लोकसभा चुनाव 2024: कैसे इंडिया ब्लॉक की सोशल इंजीनियरिंग ने यूपी में बदला खेल?
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लोकसभा चुनाव 2024: कैसे इंडिया ब्लॉक की सोशल इंजीनियरिंग ने यूपी में बदला खेल?

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा के जादुई सोशल इंजीनियरिंग रूप को अपनाया. जिस वजह से यूपी लोकसभा चुनाव के नतीजे एनडीए के पक्ष में नहीं रहे.


India Alliance Social Engineering: सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा के जादुई सोशल इंजीनियरिंग रूप को अपनाया. जिस वजह से उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में नहीं रहे. समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने कुल 80 सीटों में से 43 सीटें जीतीं, जिससे भाजपा को आधे से ज़्यादा सीटें नहीं मिल पाईं और '400 पार ' की बात दूर की कौड़ी साबित हुई.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की सरल और समावेशी सोशल इंजीनियरिंग ने यह उपलब्धि हासिल की, जिसने बीजेपी के रथ को लगभग रोक दिया. बहुजन समाज पार्टी के धीरे-धीरे हो रहे पतन का फायदा उठाते हुए अखिलेश दलितों को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे. साल 2018 में उन्होंने लखनऊ में सपा कार्यालय में बीआर आंबेडकर की एक प्रतिमा का अनावरण किया था, जिससे उन्हें राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और अन्य समाजवादी नेताओं जैसे पार्टी के प्रतीकों में शामिल कर दिया गया. साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए उन्होंने पीडीए यानी कि पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक नामक एक बहुत व्यापक फॉर्मूलेशन को एक साथ रखकर सपा की धारणा को एमवाई (मुस्लिम-यादव) से बाहर निकाला.

सपा-कांग्रेस की एकता पीडीए के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ साझा चेतना और भावना से पैदा हुई थी. इस सामाजिक न्याय के मुद्दे के केंद्र में संविधान को बनाए रखने की प्रतिज्ञा थी, जिससे पीडीए के लिए सकारात्मक गारंटी मिलती है और साथ ही कांग्रेस के घोषणापत्र में सूचीबद्ध वादों को पूरा किया जाता है, जो सबसे हाशिए पर पड़े लोगों के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दों को संबोधित करते हैं - बेतहाशा बेरोजगारी, आसमान छूती महंगाई, किसानों की परेशानी, परीक्षा के पेपर लीक, आवारा पशुओं का आतंक, जाति और धर्म के आधार पर असमानता, भेदभाव और हिंसा और जाति जनगणना का आश्वासन.

फैजाबाद (अयोध्या) में विजय

उन्होंने गैर-यादव ओबीसी को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा के जादुई सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को ही अपनाया. अखिलेश ने कुर्मियों को 13 सीटें देकर और अन्य पिछड़ी जातियों जैसे कि कुशवाह, निषाद, बिंद, मौर्य और पाल को कई सीटें देकर अपनी बात पर अमल किया. उन्होंने और साथ ही इंडिया ब्लॉक के अन्य नेताओं ने भाजपा के '400 पार ' के अति आत्मविश्वासी दावे का चतुराई से फायदा उठाया. जब कई भगवा ब्रिगेड के नेताओं ने विस्तार से बताया कि संविधान में बदलाव करके दीर्घकालिक परिवर्तन लाने के लिए इतनी संख्या की आवश्यकता है तो पीडीए धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से संविधान को बचाने के लिए यूपी में इंडिया ब्लॉक की ओर चला गया. यह वही वर्ग है, जिसने साल 2014 और 2019 में भाजपा को उत्साहपूर्वक वोट दिया था. इस बार न तो अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का आकर्षण और न ही मुफ्त राशन और अन्य लाभार्थि लाभों का प्रलोभन भाजपा के पक्ष में काम आया. यह भाजपा द्वारा संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का डर था, जिसने उन्हें इंडिया ब्लॉक की ओर जाने के लिए मजबूर किया.

दिलचस्प बात यह है कि गैर-जाटव और बाद में जाटव दलित भी सपा की ओर झुकते दिखाई दिए. उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए अखिलेश ने गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में दलितों को कम से कम दो टिकट दिए. उनकी रणनीति की सफलता का सबसे बड़ा उदाहरण फैजाबाद (अयोध्या) में मिली जीत है, जहां अखिलेश ने भाजपा के दो बार के सांसद और राजपूत नेता लल्लू सिंह के खिलाफ सामान्य सीट पर पार्टी के दिग्गज अवधेश प्रसाद, जो पासी हैं, को मैदान में उतारा था. राम मंदिर के केंद्र अयोध्या में प्रसाद ने 54,567 वोटों के शानदार अंतर से जीत हासिल की.

मायावती की चुनावी चालों के स्पष्ट होने के बाद जाटव वोटों का एक हिस्सा भी सपा की ओर चला गया. बहनजी ने जिस तरह से टिकट बांटे, उसमें एक निश्चित योजना थी, जिसका मतलब था कि इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों की संभावनाओं को कम करना. वहीं, उन्होंने अपने ही भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद को चुनाव के शुरुआती चरण में भाजपा के खिलाफ एक तीखा भाषण देने के बाद सभी जिम्मेदारियों से वंचित कर दिया गया. वहीं, अखिलेश ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर आकाश का बचाव करने में देर नहीं लगाई.

ब्लॉकबस्टर फिल्म

एक तरह से सपा की जीत ने साल 2019 में अखिलेश के साथ हुए अन्याय का भी बदला ले लिया है. जब सपा-बसपा गठबंधन ने मायावती को 10 सीटें और सपा को सिर्फ पांच सीटें दी थीं. तब बहनजी ने एकतरफा गठबंधन तोड़ दिया था और सपा पर वोट ट्रांसफर न कर पाने का आरोप लगाया था.

आजाद समाज पार्टी (काशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने नगीना (सुरक्षित) सीट पर भाजपा को 1.51 लाख मतों से हराया और यहां बसपा चौथे स्थान पर रही, जो इस बात का संकेत है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा की पकड़ कितनी कमजोर हो गई है, जहां जाटव वोटों की अच्छी खासी संख्या है.

सपा ने अकेले 37 सीटें जीती हैं, जबकि बसपा कहीं भी दूसरे नंबर पर नहीं है. इसका वोट शेयर घटकर 2.05 प्रतिशत रह गया है, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है. यह उस पार्टी के लिए निर्णायक अंत है, जो कभी दलितों और बहुजनों का प्रतिनिधित्व करती थी.

प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को दो शहजादे बताया. उन्होंने फ्लॉप फिल्म दो शहजादे की दोबारा रिलीज के लिए उनके साथ आने का मजाक उड़ाया था. हालांकि, इस बार राहुल और अखिलेश द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले इंडिया ब्लॉक ने ब्लॉकबस्टर देने के लिए भाजपा के अपने जातिगत फॉर्मूले को फिर से तैयार किया.

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