BJP की नहीं बचा पाए साख ये केंद्रीय मंत्री, विभिन्न दलों के CM रहे उम्मीदवार भी हारे
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BJP की नहीं बचा पाए साख ये केंद्रीय मंत्री, विभिन्न दलों के CM रहे उम्मीदवार भी हारे

साल 2024 के लोकसभा चुनावों में न केवल भाजपा के कई केंद्रीय मंत्रियों को आश्चर्यजनक हार का सामना करना पड़ा. बल्कि विभिन्न दलों के कई बड़े नाम भी इलेक्शन हार गए.


Lok Sabha Election Result: साल 2024 के लोकसभा चुनावों में न केवल भाजपा के कई केंद्रीय मंत्रियों को आश्चर्यजनक हार का सामना करना पड़ा. बल्कि विभिन्न दलों के कई बड़े नाम भी इलेक्शन हार गए. इनमें केंद्रीय मंत्री, कई बार के सांसद और जाने-माने राजनीतिक नेता शामिल रहे. यहां आठ बड़े नाम हैं, जो चौंकाने वाली नतीजों में चुनाव हार गए, उनमें से कुछ बिल्कुल नए लोगों से हार गए, जिनमें केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं.

स्मृति ईरानी (भाजपा), अमेठी

'क्योंकि सास भी कभी बही थी' की बेहद लोकप्रिय टीवी अभिनेत्री ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश के गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर जीत हासिल करके राजनीतिक सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल किया था. लेकिन इस बार ईरानी को किशोरी लाल शर्मा के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जो एक साधारण कांग्रेस कार्यकर्ता हैं. उन्हें शायद ही अमेठी के अलावा कोई जानता हो. शर्मा पिछले 40 सालों से अमेठी में काम कर रहे हैं. उन्हें साल 1983 में राजीव गांधी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों की निगरानी के लिए चुना था. इतने वर्षों में शर्मा ने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के लिए काम करना जारी रखा और उनके प्रयासों के कारण ही गांधी परिवार अमेठी पर कब्ज़ा बनाए रख सका. इसके बाद शर्मा ने रायबरेली पर भी नज़र रखनी शुरू कर दी, जो गांधी परिवार का दूसरा किला है, जिसे इस साल की शुरुआत में सोनिया गांधी द्वारा राज्यसभा जाने के बाद राहुल गांधी ने जीता है. वहीं, भाजपा ने शर्मा को राहुल गांधी का पीए कहकर खारिज कर दिया था.

अधीर रंजन चौधरी (कांग्रेस), बहरामपुर

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का एकमात्र प्रमुख चेहरा अधीर रंजन चौधरी पिछले 25 सालों से बहरामपुर लोकसभा क्षेत्र का पर्याय रहे हैं. उन्होंने साल 1999 में पहली बार यह सीट जीती थी, जब बंगाल में वामपंथियों का शासन था और अगले चार आम चुनावों में भी इस सीट पर उनका कब्जा बना रहा. इस बीच उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी वामपंथी से टीएमसी में बदल गए. हालांकि, पिछले दो चुनावों में उनके वोट शेयर में गिरावट आई थी. लेकिन इस बार वह पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान से सीट हार गए. 17वीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी चुनाव से पहले गलत कारणों से सुर्खियों में बने रहे. तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनकी पुरानी दुश्मनी खुलकर सामने आ गई.

मेनका गांधी (भाजपा), सुल्तानपुर

पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व मंत्री मेनका गांधी साल 1996 से संसद सदस्य हैं. वह इस बार के चुनाव में सुल्तानपुर में समाजवादी पार्टी के राम भुआल निषाद से 43,000 से अधिक मतों से हार गईं. मेनका गांधी ने साल 1996 से 2009 तक और फिर 2014 से 2019 तक पीलीभीत लोकसभा सीट पर कब्जा बनाए रखा. साल 2009 और 2019 में अपने बेटे वरुण गांधी के लिए उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया था. बीजेपी ने तनावपूर्ण संबंधों के कारण वरुण को इस बार टिकट नहीं दिया गया. जबकि, मेनका उत्तर प्रदेश में सपा की लहर में सुल्तानपुर सीट बचाने में विफल रहीं.

उमर अब्दुल्ला (एनसी), बारामूला

उत्तरी कश्मीर के बारामूला में कश्मीरी भावना विजयी हुई, जिसने जेल में बंद अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) के नेता अब्दुल रशीद शेख उर्फ इंजीनियर रशीद के पक्ष में बड़ी संख्या में मतदान किया. वह इस केंद्र शासित प्रदेश में दशकों से नागरिक स्वतंत्रता की कमी और केंद्रीय बलों द्वारा कथित अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहा है. इंजीनियर राशिद वर्तमान में यूएपीए के आरोपों के तहत दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. कथित आतंकी फंडिंग से जुड़े एक मामले में अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने के बाद उन्हें एनआईए ने गिरफ्तार किया था. उनकी अनुपस्थिति में उनके छोटे बेटे अबरार रशीद ने "जेल का बदला वोट से " अभियान चलाया और बारामूला की जनता ने इस उम्मीद में मतदान किया कि सांसद बनाने से जेल से उनकी रिहाई सुनिश्चित हो जाएगी. रशीद ने एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अपने गुट के नेता सज्जाद लोन को क्रमशः लगभग 2 लाख और 3 लाख वोटों से पीछे छोड़ दिया. वहीं, चुनावों में हार के बाद अब्दुल्ला ने ट्वीट किया कि उत्तरी कश्मीर में जीत के लिए इंजीनियर राशिद को बधाई. मुझे नहीं लगता कि उनकी जीत से जेल से रिहाई जल्दी होगी और न ही उत्तरी कश्मीर के लोगों को वह प्रतिनिधित्व मिलेगा, जिसका उन्हें अधिकार है. लेकिन मतदाताओं ने अपनी बात कह दी है और लोकतंत्र में यही मायने रखता है.

