सिर्फ 9 सीट लेकिन दांव पर साख, UP उपचुनाव में BJP के सामने क्या है मुश्किल
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सिर्फ 9 सीट लेकिन दांव पर साख, UP उपचुनाव में BJP के सामने क्या है मुश्किल

13 नवंबर को उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर मतदान होगा। यह चुनाव बीजेपी,समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस चारों के लिए अहम है।


UP by poll 2024: जहां एक तरफ झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, वहीं देश के सबसे बड़े सूबे में से एक उत्तर प्रदेश भी चुनाव का सामना करेगा। फर्क सिर्फ इतना कि यहां पर 10 में से 9 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा है। मिल्कीपुर सीट का मामला का अदालत में होने की वजह से चुनावी तारीख का ऐलान नहीं हुआ था। ये सभी 9 सीट यूपी के अलग अलग हिस्सों में मसलन पश्चिमी यूपी में मीरापुर, गाजियबाद, खैर तो मध्य यूपी में कानपुर की सीसामऊ सीट और पूर्वांचल की कटेहरी, फूलपुर और मझवा सीट शामिल है। अगर पिछले चुनाव यानी 2022 में इन सीटों की तस्वीर देखें तो बीजेपी और समाजवादी पार्टी में मुकाबला 50-50 का था। इसका अर्थ यह है कि साख दोनों दलों की दांव पर है।

13 नवंबर को होने जा रहे चुनाव से पहले आम चुनाव 2024 के नतीजों को समझने की जरूरत है। समाजवदी पार्टी 37 लोकसभा सीटों पर जीत के साथ बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। उसका दूसरा पक्ष यह था कि लोकसभा चुनाव को आधार बनाया जाय तो सपा के पास पूर्ण बहुमत था। यानी आम चुनाव के तुरंत बाद यदि विधानसभा चुनाव होते तो बीजेपी सत्ता में नहीं होती। हालांकि यह आकलन लोकसभा चुनाव के आधार पर है। यहां हम बात करेंगे इन उपचुनावों में बीजेपी के सामने किस तरह की मुश्किल है। संविधान और आरक्षण का राग अलाप कर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के सामाजिक समीकरण वाले आधार में सेंध लगा दी और उसका असर चुनावी नतीजों में नजर भी आया था। लिहाज सवाल यह है कि इस दफा किस तरह की चुनौती आ सकती है।

आम चुनाव 2024 के समय आरक्षण पर हमले वाला मामला जमकर उठा। बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं को इस विषय पर सफाई देनी पड़ी। लेकिन जमीनी स्तर पर वो वोटर्स के एक बड़े वर्ग को समझा पाने में नाकाम रहे। इन सबके बीच 1 अगस्त को जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी समाज के आरक्षण में वर्गीकरण किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया तो राजनीति फिर गरमायी। मायवती ने खुलेआम इसका विरोध किया। बीजेपी उस समय कुछ भी बोलने से बचती रही। लेकिन हरियाणा चुनाव से पहले जिस तरह से इस समाज में आरक्षण के वर्गीकरण पर रुख अपनाया वो अगस्त वाले मिजाज से अलग था। हालांकि यहां यवाल यह है कि क्या बीजेपी , हरियाणा की तरह इस विषय पर अपना स्टैंड साफ करेगी।

हरियाणा में गैर जाटव समाज ने आरक्षण में वर्गीकरण के मुद्दे को उठाया और सरकार ने उसे लागू भी कर दिया। लेकिन यूपी की स्थिति अलग है। यहां पर इस तरह की मांग नहीं उठी है। दूसरी तरफ बीजेपी के सांसद भी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सरकार पर बाध्यकारी नहीं है। लिहाजा संविधान संशोधन के जरिए बदला जा सकता है। हालांकि बीजेपी के सामने दो तरह की चुनौती है। पहला तो ये चिराग पासवान इस मुद्दे को लेकर मुखर विरोध जता चुके हैं यानी कि आरक्षण में वर्गीकरण के वो सख्त खिलाफ हैं यानी कि बीजेपी के घटक दल को भी ऐतराज है। दूसरी बात यह है कि बीजेपी पिछले दो चुनाव यानी 2019 और 2022 में गैर जाटव समाज में जगह बनाने में कामयाब रही है। ऐसी सूरत में अगर इस समाज की तरफ से आरक्षण में वर्गीकरण की मांग उठती है तो बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व किस फैसले की तरफ जाएगा यह देखने वाली बात होगी।

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