क्यों और किसलिए जरुरी होती है शपथ, कितने प्रकार की होती है शपथ, सब जानिये
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क्यों और किसलिए जरुरी होती है शपथ, कितने प्रकार की होती है शपथ, सब जानिये

जब कभी देश में किसी भी नयी सरकार का गठन होता है, चाहे केंद्र हो या राज्य, शपथ ग्रहण समारोह हमेशा चर्चा में रहता है. सिर्फ प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री ही नहीं बल्कि सांसद, विधायक यहाँ तक की पंचायती राज सिस्टम के तहत आने वाले सरपंच से लेकर पञ्च तक को शपथ दिलाई जाती है


Oath Ceremony Update: जब कभी देश में किसी भी नयी सरकार का गठन होता है, चाहे केंद्र हो या राज्य, शपथ ग्रहण समारोह हमेशा चर्चा में रहता है. सिर्फ प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री ही नहीं बल्कि सांसद, विधायक यहाँ तक की पंचायती राज सिस्टम के तहत आने वाले सरपंच से लेकर पञ्च तक को शपथ दिलाई जाती है, ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही तरह से कर सकें. हमारे संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या इतिहास है, क्या नियम हैं? शपथ लेकर इसका उल्लंघन वालों पर क्या कार्रवाई हो सकती है, इस सबके बारे में जानते हैं.

सबसे पहले जानते हैं संविधान में शपथ के क्‍या नियम हैं

संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत प्रधानमंत्री को शपथ दिलाई जाति है. राष्ट्रपति शपथ दिलाते हैं. शपथ के लिए एक निर्दिष्ट शपथ पत्र का पालन किया जाता है, जिसे प्रधानमंत्री पढ़ते हैं और उसे स्वीकार करते हैं. इसके बाद एक प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले को हस्ताक्षर करने होते हैं. इस पत्र पर शपथ लेने की तारीख और समय अंकित होते हैं.

अब जानते हैं कि आखिर शपथ क्यों ली जाती है या दिलाई जाती है

संविधान के जानकारों का कहना है कि सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री व मंत्रियों को पदभार ग्रहण करने से पहले भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ लेनी होती है. ये संवैधानिक पद संभालने के लिए ये एक बेहद जरूरी प्रक्रिया है, जिसके बिना कोई भी सरकारी कामकाज व सदन की कार्रवाई में हिस्सा लिया नहीं जा सकता है. जब तक नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधि शपथ नहीं ले लेते, तब तक उन्हें किसी भी सरकारी काम में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं होती. यहाँ तक कि बगैर शपथ के सरकार का गठन भी नहीं होता. सदन में सीट का आवंटन भी तभी होता है, जब शपथ ले ली जाती है. स्पष्ट है कि चुना हुआ जन प्रतिनिधि तब तक सांसद, विधायक आदि नहीं माना जायेगा, जब तक की वो शपथ न ले ले. इसके मायने ये हैं कि चुना हुआ सदस्य बगैर शपथ के सदन को कोई नोटिस नहीं दे सकता, न ही कोई मुद्दा उठा सकता. इतना ही नहीं उनकों मिलने वाले वेतन एवं अन्य सुविधाएं भी शपथ लेने के बाद ही मिलनी शुरू होती है.

पद की गरिमा बनाये रखने और इमानदारी से काम करने की लिए होती है शपथ

शपथ से एक बात का सन्देश दिया जाता है कि कोई भी पद, व्यक्ति देश से बड़ा नहीं है. यही वजह है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद. विधायक, पंच-सरपंच और सरकारी सेवा के लिए संवैधानिक पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए शपथ दिलाई जाति है, जिसमें ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने की बात कही जाती है. किसी भी सूरत में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की बात कही जाति है. शपथ हिंदी, अंग्रेजी सहित किसी भी भारतीय भाषा में पढ़ी जा सकती है.

दो हिस्सों में होती है

प्रधानमंत्री, मंत्री जो शपथ पत्र पढ़ते हैं, वो दो हिस्सों में होती है. ये भी कह सकते हैं कि शपथ दो प्रकार की होती है, एक पद ग्रहण करने की शपथ और दूसरी गोपनीयता की.

जो भी जन प्रतिनिधि सदन में चुन कर आता है, वो ईमानदारी व निष्पक्षता से काम करने के साथ साथ सदन की गरिमा बनाये रखने की शपथ लेता है. साथ ही किसी भी सूरत में देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने का वचन भी भरता है.

दूसरी होती है, गोपनीयता की शपथ

ये शपथ केंद्र एवं राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त होने वाले सांसद और विधायक द्वारा ली जाति है. उन पर इस बात का दायित्व होता है कि वो गोपनीयता भी बनाये रखें.

केंद्र सरकार के गठन के लिए राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलवाई जाति है, वहीँ राज्य सरकार के गठन के लिए राज्य के राज्यपाल/उपराज्यपाल द्वारा शपथ दिलवाई जाति है.

क्‍या सभी निर्वाचित सदस्यों के लिए जरुरी होती है शपथ?

जी हां, देश के सभी निर्वाचित माननियों को शपथ लेनी होती है, इसमें सांसद और विधायक सब शामिल हैं.

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