देश में हुए अलग अलग शपथ ग्रहण समारोह से जुड़े अनोखे किस्से, कैसे हुए इतिहास में दर्ज
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देश में हुए अलग अलग शपथ ग्रहण समारोह से जुड़े अनोखे किस्से, कैसे हुए इतिहास में दर्ज

जानिए कब कब किसने कुछ अजीब किया जो शपथ ग्रहण के इतिहार में हुआ दर्ज. किसी ने मंत्री के बजाये उप प्रधानमंत्री बोला तो किसी ने गौ और गुरु के नाम पर ली शपथ, किसी ने लगाया इन्कलाब जिंदाबाद का नारा, किसी ने गलत शब्द का उच्चारण कर दिया अर्थ का अनर्थ


Oath Ceremony: शपथ ग्रहण समारोह को लेकर हर ओर चर्चा है. ये तो सबको पता है कि नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं, लेकिन उनके साथ कौन कौन मंत्री बनने जा रहा है और किसे क्या मिलेगा ये अभी तक सस्पेंसे बना हुआ है. हालाँकि इस बीच सिर्फ एक चीज है, जो स्पष्ट है वो है "शपथ". हम आपको बताने जा रहे हैं शपथ से जुड़े कुछ अनोखे किस्से, जो चर्चा में रहे है.

इन किस्सों का सिलसिला शुरू करते हैं 80 के दशक से

बात 2 दिसम्बर 1989 की है. वीपी सिंह देश के सातवें प्रधानमंत्री बनने जा रहे थे. दोपहर लगभग 12 बजे का समय था. राष्ट्रपति भवन के अशोका हॉल में शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था. वीपी सिंह शपथ ले चुके थे. उनके बाद हरियाणा के कद्दावर नेता देवी लाल शपथ लेने के लिए पहुंचे. देवी लाल ने शपथ ली और मंत्री के बजाये उप-प्रधानमंत्री बोल दिया. उस समय तक उप-प्रधानमंत्री को लेकर संविधान में कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें टोका कि उप-प्रधानमंत्री नहीं मंत्री बोलिए. देवी लाल ने दोबारा से शपथ लेना शुरू किया और इस बार पहले से ऊँची आवाज में उप-प्रधानमंत्री बोला. इस बार राष्ट्रपति ने चुप रहना ज्यादा बेहतर समझा.

बाद में इस घटना का ज़िक्र करते हुए लेखक जनकराज जय ने अपनी किताब "कमीशन एंड ओमिशन बाय प्रेसिडेंट" में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन के हवाले से लिखा कि जिस समय देवी लाल शपथ ले रहे थे, आर वेंकटरमन नहीं चाहते थे कि किसी तरह का कोई हंगामा हो या अड़चन पैदा हो, इसलिए उन्होंने दूसरी बार देवी लाल द्वारा उप प्रधानमंत्री बोलने पर कुछ नहीं कहा और शपथ ग्रहण समारोह पूरा होने दिया. वेंकटरमन ने ये भी बताया कि "मैंने अपने सचिव के जरिए वीपी सिंह तक ये मैसेज भिजवाया था कि देवीलाल मंत्री के तौर पर ही शपथ लें और नोटिफिकेशन जारी कर उन्हें उप-प्रधानमंत्री बना दिया जाए, लेकिन मैसेज उन तक पहुंच पाता, इससे पहले ही शपथ ग्रहण समारोह शुरू हो गया."

वहीँ देवीलाल को इस बात की नाराजगी थी कि उन्हें उप-प्रधानमंत्री बनाने का वादा किया गया था, लेकिन मंत्री पद की शपथ लेने के लिए कहा जा रहा है, जाहिर है वो संविधान की ताकिनिकियों से शायद अवगत नहीं थे, इसलिए सिर्फ मंत्री पद की शपथ लेने के लिए तैयार नहीं थे.

कर्नाटक में जब ली गयी गौ, गुरु और देवगौड़ा के नाम पर शपथ

ये किस्सा 20 मई 2023 का है. कर्नाटक के नए विधायकों का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था. प्रोटेम स्पीकर रघुनाथ विश्वनाथ देशपांडे विधायकों को शपथ दिला रहे थे. उन्होंने विधायको से आग्रह किया कि वे संविधान या ईश्वर के नाम पर शपथ लें, लेकिन कर्नाटक के कई विधायकों ने उनकी बात नहीं सुनी.

