2019 में पूर्वांचल की इन दो सीटों पर भारी पड़ा था हाथी, इस दफा क्या है माहौल
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बहुजन समाज पार्टी की मुखिया हैं मायावती

2019 में पूर्वांचल की इन दो सीटों पर भारी पड़ा था 'हाथी', इस दफा क्या है माहौल

2019 के आम चुनाव में यूपी में सपा और बसपा दोनों मिलकर चुनाव लड़े थे. लेकिन इस बार दोनों की राह अलग है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या बीएसपी पूर्वांचल की उन दोनों सीटों को दोबारा जीत पाएगी.


Ghosi- Ghazipur Loksabha Election News: एक दौर था जब यूपी की सियासत में मायावती की भूमिका को नकार पाना मुश्किल था. 2007 से 2012 के दौरान वो सूबे की सीएम थीं. लेकिन उसके बाद से उनका तिलिस्म टूट गया. अगर ऐसा ना होता तो 2014 में लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली. 2017 के विधानसभा चुनाव में दहाई में सिमट गईं और 2022 के चुनाव में सिर्फ विधानसभा में एक ही शख्स उमाशंकर सिंह पहुंचने में कामयाब रहे. हालांकि वो जीत बीएसपी से अधिक उनकी खुद की कामयाबी मानी जाती है. हालांकि 2019 में बीएसपी के 10 उम्मीदवार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे. हालांकि उस वक्त सपा के साथ गठबंधन था. यहां हम उन 10 सीटों में से 2 सीटों की बात करेंगे जहां बीएसपी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं हालांकि उम्मीदवार 2019 वाले नहीं हैं.

घोसी- गाजीपुर में मिली थी जीत

2019 में पूर्वांचल की दो सीटों पर बहन जी पार्टी का कब्जा रहा. वो सीटें घोसी और गाजीपुर की थी. घोसी से अतुल राय और गाजीपुर से अफजाल अंसारी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. मौजूदा लोकसभा चुनाव में घोसी से बालकृष्ण चौहान और गाजीपुर से उमेश प्रताप सिंह जोर आजमाइश कर रहे हैं. बता दें कि घोसी के मौजूदा सांसद के टिकट को मायावती ने काट दिया और गाजीपुर में अफजाल अंसारी ने खुद पाला बदल लिया. अगर बात घोसी की करें तो बालकृष्ण चौहान एक बार बीएसपी के टिकट पर सांसद रह चुके हैं. उन्हें टिकट मिलने के पीछे की वजह उनकी जाति के मतदाताओं की संख्या बतायी जा रही है. बीएसपी को यकीन है कि चौहान और दलित समाज के वोटर मिलकर बीएसपी की नैया पार लगा देंगे.

2019 में सपा के साथ गठबंधन
अगर पूर्वांचल में बीएसपी के प्रदर्शन की बात करें तो घोसी, गाजीपुर में 51 और 50 फीसद मत मिले थे और कामयाबी भी दर्ज की थी. जबकि देवरिया में 30, बांसगांव में 40 और सलेमपुर में 38 फीसद मत के साथ पार्टी दूसरे स्थान पर रही. हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात है कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था. लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है. मऊ जिले के पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि बीएसपी और सपा का पूरा ध्यान जातीय समीकरण पर टिका हुआ है. उनके प्रचार का तरीका देखें तो आपको समझ में आएगा कि पिछड़ी जातियों की भावनाओं को उभार कर ज्यादा से ज्यादा मत हासिल किया जाए.

सवाल यह है कि अगर उनके प्रतिद्वंदी दल भी पिछड़ी जातियों से उम्मीदवार उतारें को क्या होगा. स्वाभाविक है वोटों में बंटवारा होगा. अगर आप घोसी से बीएसपी के प्रत्याशी चयन को देखें तो बालकृष्ण चौहान के तौर पर पिछड़ी जाति के उम्मीदवार को उतारा है. लेकिन समाजवादी पार्टी ने अगड़ी जाति के उम्मीदवार को उतारा है, एनडीए की तरफ से राजभर उम्मीदवार है. ऐसे में पिछड़ी जाति के मतों में बंटवारा होना तय है और ऐसी सूरत में बीएसपी की राह आसान नहीं रहने वाली है.

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