सिर्फ सीट नहीं साख भी दांव पर, करहल पर क्यों लगी है सपा-बसपा-भाजपा की नजर
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सिर्फ सीट नहीं साख भी दांव पर, करहल पर क्यों लगी है सपा-बसपा-भाजपा की नजर

यूपी के जिन 9 लोकसभा सीटों पर उप चुनाव होने जा रहा है उसमें से मैनपुरी संसदीय क्षेत्र की करहल सीट भी है। यह सीट अखिलेश यादव परिवार की पारंपरिक सीट मानी जाती है।


UP Assembly By Polls 2024: इस समय चुनावी शोर, वादे और नारे घनघोर हैं महाराष्ट्र, झारखंड जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव अपनी पूरी रंगत में हैं तो सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की धमक बनी हुई है... वैसे तो उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं लेकिन चुनावी तैयारी पूरजोर है कोई भी किसी को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे इन सीटों पर मुकाबला दिलचस्प और कांटे का होता जा रहा है। इन सीटों पर शुरुआत में मुख्य रूप से मुकाबला भारतीय जनता पार्टी गठबंधन और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच माना जा रहा था लेकिन अब ऐसा नहीं है, इसकी वजह बहुजन समाज पार्टी (BSP) है। आम तौर बसपा उप चुनाव नहीं लड़ती लेकिन इस बार बसपा सुप्रीमो (Mayawati) ने इन सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर इन सीटों पर मुकाबला दिलचस्प और कहीं जगहों पर त्रिकोणीय बना दिया है।

बसपा भी चुनावी मैदान में
बसपा के मैदान में आ जाने से भाजपा और सपा के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। चुनावी मैदान में तीसरे खिलाड़ी के आ जाने से दोनों दलों ने नए सिरे से अपने सियासी और जातीय समीकरण को बिठाने पड़े हैं। इन नौ सीटों में एक बेहद खास सीट करहल है, इस सीट पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव(AKhilesh Yadav) जून तक विधायक थे। अखिलेश के लोकसभा पहुंचने के बाद यह सीट खाली हुई और इस पर उप चुनाव हो रहा है। यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ है, और इस सीट के चुनाव नतीजे पर सबकी नजर बनी हुई है, लेकिन बसपा के उम्मीदवार और भाजपा के बिछाए सियासी समीकरण सपा की राह मुश्किल बना रहे हैं।
इस सीट पर सपा ने तेज प्रताप यादव को मैदान में उतरा है। तेज प्रताप मुलायम सिंह यादव के पोते और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के दामद हैं तो वहीं भाजपा ने इस सीट पर अनुजेश प्रताप यादव को मैदान में उतारा है, अनुजेश मुलायम सिंह यादव के दामाद और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं, इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच राजनीतिक लड़ाई तो है ही, रिश्ते की लड़ाई भी है। अखिलेश यादव ने साल 2022 में पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर वे विधानसभा पहुंचे लेकिन 2024 में कन्नौज से सांसद बनने के बाद उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। इस सीट से अखिलेश के रिश्ते और सपा के दबदबे को देखते हुए यह सीट तेज प्रताप के लिए मुफीद मानी जा रही थी लेकिन अनुजेश और बसपा उम्मीदवार अवनीश कुमार शाक्य के आ जाने से इस सीट पर सपा के समीकरण उलझ गए हैं।
करहल का जातीय समीकरण
करहल सीट की अगर बात करें तो इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 3.7 लाख है। इनमें से यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा करीब 1.4 लाख है। इसके बाद शाक्य वोटर करीब 60 हजार, दलित मतदाता 40 हजार और मुस्लि 15 हजार हैं। ब्राह्मण और ठाकुर समुदाय के वोटरों की संख्या करीब 25-25 हजार है। करहल, मैनपुरी लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों में से एक है, जहां से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं। ऐसे में इस सीट से सपा को जीत दिलाना डिंपल के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।
यादव वोटरों में भाजपा की सेंध न लग जाए, इससे सपा सहमी हुई है। दूसरा बसपा का शाक्य उम्मीदवार से भी खतरा लग रहा है। यादव वोटरों में भाजपा की सेंधमारी के साथ-साथ शाक्य, दलित एवं मुस्लिम वोटरों में बिखराव सपा की टेंशन बढ़ा रहा है। डिंपल इस बात को समझ रही हैं, इसलिए वह तेज प्रताप के समर्थन में करहल में लगातार जनसभाएं एवं रैलियां कर रही हैं। बीते गुरुवार को डिंपल ने बदायूं के सांसद और अपने देवर आदित्य यादव के साथ चुनाव प्रचार किया। आदित्य, शिवपाल सिंह यादव के बेटे हैं। इससे पहले 27 अक्टूबर को डिंपल ने शिवपाल और आजमगढ़ से सांसद धर्मेंद्र यादव के साथ चुनावी रैली की।
करहल में यादव-यादव बनाम शाक्य
सपा से इस सीट को छीनने के लिए भाजपा ने यादव का मुकाबला यादव से कराया है। यादव उम्मीदवार उतारने के पीछे भाजपा की एक और वजह है। करहल सीट भाजपा का परचम एक ही बार 2002 के चुनाव में फहरा। वह भी तब जब उसने इस चुनाव में यादव उम्मीदवार उतारा। इस बार भी वह इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ी है। ऐसे में करहल सीट पर अगर यादव वोटों का बिखराव होता है तो सपा के लिए करहल में जीतना मुश्किल हो जाएगा। सपा की कोशिश यादव-मुस्लिम गठजोड़ के साथ पीडीए समीकरण के जरिए जीत दर्ज करने की है तो भाजपा सवर्ण, शाक्य और यादव वोटों के जरिए इस सीट पर भगवा फहराना चाहती है।
बसपा सुप्रीमो भी करहल सहित सभी नौ सीटों जीतने का दावा कर रही हैं। मायावती दलित वोटरों को संदेश देना चाहती हैं कि बसपा पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है, इसलिए वे उनके पीछे लामबंद हो जाएं। बहरहाल, करहल सीट अखिलेश परिवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल तो बनी ही है, भाजपा भी इस सीट पर जीत दर्ज कर यह जताने की कोशिश करेगी कि अखिलेश के किसी भी गढ़ को भेजने में वह सक्षम है। इस सीट की जीत एवं हार से कई सियासी संदेश निकलेंगे, फिलहाल नतीजे को जानने के लिए हमें 23 नवंबर का इंतजार करना होगा।
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