कांग्रेस के डी के शिवकुमार ने अपने आध्यात्मिक गुरु गंगाधर अज्जा के नाम पर शपथ ली. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि गुरु और इश्वर एक सामान होते हैं, इसलिए उन्होंने गुरु की शपथ ली. उनके बाद चन्नागिरी के कांग्रेस विधायक शिवगंगा बसवराज और कुनिगल विधायक एचडी रंगनाथ ने डीके शिवकुमार के नाम पर शपथ ली. दोनों ने कहा कि वे डीके शिवकुमार को अपना गुरु मानते हैं. दूसरी ओर मुलबागिलु से जेडीएस विधायक एस मंजूनाथ ने अपनी पार्टी के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के नाम पर शपथ ली. बीजापुर सिटी से बीजेपी विधायक बसनगौड़ा यतनाल ने गौ के नाम पर शपथ ली.

जब एक शख्स के लेट होने से शपथ नहीं ले पाए थे कांग्रेस विधायक

ये किस्सा 2011 का हिया. 11 नवम्बर की तारीख थी. कर्णाटक विधानसभा में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई जा रही थी. सदन में मौजूद विधायकों को शपथ लेने के लिए कहा गया और हंगल विधानसभा सीट से उप चुनाव जीते कांग्रेस के श्रीनिवास का नाम लिया गया तो उन्होंने शपथ लेने से इनकार कर दिया. श्रीनिवास ने कहा कि वो अपने प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार की मौजूदगी में ही शपथ लेंगे. उस समय तेज बारिश आ रही थी, शहर में ट्रैफिक जाम था. यही वजह रही कि शिव कुमार तय समय 11 बजे विधानसभा नहीं पहुँच पाए. आखिर में कांग्रेस विधायक ने विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी से वेट करने के लिए कहा लेकिन स्पीकर ने उनकी बात नहीं सुनी और बीजेपी के विधायक के रमेश बी भूषनूर को शपथ दिलाई और वहां से चले गए. जिसके बाद किसी दुसरे दिन कांग्रेस के विधायक को शपथ दिलाई गयी.

जब तेज प्रताप ने शपथ पढ़ते हुए की शब्दों की गलती

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप 20 नवम्बर 2015 को पटना के गांधी मैदान पर नीतीश कैबिनेट की शपथ ले रहे थे. बिहार में उस समय रामनाथ कोविंद राज्यपाल थे. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव शपथ ले चुके थे. तीसरे नंबर पर तेज प्रताप की बारी आई. तेज प्रताप ने शपथ पढ़ना शुरू किया. तेज प्रताप ने बोलना शुरू किया 'मैं, तेज प्रताप ईश्वर की शपथ लेता हूं, जो विषय बिहार राज्य के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा करना 'उपेक्षित' हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा'. राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने उन्हें टोका और कहा कि ये शब्द उपेक्षित नहीं अपेक्षित है. ये सुनते ही समारोह में मौजूद लोग सन्न रह गए. राज्यपाल ने उन्हें फिर से शपथ पढने को कहा. दोबारा तेजप्रताप ने शपथ पढ़ी तो अपेक्षित शब्द सही पढ़ा.

तेज प्रताप के बाद मंत्री अब्दुल जलील मस्तान ने शपथ ली. उन्होंने 'सम्यक' शब्द की जगह 'संपर्क' पढ़ दिया. राज्यपाल ने उन्हें भी टोका. गलती को सुधार गया. इसके बाद शिवचंद्र राम ने शपथ ली, उन्होंने 'संसूचित' की जगह 'सूचित' पढ़ दिया. राज्यपाल ने उन्हें भी टोका, जिसके बाद सिव्चंद्र राम ने शब्द को सुधार.

स्वाति मालीवाल को जब कहा गया सिर्फ लिखा हुआ ही पढ़ें

ये मामला सबसे ताजा है. स्वाति मालीवाल राज्यसभा सांसद चुनी गयी. शपथ लेने के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि स्वाति मालीवाल को दो बार शपथ लेनी पड़ी. हुआ यूँ कि जब मालीवाल ने पहली बार शपथ पढ़ी तो उसका गलत संस्करण पढ़ लिया. स्वाति ने जो शपथ ली वो मनोनीत सदस्यों के लिए थी, जबकि स्वाति मालीवाल तो चुनकर आई थीं. इस कारण उन्हें निर्वाचित शपथ का संस्करण पढ़ना था. इतना ही नहीं उन्होंने शपथ पढने के आखिर में इंकलाब जिंदाबाद का नारा भी लगाया. इस बात पर राज्यसभा के सभापति उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वाति को टोकते हुए कहा कि जो लिखा है, वही पढ़िए. जिसके बाद स्वाति ने दोबारा नियमानुसार शपथ ली और कोई नारा नहीं लगाया.

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