5वें फेज में UP की इन 6 सीटों पर टक्कर, NDA-INDI दोनों के सामने चुनौती
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5वें फेज में UP की इन 6 सीटों पर टक्कर, NDA-INDI दोनों के सामने चुनौती

यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें. 2024 के आम चुनाव में सात चरणों में मतदान हो रहा है. अभी तक चार चरण के चुनाव संपन्न हो चुके हैं,


Uttar Pradesh Fifth Phase Lok Sabha Election 2024: दिल्ली की सत्ता लखनऊ से होकर गुजरती है. सियासत में इस लाइन को अक्सर दोहराया जाता है. दरअसल वजह भी है. यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीट है. अगर आप पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को जोड़े तो दोनों की सीट संख्या यूपी के बराबर है. छोटे छोटे राज्यों को जोड़ें तो कम से कम तीन से चार राज्य के बराबर यूपी से सांसद देश को मिलते हैं. इसका अर्थ यह है कि यूपी में जिसका सिक्का चला वो सिकंदर है. अगर बात बीजेपी की करें तो प्रदेश की यह सबसे बड़ी पार्टी है जिसने ना सिर्फ 2014 बल्कि 2019 में शानदार प्रदर्शन किया था और अब सबकी निगाह 2024 के प्रदर्शन पर है. यहां पर हम पांचवें चरण की कुछ सीटों पर बात करेंगे जो एनडीए और इंडी ब्लॉक दोनों के लिए अहम है.

6 सीटों पर कांटे की टक्कर

पांचवें चरण में (20 मई को मतदान) कुल 14 सीटों के लिए मतदान होना है, उस दिन मतदाता चुनाव लड़ने वालों की किस्मत ईवीएम में कैद कर देंगे. इन सबके बीच आप को भी दिलचस्पी होगी की 2019 में किस दर का प्रदर्शन कैसा था. 2019 में बीजेपी 14 में से 13 जीतने में कामयाब रही. रायबरेली की सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. इस तरह बीजेपी की स्ट्राइक रेट करीब 100 फीसद था. लेकिन उस जीत में भी कुछ ऐसे फैक्ट्स हैं जिन्हे अगर आप बारीकी से देखें तो जीत और हार का फैसला 50 हजार के करीब था. यह वो आंकड़ा है जिसे आसानी से भरा भी जा सकता है. सामान्य तौर पर लोकसभा में अगर जीत हार के बीच अंतर लाख के पार है तो यह कहा जाता है कि विरोधी परास्त हो गया.

14 लोकसभा में विधानसभा की 71 सीटें

इन 14 लोकसभा सीटों में विधानसभा की कुल 71 सीटें आती हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 45 सीट, समाजवादी पार्टी के खाते में 21 सीट, अपना दल की झोली में 3 और जनसत्ता दल को 2 सीटें मिलीं. इस आधार पर कह सकते हैं कि बीजेपी का दबदबा बना रहेगा. लेकिन कौशांबी, फैजाबाद, कैसरगंज, मोहनलाल गंज, अमेठी, बांदा सीटों पर जीत हार के बीच का फासला एक लाख से कम का था.

बीजेपी के लिए चुनौती

विपक्ष उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जहां फासला कम था.जाहिर सी बात है कि वैसी सूरत में प्रदर्शन का अधिक दबाव बीजेपी पर होगा. अगर इन सीटों की बात करें तो मतदान प्रतिशत बढ़ने का फायदा बीजेपी को मिला था. अगर वोटिंग प्रतिशत में कमी आई तो नुकसान हो सकता है क्योंकि 2009 के आम चुनाव में वोटिंग प्रतिशत कम था और उसका फायदा सपा और बीएसपी को मिला था. सियासत के जानकार कहते हैं कि आमतौर पर जो पार्टी सत्ता में होती है उसे विरोध का सामना अधिक करना पड़ता है. लेकिन अगर 2014 के बाद के चुनाव को देखें तो 2017, 2019 और 2022 में बीजेपी उस तरह के विश्लेषण को खारिज करने में कामयाब भी रही है.

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