ईवीएम से विपक्ष को कई दफा मिली है जीत, फिर भी वीवीपैट की पूरी गिनती की मांग क्यों ?
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ईवीएम से विपक्ष को कई दफा मिली है जीत, फिर भी वीवीपैट की पूरी गिनती की मांग क्यों ?

भारत में EVM के जरिए मतदान कराया जाता है. चुनाव को पारदर्शी रखने के लिए VVPAT का इस्तेमाल किया गया. लेकिन इस पर भी सवाल उठे. अब कोर्ट ने फैसला दे दिया है.


अधूरी हसरतों का इल्जाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती, खता ईवीएम की कहते हो. इस शायरी के जरिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने चुनावी तारीखों का ऐलान करते समय पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि हमने तो यानी निर्वाचन आयोग ने उन सभी लोगों को कहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी को साबित कर दीजिए. लेकिन कोई सामने नहीं आया. दरअसल ईवीएम और वीवीपैट के विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि १०० फीसद वीवीपैट की गिनती नहीं होगी. बता दें कि प्रत्येक विधानसभा के पांच पोलिंग स्टेशन में से किसी एक स्टेशन के वीवीपैट का मिलान किया जाता है.यहां पर हम वीवीपैट के बारे में विस्तार से बताएंगे.



वीवीपैट का इतिहास

वीवीपैट को आप सामान्य तरीके से ऐसे समझिए. जब आप इवीएम पर अपने मनपसंदीदा उम्मीदवार के समर्थन में बटन दबाते हैं तो सात सेकेंड तक वो पर्ची दिखती है और बाद में बॉक्स में गिरती है.इससे यह पुख्ता किया जाता है कि जिस शख्स ने जिस उम्मीदवार को मत दिया है वो किसी उम्मीदवार को नहीं गया है.


  • 2010 में पहली बार वीवीपैट(VVPAT) का आइडिया आया. चुनाव आयोग ने पारदर्शी व्यवस्था बनाने का जिक्र किया था.
  • 2011 में लद्दाख, पूर्वी दिल्ली, जैसलमेर, तिरुअनंतपुरम में फील्ड ट्रायल किया गया.
  • फरवरी 2013 में चुनाव आयोग की एक्सपर्ट कमेटी मे वीवीपैट की डिजाइन को फाइनल किया
  • 2013 में ही इलेक्शंस रूल्स 1961 में संशोधन कर वीवीपैट के प्रावधान को शामिल किया गया.
  • 2013 में पहली बार नागालैंड विधानसभा चुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल
  • 2017 तक सभी चुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल होने लगा.
  • फरवरी 2018 में आयोग ने रैंडम तरीके से प्रत्येक विधानसभा में एक पोलिंग स्टेशन में वीवीपैट को अनिवार्य किया
  • 2019 से प्रत्येक विधानसभा में पांच पोलिंग स्टेशन तक इसे बढ़ा दिया गया.
  • किसी भी विधानसभा में वीवीपैट की गिनती (किसी एक पोलिंग स्टेशन) का फैसला रिटर्निंग अधिकारी और उम्मीदवारों के एजेंट की मौजूदगी में ड्रा किया जाएगा.

विवाद कहां से शुरू हुआ

2019 में चंद्रबाबू नायडू वीवीपैट की गिनती के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट गए.अदालत से उन्होंने अपील में कहा कि 50 फीसद वीवीपैट की गिनती होनी चाहिए. लेकिन चुनाव आयोग की दलील थी कि ऐसा करने का मतलब यह होगा कि मतगणना और नतीजों के आने में 5 से 6 दिन ता वक्त लगेगा. चुनाव आयोग ने अदालत को दिए जवाब में कहा था कि एक पोलिंग बूथ की वीवीपैट स्लिप और ईवीएम से मिलान में एक घंटे का समय लग जाता है. वीवीपैट की काउंटिंग और पोलिंग स्टेशन की ईवीएम लिस्टिंग में समय लगता है लिहाजा मतदान केंद्रों पर समय लग जाएगा.

100 फीसद वीवीपैट मिलान की थी मांग

याचिका में 100 फीसद वीवीपैट मिलान की मांग की गई. है. सुप्रीम कोर्ट में जब इस विषय पर बहस शुरू हुई तो एक याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायन ने कहा कि वो ये नहीं कह रहे कि इसमें कोई बुराई है, मुद्दा सिर्फ यह है कि मतदाता ने जिसे अपना कीमती मत दिया है उसका भरोसा बरकरार रहे. इसी मामले में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(ADR) सीनियर वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि हम सब 60 के दशक में है. जस्टिस साहब उम्र का हवाला दे रहे थे. हम सबको पता है कि जब बैलट पेपपर्स के जरिए चुनाव होता था तो क्या होता है, आप को याद नहीं होगा लेकिन हम भूले नहीं हैं. प्रशांत भूषण, यूरोपीय देशों का हवाला देते हुए अदालत को बता रहे थे कि कैसे उन देशों ने ईवीएम को त्याग कर बैलट पेपर पर वापसी की. हम भी वापस बैलट पेपर पर जा सकते हैं. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो एक विकल्प यह है कि वीवीपैट स्लिप मतदाताओं को दे दी जाए. या जो स्लिप मशीन में गिरती है उसे पहले वोटर को दिया जा सका है और बाद में उसे बैलट बॉक्स में डाला जाए. या वीवीपैट मशीन की डिजाइन में बदलाव कर पारदर्शी बनाया जाए. अभी जो मिरर ग्लास वाला बॉक्स है उलमें लाइट ऑन होने के बाद भी कुछ सेकेंड के लिए स्लिप दिखती है.

वीवीपैट के ही मसले पर प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण दिया था. जर्मनी के उदाहरण पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने ने पूछा वहां की जनसंख्या कितनी है, भूषण ने कहा कि 6 करोड़ जबकि भारत में 50 से 60 करोड़ मतदाता हैं. इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि भारत में कुल 97 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाता हैं. हम सब जानते हैं कि बैलट पेपर के इस्तेमाल होने पर क्या होगा.इसी विषय पर एक और याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े ने जब कहा कि ईवीएम और वीवीपैट में मिलान कराया जाना चाहिए. तब जस्टिस खन्ना ने कहा कि ठीक है 60 करोड़ वीवीपैट की गिनती होनी चाहिए. जजों ने कहा कि मानवीय हस्तक्षेप से ही समस्याएं होती हैं और मानवीय कमजोरियों के साथ साथ किसी के प्रति पूर्वाग्रह, आसक्ति भी हो सकती है. अगर मशीनों में मानवीय हस्तक्षेप ना हो तो नतीजे बेहतर आएंगे.

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