने भाजपा चेहरे हारने वालों में शामिल रहे. सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, बस्ती, लालगंज, जौनपुर, आजमगढ़ और मछलीशहर में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. इसके अलावा इलाहाबाद सीट कांग्रेस के उज्ज्वल रमण सिंह के खाते में गई.

सातवें चरण में सपा को काफी फायदा मिला. पार्टी के पास साल 2019 में शून्य सीटों से बढ़कर साल 2024 में छह पर पहुंच गई. वहीं, भाजपा की सीटें तीन कम हो गईं, उसके पास छह रह गईं. बसपा ने घोसी और गाजीपुर में अपनी साल 2019 की सीटें खो दीं. अपना दल (सोनेलाल) ने रॉबर्ट्सगंज (एससी) को सपा से हारने के बाद केवल मिर्जापुर पर कब्जा किया. प्रधानमंत्री मोदी का अंतर साल 2019 में 3.8 लाख से घटकर 2024 में 1.6 लाख हो गया. उच्च जाति और पिछड़े वोटों में विभाजन ने सपा को घोसी में जीत दिलाई, जहां उच्च जाति के मतदाताओं ने भाजपा के सहयोगी एसबीएसपी के अरविंद राजभर के मुकाबले सपा के राजीव राय का समर्थन किया. केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे को चंदौली में झटका लगा.

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