महबूबा मुफ्ती (पीडीपी), अनंतनाग-राजौरी

घाटी में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को एक और चौंकाने वाली हार का सामना करना पड़ा, जो अपने गृह क्षेत्र अनंतनाग-राजौरी से प्रभावशाली गुज्जर नेता एनसी उम्मीदवार मियां अल्ताफ से 279,270 मतों से हार गईं. राजनीतिक विश्लेषक और कश्मीर एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व विधि विभागाध्यक्ष डॉ. शेख शौकत ने मुफ्ती और अब्दुल्ला की हार का सारांश इस प्रकार दिया कि जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख के मतदाताओं ने भाजपा+प्रॉक्सियों के रुख को पूरी तरह से खारिज कर दिया है और उमर अब्दुल्ला और महबूबा को उनके सहयोग के लिए दंडित किया है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहला लोकसभा चुनाव था.

भूपेश बघेल (कांग्रेस), राजनांदगांव

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के संतोष पांडे से लगभग 45,000 मतों से हार गए. मतगणना के दिन की पूर्व संध्या पर बघेल ने ईवीएम में गड़बड़ी का संकेत दिया था. हालांकि, उनके राज्य में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही है और पार्टी पिछले साल विधानसभा चुनाव भी भाजपा से हार गई थी. हालांकि, बघेल ने राज्य चुनावों में अपने पाटन विधानसभा क्षेत्र को बरकरार रखा. लेकिन लोकसभा की कोशिश कामयाब नहीं हुई.

अर्जुन मुंडा (भाजपा), खूंटी

जनजातीय मामलों के मंत्री और झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा खूंटी सीट पर कांग्रेस के अपेक्षाकृत अज्ञात उम्मीदवार कालीचरण मुंडा से 1.49 लाख वोटों के अंतर से हार गए. गौरतलब है कि साल 2019 में अर्जुन ने कालीचरण के खिलाफ केवल 1,445 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. कालीचरण ने अपनी सफलता का श्रेय पार्टी कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों, इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के समर्थन और खूंटी के लोगों के भरोसे को दिया. 56 वर्षीय अर्जुन मुंडा इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव का पद संभाल चुके हैं.

के अन्नामलाई (भाजपा), कोयंबटूर

तमिलनाडु में भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद राज्य प्रमुख के अन्नामलाई को कोयंबटूर में डीएमके के गणपति राजकुमार पी से 118,068 वोटों के अंतर से करारी हार का सामना करना पड़ा. पूर्व आईपीएस अधिकारी की हार से पता चलता है कि भगवा पार्टी चाहे जो भी दावा करे, दक्षिणी राज्यों में अपनी पैठ बनाने से पहले उसे अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. उन्होंने ट्वीट किया कि मैं कोयंबटूर संसदीय क्षेत्र के लोगों को नमन करता हूं और 4.5 लाख मतदाताओं को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने एनडीए और भाजपा में अपना विश्वास जताया. अंत में मैं कोवई के प्यारे लोगों को आश्वासन देता हूं कि हम भविष्य में आपका प्यार और जनादेश जीतने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर देंगे.

केंद्रीय मंत्री

इस बार कई केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए, उनमें से ज़्यादातर उत्तर प्रदेश से थे. इनमें से भाजपा सांसद अजय मिश्रा टेनी थे, जो खीरी सीट पर सपा के उत्कर्ष वर्मा से हार गए. कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी राजस्थान के बाड़मेर में बहुत कम अंतर से हार गए, जहां कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेद राम बेनीवाल विजयी हुए. एक अन्य केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर केरल के तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर से 16,077 वोटों से हार गए. एक अन्य राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से चुनाव हार गईं. जबकि, राज्य मंत्री राव साहब दानवे महाराष्ट्र की जालना सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार कल्याण वैजनाथ काव काले से हार गए. कैबिनेट मंत्री आरके सिंह बिहार के आरा में सीपीआई (एमएल) के सुदामा प्रसाद से हार गए. पश्चिम बंगाल में कूचबिहार सीट पर तृणमूल कांग्रेस के जगदीश चंद्र बसुनिया से एक और राज्यमंत्री निशीथ प्रमाणिक हार गए. बांकुरा सीट पर तृणमूल कांग्रेस के अरूप चक्रवर्ती ने राज्यमंत्री सुभाष सरकार को 32,778 मतों से हराया. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान सपा के हरेंद्र सिंह मलिक से हार गए. जबकि राज्य मंत्री वी मुरलीधरन केरल के अट्टिंगल से हार गए. राज्य मंत्री एल मुरुगन तमिलनाडु की नीलगिरी सीट से डीएमके के ए राजा से हार गए. केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री महेंद्र नाथ पांडे उत्तर प्रदेश की चंदौली सीट से हार गए. जबकि राज्य मंत्री कौशल किशोर मोहनलालगंज सीट से सपा के आरके चौधरी से 70,292 मतों से हार गए.

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