कभी नंबर दो हुआ करते थे लेकिन अब, क्या हाशिए पर हैं शिवपाल सिंह यादव
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कभी नंबर दो हुआ करते थे लेकिन अब, क्या हाशिए पर हैं शिवपाल सिंह यादव

एक वक्त था जब समाजवादी पार्टी में नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल सिंह यादव की तूती बोलती थी। लेकिन बदलते समय के सामंजस्य बैठाने में दिक्कत आ रही है।


Shiv Pal Singh Yadav News: राजनीति का मतलब राज करने की नीति। यानी जब बात राज करने की हो तो नीति अच्छी-बुरी,अपने-परायों की भेद करने वाली, किसी पर मेहरबानी तो किसी के साथ रुखा व्यवहार करने वाली होती है। राजनीति में कोई कभी अपरिहार्य नहीं होता। । अगर राजनीति की अनिवार्य शर्त शाश्वत बने रहने की होती तो शिवपाल यादव आज की तारीख में भी उतने ही प्रासंगिक होते जितना मुलायम सिंह(Mulayam Singh Yadav) के जमाने में हुआ करते थे। मुलायम सिंह के कार्यकाल के दौरान शिवपाल यादव सत्ता के केंद्र हुआ करते थे। शिवपाल यादव अपने आपको नेता जी के बाद नंबर दो मानते भी थे। यदि ऐसा करते थे तो उसके पीछे वजह भी थी। साइकिल पर सवार होकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गलियों का मथा था, जनता के मिजाज को समझा था और उसका ही नतीजा समाजवादी पार्टी के रूप में नजर आया जिसके मुखिया अखिलेश यादव हैं।

सवाल यह है कि शिवपाल यादव जो खुद को नेता जी के बाद नंबर दो मानते थे। वो 2012 के नतीजों के बाद नंबर एक क्यों नहीं बन सके। इस सवाल का जवाब आम लोग हों या खास वो मानते है कि नेताजी का पुत्र प्रेम भारी पड़ा और यूपी की गद्दी पर अखिलेश यादव को आसीन होने का मौका मिला। अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) सीएम बन चुके थे लेकिन कम से कम अपने शासन के शुरुआती ढाई साल तक ढाई सीएम के टैग से मुक्ति नहीं मिली और जब उन्होंने इस टैग से बाहर आने का फैसला किया तो 2017 का वो दृश्य याद होगा जब लखनऊ में यादव परिवार की कलह खुलकर सामने आई।

नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव चुप हो चले थे और इशारा करीब करीब मिल चुका था कि शिवपाल यादव को तलाशना होगा। शिवपाल यादव ने अलग रास्ता चुना, पार्टी बनाई नाम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी रखा। लेकिन सियासी जमीन पर शिवपाल यादव को जिस करिश्मे की उम्मीद थी वो बूझने लगी। यूपी के अलग अलग समाज ने तो नकारा ही यादव समाज ने भी नकार दिया। ऐसी सूरत में शिवपाल को लगा कि कुछ भी बेहतर की गुंजाइश अगर हो सकती है तो वो समाजवादी पार्टी ही है। अखिलेश यादव को भी इस बात का अहसास हो चुका चाचा अकेले भले ही कुछ नहीं कर सके लेकिन पार्टी का नुकसान तो कर ही दिया। ऐसे में समाजवादी पार्टी में एंट्री हुई। घर वापसी के बाद शिवपाल यादव को लगा कि शायद यूपी की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने का मौका मिलेगा। लेकिन अखिलेश यादव ने खेला कर दिया। यानी कि शिवपाल यादव का भविष्य क्या होगा वो अखिलेश यादव की मुट्ठी में कैद है। जब यूपी में चाचा-भतीजे में तकरार की कानाफूसी होने लगी तो अखिलेश ने विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक तो बनाया। लेकिन भूमिका अंबेडकर नगर की कटेहरी सीट तक कैद है।

अब शिवपाल यादव कटेहरी तक ही कैद है या उनकी भूमिका सिर्फ एक विधानसभा तक सीमित कर दी गई है। क्या शिवपाल का यादव का फ्यूचर कटेहरी विधानसभा के नतीजों पर निर्भर करेगा। इसे बताने की कोशिश करेंगे। यहां बता दें कि मैनपुरी की करहल सीट की तरह ही अंबेडकर नगर की कटेहरी सीट(Katehari Assembly seat) भी सपा के लिए अहम है। शिवपाल यादव की भूमिका कटेहरी तक ही क्यों तो इसका जवाब ये है कि वो स्टार प्रचारक के साथ इस विधानसभा के प्रभारी भी है। यानी जिम्मेदारी कहीं अधिक।

1991 से अब तक हुए चुनाव में एक दफा बीजेपी(BJP) और दो दफा सपा(Samajwadi Party) को जीत मिली है। इन तीन नतीजों को छोड़ दें तो हाथी इस सीट पर मस्त चाल चलते हुए कब्जा किया है। यानी बीएसपी का जोर रहा है। 1991 में बीजेपी के अनिल तिवारी, 1993 में बीएसपी के रामदेव वर्मा, 1996 से 2007 तक तीन बार बीएसपी के धर्मराज निषाद का कब्जा रहा है। हालांकि 2012 में समाजवादी पार्टी अपनी साइकिल दौड़ाने में कामयाब रही। 2017 में इस सीट पर बसपा के लालजी वर्मा(Lal Ji Verma) ने जीत हासिल की। 2022 के चुनाव से ठीक पहले वो सपा में शामिल हो कर जीत दर्ज की। लेकिन जब वो अंबेडकरनगर से सांसद बने तो विधायकी से इस्तीफा देना पड़ा और उप चुनाव कराया जा रहा है।

इस सीट पर बीजेपी और बीएसपी दोनों की निगाह लगी है लिहाजा सपा प्रमुख को यह लगा कि किसी दिग्गज शख्स को जिम्मा देना चाहिए और उसके लिए शिवपाल यादव मुफीद नजर आ रहे थे। अब इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है अगर सपा इस सीट को बचा पाने में कामयाब नहीं होती है तो ठीकरा शिवपाल यादव के सिर फूटेगा और वैसी सूरत में वो दबाव की स्थिति में नहीं रहेंगे।

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