
अनंतनाग-राजौरी को लेकर PDP क्यों है हमलावर, 1987 चुनाव की दिलाई याद
अनंतनाग-राजौरी में पहले सात मई को चुनाव होना था. लेकिन कुछ दलों के ऐतराज के बाद मतदान टाल दिया गया. पीडीपी के नेता 1987 के चुनावी धांधली की याद दिला रहे हैं.
AnantNag Loksabha Chunav 2024: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग-राजौरी लोसकभा में सात मई को तीसरे चरण में चुनाव होना था. लेकिन अब यहां चुनाव 6वें चरण में 25 मई को होगा. आयोग के इस फैसले के बाद नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने अपने म्यान से तलवार निकाल ली है. इन दोनों दलों का कहना है कि बीजेपी के दबाव में आयोग ने चुनाव टालने का फैसला किया. अब इस फैसले को विपक्ष ने 1987 के विधानसभा चुनाव से तुलना करते हुए कहा कि यह को धांधलेबाजी का आगाज है. सवाल यह है कि विपक्ष इस तरह का आरोप क्यों लगा रहा है.
पहले 7 मई को होना था चुनाव
30 अप्रैल को चुनाव आयोग ने मतदान टालने का ऐलान किया. आयोग के मुताबिक इस संबंध में बीजेपी, अपनी पार्टी और पीपल्स कांफ्रेंस ने अपील की थी. बता दें कि यहां से बीजेपी ने उम्मीदवार नहीं उतारा है. इसके अलावा घाटी स्थित श्रीनगर और बारामुला में भी बीजेपी का कोई उम्मीदवार नहीं है. एनसी और पीडीपी का कहना है कि खराब मौसम और खराब रोड का हवाला देकर सिर्फ राजौरी, पुंछ के खानाबदोश गुर्जर और पहाड़ी समाज को वोटिंग प्रक्रिया से दूर रखने की साजिश की गई है. एनसी ने इसे बीजेपी का षड़यंत्र बताया है तो पीडीपी की नजर में चुनाव आयोग औजार बन चुका है. पीडीपी का यह कहना है कि चुनाव टालने के पीछे सिर्फ मकसद गुणा गणित करना है, नौकरशाही का बेजा इस्तेमाल करना है. दरअसल बीजेपी की मंशा है कि पहाड़ी समाज अपनी पार्टी के समर्थन में मत दे. बता दें कि अपनी पार्टी और बीजेपी एक खेमे में हैं.पीडीपी के नेता नईम अख्तर कहते हैं कि कश्मीर का बच्चा बच्चा जानता है कि मई के महीने में मौसम कैसा रहता है. लिहाजा चुनाव टालने के लिए खराब मौसम का बहाना गले के नीचे नहीं उतरता. हकीकत यह है कि चुनाव आयोग बीजेपी के लिए टूल बन चुका है.
1987 में क्या हुआ था
मार्च 1987 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. नेशनल कांफ्रेस के फारुक अब्दुल्ला दोबारा से सीएम निर्वाचित हुए.उस वर्ष एनसी और कांग्रेस के गठबंधन ने 66 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस गठबंधन को 53 फीसद मत मिले थे लेकिन सीटों की संख्या 87 फीसद थी. मत और सीटों के बीच अंतर लोगों को लगा कि धांधली हुई है.उसके बाद से ही घाटी में आतंकी वारदातों में इजाफा होने लगा.
चुनाव आयोग पर बीजेपी का बेजा दबाव
बीजेपी के विरोधी कहते हैं कि 2022 का परिसीमन और चुनाव का टाला जाना 1987 की घटना की याद दिलाता है. एनसी और पीडीपी को इस बात पर भी ऐतराज है कि अनंतनाग लोकसभा में किस तरह से राजौरी और पुंछ को जोड़ दिया गया. इन दलों का यह भी कहना है कि परिसीमन के बाद अनंतनाग लोकसभा जिस स्वरूप में आया है वो जाति, मजहब और समाज के हिसाब से पूरी तरह अलग है. इसकी वजह से अलगाववाद की भावना और पनपेगी. बता दें कि परिसीमन के बाद इस लोकसभा में दक्षिण कश्मीर की 11 और राजौरी-पुंछ इलाके की सात विधानसभाओं को शामिल किया गया है.